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________________ श्वेताम्बर परम्परा की श्रमणियाँ थे, उनकी आज्ञानुवर्तिनी श्रमणियों में भी योगमार्ग के प्रति विशेष रूचि देखने को मिलती है, वर्तमान में इस समुदाय के आचार्य श्री विजयहेमप्रभसूरिजी महाराज हैं, उनकी आज्ञा में इस समय 215 साध्वियों का परिवार है, जिसमें कई प्रतिभासंपन्न, दीर्घ चारित्रपर्यायी एवं शासन प्रभाविकाएँ हैं। 5.3.14.1 महत्तरा प्रवर्तिनी श्री सौभाग्यश्रीजी (संवत् 1955-2030) आपका जन्म कच्छ के वीसा ओसवाल सेठ वीरपाल भाई के यहाँ संवत् 1931 में हुआ। अशोकश्रीजी की आप शिष्या बनीं। तीक्ष्ण बुद्धि व लगन से आप रोज 50 गाथा और एक सज्झाय कंठस्थ करती थी, प्रतिदिन 2000 गाथाओं का स्वाध्याय करतीं। शासन की महती प्रभावना करके 2030 में आप स्वर्गवासिनी हुईं। आपकी 5 शिष्याएँ तथा 22 ठाणा का परिवार था, वर्तमान में 62 साध्वियाँ हैं।144 5.3.14.2 प्रवर्तिनी श्री नेमश्रीजी (विद्यमान) जन्म कच्छदेश का डुमरा गाँव, वहीं दीक्षा लेकर श्री विवेकश्रीजी की शिष्या बनी। दो मासी, ढाईमासी, डेढ़मासी, चारमासी, वर्षीतप, कल्याणक, 62 वर्ष ज्ञानपंचमी आराधना, पोषदशमी, मौन एकादशी, मेरूतेरस, चैत्री पूनम, बीस स्थानक, 6 अठाई, 16, 19 उपवास, मासक्षमण, नवपद की 105 ओली, वर्धमान ओली आदि कठोर तपस्याएँ की। शिष्या-प्रशिष्याओं की नामावली निम्नानुसार उल्लिखित है-श्री चंपकश्रीजी, तरूणप्रभाश्रीजी, सुलसाश्रीजी, मंजुलाश्रीजी, त्रिलोचनाश्रीजी, श्री वारिषेणाश्रीजी, श्री वज्रसेनाश्रीजी, रत्नत्रयाश्रीजी, विरतिधराश्रीजी, मेरूशिलाश्रीजी, शासनरसाश्रीजी, शाश्वतयशाश्रीजी, वीतरागयशाश्रीजी, नंदीश्वराश्रीजी, हितपूर्णाश्रीजी, विश्वयशाश्रीजी, वंदिताश्रीजी, आगमरसाश्रीजी, गुप्तिधराश्रीजी, गिरिवराश्रीजी, सिद्धशिलाश्रीजी, वैरूट्याश्रीजी, नम्रगुणाश्रीजी, वासवदत्ताश्रीजी, भवभीरूश्रीजी, श्रुतरसाश्रीजी, भव्यदर्शिताश्रीजी, अप्रमत्ताश्रीजी, अदोषिताश्रीजी, तत्त्वदर्शिताश्रीजी, जयतीर्थाश्रीजी, वीरतीर्थाश्रीजी, वीररत्नाश्रीजी, अपराजिताश्रीजी, अपिताश्रीजी, तीर्थेश्वराश्रीजी, परमेश्वराश्रीजी, राजदर्शाश्रीजी, निर्वेददर्शाश्रीजी, दर्शनमित्राश्रीजी, अपूर्वनिधिश्रीजी, अप्रतिचक्राश्रीजी, पुन्येश्वराश्रीजी, तीर्थलीनाश्रीजी, श्री मुक्तिश्रीजी, सुप्रसजयश्रीजी, आत्मलीनाश्रीजी, तृप्तिलीनाश्रीजी, योगीश्वराश्रीजी, चंद्राननाश्रीजी, श्री रमणीकश्रीजी, श्री सुमंगलाश्रीजी इत्यादि 52 विदुषी श्रमणियों की सफल खिवैया हैं। 80 वर्ष की उम्र में भी विशुद्ध व निर्मल संयम का पालन करती हुई ये भावी श्रमणियों के लिये आदर्श रूप बनी हैं।445 5.3.14.3 प्रवर्तिनी श्री मणिश्रीजी (संवत् 1965-2037) __ जन्म संवत् 1939 सुरेन्द्रनगर जिला का सायला नगर, पिता नागजीभाई माता दिवालीबहन, दीक्षा संवत् 1965 पोष कृष्णा 8 सायला, गुरूणी श्री चंदनश्रीजी (महुवा वाला), 73 वर्ष की संयम पर्याय में कई तीर्थों की यात्रा की, भारत के विभिन्न प्रान्तों में विचरण कर जन-जन में धार्मिक भावनाएँ पैदा की। कइयों को संयम पथ पर अग्रसर किया, संवत् 2037 सुरेन्द्रनगर में 98 वर्ष की वय पूर्ण कर यह दिव्यपुञ्ज आत्मा स्वर्गलोक की ओर प्रस्थित हुई।446 444. वही, पृ. 704-6 445. वही, पृ. 710-12 446. वही, पृ. 707-9 443 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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