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________________ समग्र जैन श्रमणियों का इतिहास लिखना और उसे शोध की सीमा में आबद्ध रखना यद्यपि एक दुःसाध्य कार्य है। विशेष रूप से बीसवीं, इक्कीसवीं सदी की श्रमणियों का इतिहास; जो संख्या में ही अत्यन्त विशालता लिये हुए है। उनमें भी कई श्रमणियों के विस्तृत जीवन उपलब्ध होते हैं, कइयों की साहित्यिक कृतियाँ। अधिकांश श्रमणियों का जीवन वृत्त उपलब्ध नहीं था। अत: रिक्त परम्परा को भरने और इतिहास की अक्षुण्णता बनाये रखने के लिए हमने सन् 2004 के दिल्ली वर्षावास में जैनधर्म की प्रायः सभी श्रमणी प्रमुखाओं, सम्बन्धित आचार्यों एवं संस्थाओं के नाम परिचय पत्र के कुछ बिन्दु एवं विनती पत्र प्रेषित कर परिचय भेजने का अनुरोध किया। इस योजना से काफी सफलता मिली, उसी के परिणाम स्वरूप हम समकालीन चारों प्रमुख परम्पराओं की प्रायः सभी गच्छों की श्रमणियों का इतिहास विस्तृत रूप में दे पाये। विषय की विस्तृतता को कम करने के लिए एवं श्रमणियों का एक साथ सरलता से परिचय जानने के लिए तालिका-पद्धति उचित प्रतीत हुई, इस रूप में हम हजारों श्रमणियों का इतिहास इस ग्रंथ में समाविष्ट कर सके। यद्यपि अभी भी ज्ञात से अज्ञात इतिहास बहुत अधिक है, कई नाम छूट गये हैं, कइयों के योगदानों की चर्चा नहीं हो पाई, कइयों की आंशिक तौर पर ही हो पाई, इन सबके पीछे सामग्री की अनुपलब्धि या प्रामाणिक सामग्री का अभाव ही प्रमुख रहा। शोध प्रबन्ध में एक कठिनाई हस्तलिखित ग्रंथों का प्राप्त न होना भी है। श्रमणियों द्वारा ताड़पत्र या कागजों पर शास्त्रों की प्रतिलिपियाँ करने का कार्य लगभग ग्यारहवीं सदी से प्रारम्भ हो गया था। ये पांडुलिपियाँ विभिन्न ग्रंथ-भंडारों में भरी पड़ी हैं। कई स्थानों से उनकी सूचियाँ प्रकाश में भी आई हैं, तथापि सैंकड़ों ऐसे भण्डार हैं, जिनकी सूचियाँ प्रकाशित नहीं है। श्रमणी विषयक दुर्लभ हस्तलिखित ग्रंथ प्रकाश में आये बिना तद्विषयक खोज नहीं की जा सकती। कई ग्रंथ श्रमणियों ने स्वयं लिखे, कई पंडितों और विद्वानों से लिखवाए, कई लिखकर आचार्यों व मुनियों को प्रदान किये, कई ग्रंथों में श्रमणियों विषयक प्रशस्तियाँ हैं, पन्द्रहवीं से उन्नीसवीं सदी तक कई श्रमणियों द्वारा मरू-गुर्जर भाषा में 'सस्तबक' लिखे जाने की सूचना है, कई पांडुलिपियों में श्रमणियों के स्व-रचित काव्य हैं, जो काव्य की विविध-विधाओं में लिखे उपलब्ध होते हैं। दिल्ली के हस्तलिखित ग्रंथ भंडारों में ऐसे सैंकड़ों ग्रंथ देखने को मिले। इसी प्रकार यदि सभी ग्रंथ भंडारों का प्रतिलेखन किया जाए अथवा उनकी सूची उपलब्ध कराई जाये तो हजारों अज्ञात साध्वियों का इतिहास उपलब्ध हो सकता है, किन्तु सभी ग्रंथ भंडारों की सूचियाँ प्रकाशित नहीं हुई हैं, तथा खेद का विषय है कि जिन ग्रंथ भंडारों से सूचियाँ प्रकाशित हो रही हैं, उनमें भी प्रतिलिपि कर्ताओं के नामों का उल्लेख नहीं किया जाता, यदि ग्रंथ का विवरण लिखते समय समग्रता का ध्यान रखा जाये तो हम अपने नष्ट होते बहुमूल्य इतिहास को बचाने में सहयोगी बन सकते हैं। देश, काल, सम्प्रदाय और ज्येष्ठ-कनिष्ठ की सीमा रेखा से परे जैनधर्म की समग्र श्रमणियों को समान रूप से ग्रंथ में स्थान देने के कारण स्वाभाविक ही ग्रंथ एक बृहदाकार श्रमणी-कोष का रूप धारण कर गया है। जैनधर्म के विस्तृत भू-भाग में ठाठे मारते इस श्रमणी-समुद्र को ग्रंथ रूपी गागर में समाविष्ट करने के लिए हमने आठ अध्यायों में उनका वर्गीकरण किया गया है (xlity | Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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