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जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास
गुरूणी नाम
क्रम साध्वी नाम जन्म संवत् स्थान दीक्षा संवत् तिथि 1. श्री हर्षप्रभाश्रीजी 1996 ऊंझा 2017 मृ. शु. 6
श्री विनयगुणाश्रीजी 1996 ऊंझा 2021 मा. कृ. 10 श्री रत्नसंचयाश्रीजी 2008 भोरोल
2030 । मृ. शु. 13 श्री राजरत्नाश्रीजी 2012 वायड 2031 मृ. शु. 11 श्री राजप्रज्ञाश्रीजी 2014 वायड 2031 मृ. शु. 11 श्री ज्योतिरत्नाश्रीजी 2019 भावनगर 2038 ज्ये. शु. 14 श्री जयरत्नाश्रीजी 2022 भोरोल 2040 वै. शु.5
श्री विरागरसाश्रीजी 2010 सुरेन्द्रनगर 2041 फा. शु. 3 9. श्री विरतिरसाश्रीजी 2019 मुंबई 2041 फा. शु. 3 10. श्री विनीतरसाश्रीजी 2019 उमराला 2041 फा. शु. 3 11. श्री आत्मरत्नाश्रीजी 2023 पाटण 2044 मा. शु. 3
दीक्षा स्थान ऊंझा ऊंझा भोरोलतीर्थ पालीताणा पालीताणा मुंबई खापोली मुंबई मुंबई मुंबई अमदाबाद
5.3.13.7 प्रवर्तिनी श्री विद्युत्प्रभाश्रीजी (संवत् 2007 से वर्तमान)
जन्म संवत् 1982 बनासकांठा के चंडीसर गाँव में, पिता सोमाणी उत्तमभाई, माता केशरबाई। दीक्षा संवत् 2007 वैशाख शुक्ला 11, गुरूणी श्री दर्शनश्रीजी। आठ वर्ष तक मूंग की दाल और चपाती के सिवाय सभी खाद्य वस्तुओं का त्याग। आदर्श व प्रेरक जीवन/42 इनकी. सूर्यकलाश्रीजी आदि 15 शिष्याएँ हैं। 5.3.13.8 श्री तीर्थश्रीजी (संवत् 2029-48) ___जन्म महाराष्ट्र के विदर्भ देश का तिवरंग नामक गाँव, पिता गुलाबचंदजी, माता सोनाबाई। एक ही परिवार से ये स्वयं, इनके पति श्री वीरविजयजी, तीन पुत्र-श्री भानुचंद्रविजयजी, देवचंद्रविजयजी, हेमचंद्रविजयजी, पुत्री-राजरत्नाश्रीजी, देवर की दो पुत्रियाँ-श्री सौम्यप्रज्ञाश्रीजी, विनीतप्रज्ञाश्रीजी, बहन की पुत्री- सुयशप्रज्ञाश्रीजी, श्री ऋजुप्रज्ञाश्रीजी इस प्रकार 10 दीक्षाओं का एक अनोखा इतिहास बनाने वाली तीर्थश्रीजी अन्य 9 मुमुक्षु आत्माओं के साथ संवत् 2029 वैशाख शुक्ला 5 के दिन दारव्हा ग्राम (महाराष्ट्र) में दीक्षित हुईं। इससे पूर्व संवत् 2026 में एक पुत्र व पुत्री ने दीक्षा ली थी। और भी इनके परिवार में दीक्षाएं हुईं। तप-वर्षीतप, मासक्षमण, 20 अठाई, 16, 11, 10, 9 उपवास, 20 स्थानक ओली उपवास से की। वर्धमान तप की 19 ओली आदि। भारत के अनेक प्रान्तों में विचरण कर धर्म की ज्योति जलाई। संवत् 2048 रतलाम में इस अविनाशी आत्मा ने देह रूपी कलेवर का त्याग किया।43 5.3.14 आचार्य श्री विजयकेसरसूरीश्वरजी के समुदाय की श्रमणियाँ
योगनिष्ठ आचार्य श्री विजयकेसरसूरीश्वरजी महाराज स्वयं योगमार्ग के अनन्य साधक और परम निस्पृही संत 442. वही, पृ. 697 443. वही, पृ. 699-702
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