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श्वेताम्बर परम्परा की श्रमणियाँ
5.3.9.5 श्री समताश्रीजी ( संवत् 1998-41 )
कच्छ में अप्रतिम प्रभावना करने वाली महान तपस्विनी शास्त्रवेत्ता साध्वियों में श्री समताश्रीजी का नाम आदर के साथ लिया जाता है। इनका जन्म कच्छ में मोराना निवासी पटेल वस्ताभाई की धर्मपत्नी सुदेबाई से हुआ। 'डगारा' के वतनी पटेल रताभाई के साथ पाणिग्रहण हुआ, किंतु भवितव्यता के योग से कुछ ही समय में रताभाई का जीवन - दीप बुझ गया, यह देख सोना बहेन के हृदय में जैन साध्वी बनने की लगन पैदा हुई, किसी भी जैन साध्वी के चरणों में जीवन समर्पण करने की तीव्र भावना से तीन दिन का उपवास हो गया, अंततः भावना फलीभूत हुई, श्री सुभद्राश्रीजी महाराज का डगारा में पदार्पण हुआ। सोना बहन संवत् 1998 कार्तिक कृष्णा 5 कपड़वंज में श्री लक्ष्मीश्रीजी के चरणों में दीक्षित होकर 'समता श्रीजी' बन गई। समताश्रीजी ने अपने जीवन में आगम, साहित्य धर्म ग्रंथों का गहन ज्ञान संपादित किया, साथ ही शासन प्रभावना के अनेकविध कार्य किये। भटाणा में प्रतिष्ठा महोत्सव, ढेरा (भरतपुर) के शिखरबंध मंदिर का जीर्णोद्धार, डगारा में दो चबूतरा, दो उपाश्रय, शिखरबंधी जिनमंदिर का निर्माण प्रतिष्ठा, गौशाला, धमकड़ा, माधापर, मोखाणा, धाणेटी, जवाहरनगर नखत्राणा आदि में उपाश्रय, थाणां में उपधान तप भव्य उद्यापन आदि कार्य इनकी प्रेरणा से हुए। अपने 43 वर्ष की दीक्षा पर्याय में ज्ञानपंचमी, नवपद ओली, वर्षीतप 20 स्थानक नवकारतप दो बार, वर्धमान ओली, 101 आयंबिल, मासक्षमण, 16, 15, 11, 10 उपवास, सिद्धितप चत्तारि अट्ठ दस दोय, अठाइयां, चौविहार छट्ट अट्टम, 99 यात्रा यावज्जीवन डेढ़ पोरूषी आदि तपश्चर्याएँ की । 368
5.3.9.6 श्री जशवंतश्रीजी ( सवंत् 2001 - 50 )
आचार्य विजयवल्लभसूरि के समुदाय विशिष्ट आर्यारत्न के रूप में प्रसिद्धि प्राप्त जशवंत श्रीजी का जन्म गुजरानवाला (पाकिस्तान) में कोठीवाले लाला हीरेशाह के यहाँ हुआ। अपनी वात्सल्यमयी जननी आनंदश्रीजी के चरण चिन्हों का अनुगमन कर नौ वर्ष की उम्र में ये पालीताणा में उन्हीं के साथ दीक्षित हुईं। तीक्ष्ण प्रतिभा, अप्रमत्त जीवन एवं सतत स्वाध्याय से इन्होंने स्वल्पावधि में विशिष्ट ज्ञान संपादन कर लिया। माता के स्वर्गवास के पश्चात् श्री पुष्पाश्रीजी के सान्निध्य में पंजाब के प्रत्येक ग्राम, नगर में घूम-घूमकर अपनी सुमधुर व्याख्यान वाणी से धर्म का खूब प्रचार-प्रसार किया, स्थान-स्थान पर युवतियों-बच्चों के धार्मिक शिविर लगवाये, कई कन्याओं को दीक्षित किया। गुरुभक्ति और जिनभक्ति इनके अणु-अणु में समाविष्ट थी, इसीके परिणाम स्वरूप आगरा बालुगंज वल्लभ कॉलोनी में नूतन जिनमंदिर का निर्माण करवाया। सौराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, पंजाब, उत्तरप्रदेश, बिहार आदि प्रांतों में धर्मप्रचार के साथ अनेक सामाजिक, शैक्षणिक तथा धार्मिक संस्थाओं को सक्रिय किया। 58 वर्ष की आयु में 49 वर्ष शुद्ध चारित्र का परिपालन व वर्षीतप 8, 9, 11, 16 आदि तपस्या से अपने व्यक्तित्व को आलोकित कर सुरेन्द्रनगर में संवत् 2050 में यह शासनप्रभाविका विरूद से अर्चित साध्वी शिरोमणी कालधर्म को प्राप्त हुई । 369
5.3.9.7 श्री पद्मलताश्रीजी ( संवत् 2011 से वर्तमान)
समर्थ शासनप्रभाविका के रूप में प्रख्यात श्री पद्मलताश्रीजी ने संवत् 1992 गढ़ग्राम ( पालनपुर) निवासी
368. ' श्रमणीरत्नो', पृ. 558-62
369. स्मृति विशेषांक, पंजाबी साध्वी श्री जसवंत श्रीजी, विजयानंद वर्ष 42 अंक 1 जनवरी 1998
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