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________________ जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास पिता लक्ष्मीचंदजी के यहाँ जन्म लिया। श्री विज्ञानश्रीजी के चरणों में संवत् 2011 अक्षय तृतीया के शुभ दिन संयम-पथ पर आरूढ़ होकर ज्ञान, ध्यान, तप-त्याग में अपूर्व प्रगति की। इनकी वचनसिद्धि अद्भुत है, आचार्य वल्लभसूरिजी का एक भी ऐसा क्षेत्र नहीं कि जहाँ इनका नाम न हो। अपनी जन्मभूमि गढ़ ग्राम में अंजनशलाका प्रतिष्ठा महोत्सव पर लगभग 1 करोड़ रूपये की धनराशि एकत्रित करवाई, पावागढ़ तीर्थ में देरासर तथा कन्या छात्रालय हेतु आर्थिक सहायता दिलवाई, खोडियालपुर व सिंगपुर में जिनालय निर्माण करवाया, पावागढ़ और हस्तिनापुर में मूलनायक दादा की चांदी की प्रतिमाएँ बनाने की प्रेरणा दी, इस प्रकार प्रत्येक स्थान पर शासन प्रभावना के विविध कार्य करती हुई ये 4 शिष्याओं तथा 2 प्रशिष्याओं के साथ विचरण कर रही हैं।370 इनके अतिरिक्त इस समुदाय में सुज्ञानश्रीजी, कांताश्रीजी, हेमेन्द्र श्रीजी, यशोदाश्रीजी, चंद्रयशाजी, निर्मलाश्रीजी, सुव्रताश्रीजी, दर्शनश्रीजी, कीर्तिप्रभाश्रीजी, यशकीर्तिश्रीजी, देवेन्द्रश्रीजी, हर्षप्रियाश्रीजी, जितप्रज्ञाश्रीजी, अमितगुणाश्रीजी, सुमिताश्रीजी, चंद्रयशाश्रीजी, महायशाश्रीजी, लक्षगुणाश्रीजी, उदययशाश्रीजी, कल्पयशाश्रीजी, रत्नशीलाश्रीजी, संवेगरसाश्रीजी, रक्षितप्रज्ञाश्रीजी, सुमनिषाश्रीजी, पुनीतरत्नाजी, नरेन्द्रश्रीजी, सौम्यप्रभाश्रीजी, सुविरतिश्रीजी, सुचेताश्रीजी, सुसेनाश्रीजी, दिव्यप्रभाश्रीजी, पुष्पाश्रीजी, सुशीलाश्रीजी, पूर्णकलाश्रीजी, सुजीताश्रीजी आदि साध्वियाँ अपनी शिष्याओं के साथ अग्रणी बनकर धर्मप्रभावना कर रही हैं। 5.3.10 आचार्य श्री विजयमोहनसूरिजी का श्रमणी-समुदाय वर्तमान में गच्छाधिपति आचार्य विजययशोदेवसूरिजी के साध्वी समुदाय की संख्या 200 के लगभग है। इनमें 125 साध्वियों की प्रमुखा श्री कल्याणश्रीजी (संवत् 1958) हुईं, जो साध्वी हेमश्रीजी की शिष्या थीं। इनकी शिष्याओं में 'डभोई' की ही 60 साध्वियाँ हैं। कई साध्वियाँ उत्कट तपस्विनी हैं, श्री अजितसेनाश्रीजी, हर्षपूर्णाश्रीजी आदि साध्वियों ने वर्धमान ओली तप की संपूर्ण आराधना की है इसके उपरांत कई साध्वियाँ श्रेणीतप, सिद्धितप, मासक्षमण तप, समवसरण तप आदि उत्कट तप-साधनाएँ कर चुकी है। 5.3.10.1 श्री मंगलश्रीजी (संवत् 1952-2024) दीर्घसंयमी श्री मंगलश्रीजी का जन्म चूडा ग्राम (कंकणपुर) के श्री धरमशीभाई गोमतीबहन के यहाँ हुआ। बाल्यवय में दीक्षा अंगीकार कर श्री गुलाबश्रीजी के पास वर्षों तक अध्यात्म ग्रंथों का गहन अध्ययन किया। इनका विहारक्षेत्र सौराष्ट्र काठियावाड़ तो रहा ही, साथ ही पंजाब राजस्थान, बिहार बंगाल तक की भी पद-यात्राएँ की। इनकी स्वयं की दो शिष्याएँ हुई- नवल श्रीजी और दमयंतीश्रीजी। दोनो ही सुयोग्य, सेवाभाविनी विदुषी एवं तपस्विनी हैं। चूड़ा में संवत् 2022 के चातुर्मास में 72 वर्ष संयम पर्याय पालकर ये स्वर्गस्थ हुईं।372 5.3.10.2 श्री कंचनश्रीजी (संवत् 1956-2019) अपनी विशिष्ट वाक्शक्ति द्वारा सैंकड़ों मुमुक्षु आत्माओं के अंतर में जिनशासन की चिर प्रतिष्ठा कायम 370. 'श्रमणीरत्नो', पृ. 585 371. समग्रजैन चातुर्मास सूची सन् 2005, पृ. 216-20 372. 'श्रमणीरत्नो', पृ. 598-99 416 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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