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________________ जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास चार बार किया। सरलता, दृढ़ता, 'शासनरसी' की भावना आदि इनके व्यक्तित्व की विरल विशेषताएँ थीं। संवत् 2043 पालीताणा में इनका परलोक-प्रयाण हुआ । 366 5.3.9.4 महत्तरा श्री मृगावती श्रीजी (संवत् 1995-2042 ) ख्यातनामा विदुषी साध्वीरत्ना मृगावतीजी का जन्म संवत् 1982 सरधार ग्राम (राजकोट) के डुंगरसी संघवी एवं माता शिवकुंवर के यहाँ हुआ। संवत् 1995 पालीताणा में इन्होंने माता साध्वी शीलवती श्रीजी के पास दीक्षा अंगीकार की। पंजाब केसरी जैनाचार्य विजयवल्लभ सूरीश्वरजी की आज्ञा में विचरण करते हुए इन्होंने आगम न्याय, व्याकरण जैन व इतर दर्शनों का गहन अध्ययन मूर्धन्य विद्वानों से प्राप्त किया। इनकी विचक्षणता, विदग्धता, तेजस्विता, नवयुग निर्माण की क्षमता और वैज्ञानिक दृष्टिकोण ने भारतभर में इन्हें विख्यात किया। सन् 1953 कलकत्ता शांति निकेतन में सर्वधर्म परिषद में जैनधर्म की प्रतिनिधि बनकर इन्होंने जैनधर्म का गौरव बढ़ाया। सन् 1954 में गुलजारीलाल नंदा की अध्यक्षता में पावापुरी में हुए भारत सेवक समाज अधिवेशन में 70 हजार जन-समुदाय की उपस्थिति में जैनधर्म पर प्रवचन दिया। सांप्रदायिक संकीर्णता से मुक्त होने के कारण लगभग सभी महानगरों में इनके सार्वजनिक प्रवचन आयोजित किये गये। कांगड़ा तीर्थोद्धारिका के रूप में आप प्रसिद्धि प्राप्त हैं। मृगावती जी ने साठ हजार मील की पदयात्रा कर स्थान - 2 पर धर्म प्रभावना के विविध कार्य किये। दिल्ली में वल्लभस्मारक, वासुपूज्य भगवान का चौमुख जैनमंदिर, बी. एल. इन्स्टीट्यूट ऑफ इंडोलाजी, मृगावती जैन विद्यालय, देवी पदमावती चैरीटेबल ट्रस्ट, माता पद्मावती देवी धर्मार्थ ट्रस्ट, साध्वी सुज्येष्ठाश्री चैरीटेबल ट्रस्ट आपकी प्रेरणा से बने। अंबाला में आत्मवल्लभ जैन एजूकेशनल फांउडेशन की स्थापना, एस. ए. जैन हाई स्कूल, मॉडल स्कूल, कन्या विद्यालय, शिशु विद्यालय तथा बम्बई, होश्यारपुर, जंडियाला, बैंगलोर, मैसूर आदि अनेक स्थानों पर जैन उपाश्रय मंदिरों के जीर्णोद्धार आदि में आर्थिक सहयोग हेतु प्रेरणाएं दी। इतना ही नहीं लुधियाना में भव्य अक्की बाई आई होस्पीटल, श्रीमती मोहन देवी कैंसर होस्पीटल और रिसर्च सैंटर का शिलान्यास, बम्बई भायखला में जैन नगर योजना, दिल्ली रोहिणी का वल्लभविहार, अनेक औषधालय, प्रेस व उद्योग केन्द्र, ज्ञानचंद जैन धर्मशाला, रोशनलाल जैन धर्मशाला, अतिथिगृह, जीवदया - गौशाला इत्यादि में करोड़ों रूपयों की धनराशि दिलवाकर आर्थिक संबल प्रदान किया । अपने ओजस्वी प्रवचनों के माध्यम से इन्होंने सामाजिक कुरूढ़ियां, कुप्रथाएं, दहेज, फैशन-परस्ती, मांस, अंडा, शराब आदि व्यसन मुक्त समाज की संरचना में भी अपूर्व योगदान प्रदान किया। आपकी अभूतपूर्व धर्म प्रभावना देख कर आचार्य विजयसमुद्रसूरिजी ने आपको सन् 1972 बम्बई में 'जैन भारती' पद प्रदान किया। एवं आचार्य श्री इन्द्रदिन्नसूरि जी ने सन् 1979 में 'कांगड़ा तीर्थोद्धारिका पद' से सम्मानित किया, इस प्रकार साध्वी मृगावतीजी जहां भी गई, वहीं अवसरानुकूल कहीं धर्म ज्ञान और संस्कार की संस्था तो कहीं व्यक्ति के उद्धार की संस्था का निर्माण करवा गईं। इतना ही नहीं, वे स्वयं ही एक संस्था स्वरूप बन गईं। एक साध्वी 61 वर्ष के जीवनकाल में इतने विपुल परिमाण में कार्य करने की क्षमता रख सकती है, इसका वे सशक्त उदाहरण थीं। संवत् 1986 वल्लभस्मारक दिल्ली में ये चिरविलीन हुईं, वहीं इनकी भव्यमूर्ति भी प्रतिष्ठित है, जो 21 वीं सदी की जैन साध्वियों में सर्वप्रथम मानी गई है। 367 366. वही, पृ. 568-71 367. दिल्ली, वल्लभविहार से प्राप्त सामग्री के आधार पर Jain Education International 414 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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