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________________ श्वेताम्बर परम्परा की श्रमणियाँ करने वाली साध्वियों में कंचनश्रीजी का नाम उल्लेखनीय है। संवत् 1936 झालावाड़-लींबड़ी की पुण्यधरा पर जन्म लेकर 'डभोई' ग्राम में ये विवाहित हुईं। अल्पसमय में ही विधवा हो जाने पर श्री गुलाबश्रीजी के चरणों में संवत् 1956 वैशाख शुक्ला पूर्णमासी के दिन डभोई में दीक्षा अंगीकार की। कल्याणश्रीजी के सान्निध्य में प्रकरण, भाष्य, कर्मग्रंथ पंचसंग्रह, क्षेत्रसमास, बृहत् संग्रहणी, संस्कृत, प्राकृत, न्याय आदि का तलस्पर्शी अध्ययन किया, तथा गुजरात सौराष्ट्र, मेवाड़, मालवा आदि प्रदेशों में विचरण कर कइयों को संयमी बनाया। आज प्रायः 100 के लगभग विशाल साध्वियों का परिवार इनके चरण-चिन्हों पर अनवरत गतिमान है। 63 वर्ष तक चारित्र की सुंदर आराधना करते-कराते संवत् 2019 को दर्भावती-डभोई में इन्होंने परलोक मार्ग की ओर प्रयाण किया।373 5.3.10.3 प्रवर्तिनी श्री कल्याणश्रीजी (संवत् 1957-2008) पूज्यपाद आचार्यश्री विजयमोहनसूरीश्वरजीमहाराज द्वारा प्रवर्तिनी पद पर विभूषित साध्वी कल्याणश्रीजी सवासौ के लगभग श्रमणियों का रूल नेतृत्व कर रही हैं इनका जन्म अमदाबाद के वीशा श्रीमाली शेठ छगनभाई की धर्मपत्नी विजयाबहेन की कुक्षि से संवत् 1941 में हुआ। पिता ने इनका विवाह किया, किंतु अल्पावधि में ही ये वैधव्य को प्राप्त हो गई। प्रवर्तिनी श्री गुलाबश्रीजी के सान्निध्य में रहते हुए इन्हें वैराग्य की प्राप्ति हुई, फलस्वरूप 16 वर्ष की उम्र में संवत् 1957 अमदाबाद में इन्होंने सर्वसंग परित्याग रूप आहती दीक्षा अंगीकार की। ये ज्ञान गर्वीष्ठा तो थी ही, साथ ही क्रिया में भी अत्यंत चुस्त थीं अपनी शिष्याओं पर इनका संयममय अनुशासन होने से इनका श्रमणीवर्ग विनय विवेक तथा ज्ञानध्यान में अपना विशिष्ट स्थान रखता है। गुजरात, सौराष्ट्र, मालवा, मेवाड़ आदि प्रान्तों में उग्र विहार कर लोगों को जैनधर्म से संस्कारित करने में आपका महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। आपके सदुपदेशों से प्रेरित होकर मात्र 'डभोई' से 60-65 मुमुक्षु दीक्षित हुए। संवत् 2008 में 'डभोई' का अंतिम चातुर्मास करके आप वहीं स्वर्गस्थ हुईं।374 5.3.10.4 श्री केवलश्रीजी (संवत् 1962-स्वर्गस्थ) स्तम्भनतीर्थ (खंभात) की पुण्यधरा पर इस पुण्यवती साध्वीश्री का जन्म संवत् 1940 में दीपचंद परसनबहन के यहाँ हुआ। खंभात के ही ठाकरशीभाई से इनका विवाह हुआ, पाँच वर्ष में एक पुत्र और एक पुत्री प्रदान कर ठाकरशीभाई स्वर्गवासी हो गये। प्रवर्तनी श्री गुलाबश्रीजी की शिष्या ज्ञानश्रीजी से प्रतिबोध पाकर संवत् 1962 में इन्होंने दीक्षा अंगीकार की। आपने अपने प्रभाव से कई कन्याओं को प्रतिबोधित किया।375 5.3.10.5 श्री जयंतिश्रीजी (संवत् 1968-201) श्वेताम्बर-परम्परा का प्रसिद्ध तीर्थ प्रभासपाटण के निकट वेरावल (वेलाकुल) के लोढविया कुटुंब में शेठ सोमचंदजी और कुंवरबाई के यहाँ संवत् 1946 में श्री जयंतिश्रीजी का जन्म हुआ। पाँच वर्ष गृहस्थ-सुख भोगने के पश्चात् पुत्र एवं पति वियोग से इनके हृदय में वैराग्य बीज अंकुरित हुआ, संवत् 1968 ज्येष्ठ शुक्ला 11 के दिन श्री ज्ञानश्रीजी के पास दीक्षा अंगीकार की। अल्प समय में ही ये एक प्रतिभाशालिनी विदुषी साध्वी के रूप 373. वही, पृ. 600-1 374. वही, पृ. 592-94 375. वही, पृ. 595-97 417 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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