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________________ श्वेताम्बर परम्परा की श्रमणियाँ साध्वी के रूप में श्री देवश्रीजी का नाम सर्वप्रथम लिया जाता है। इनका जन्म संवत् 1935 वैशाख शुक्ला 10 के दिन अंबाला के सुप्रतिष्ठित ओसवाल परिवार के लाला नानकचंदजी भाबुक की धर्मपत्नी श्री श्यामादेवी की कुक्षि से हुआ, 13 वर्ष की उम्र में ही लुधियाना निवासी श्री चुंबामलजी के साथ इनका विवाह हुआ, किंतु विधि की क्रूरता के कारण विवाह के दूसरे ही दिन चुंबामलजी स्वर्गवासी हो गये। संसार की भयावह स्थिति देखकर देवश्रीजी अन्तर्हदय से विरक्त हो गईं और जंडियाला में संवत् 1954 माघ शुक्ला 5 को श्री चंदनश्रीजी की शिष्या के रूप में दीक्षित हुईं। देवश्रीजी धर्मप्रभाविका साध्वी थीं, 25 वर्षों तक पंजाब में विचरण कर इन्होंने क्षमाश्रीजी, दानश्रीजी, दयाश्रीजी, हेमश्रीजी, विवेकश्रीजी, चंदनश्रीजी, चंद्रश्रीजी, चरणश्रीजी, चित्तश्रीजी, जिनेन्द्र श्रीजी, आदि 9 शिष्याओं तथा श्री चंपाश्रीजी, दमयंतीश्रीजी, महेन्द्रश्रीजी, प्रकाशश्रीजी, मुक्तिश्रीजी, आदि 6 प्रशिष्याओं को ध र्ममार्ग पर प्रवृत्त कर दीक्षा प्रदान की। महलगाँव (पंजाब) में कई क्षत्रियों को जीववध न करने की प्रतिज्ञा दिलाई। पालनपुर का नवाब इनके व्यक्तित्व से अत्यंत प्रभावित था। संवत् 2004 भाद्रपद शुक्ला 11 को अमृतसर में इनका स्वर्गवास हुआ।64 5.3.9.2 श्री हेमश्रीजी (संवत् 1969-2015) अमदाबाद के सुसंस्कारी परिवार में संवत् 1941 इनका जन्म हुआ, विवाह के पश्चात् वैधव्य प्राप्त होने पर संवत् 1969 अक्षयतृतीया के शुभ दिन श्री कुंकुमश्रीजी की शिष्या बनकर संयम की आराधना करने लगी। इनके बहुमुखी व्यक्तित्व से प्रेरित हो कर कई कन्याएँ संयम मार्ग पर अग्रसर हुईं, इनमें ललितश्रीजी, इन्द्रश्रीजी, मनोहरश्रीजी, वनिताश्रीजी, मुक्तिश्रीजी, अभयश्रीजी, चंद्रोदयाश्रीजी, वीरेन्द्र श्रीजी, जिनेन्द्रश्रीजी आदि प्रमुख हैं। वनिताश्रीजी की दो शिष्याएँ - जयकांताश्रीजी और विरागरसाश्रीजी। अभयश्रीजी की कल्पज्ञाश्रीजी, वारिषेणाश्रीजी, रत्नकल्पाश्रीजी ये तीन शिष्याएँ हुईं। चन्द्रोदयाश्रीजी की हितज्ञाश्री इनकी नयरत्नाश्रीजी व रत्नत्रयाश्रीजी दो शिष्याएँ हैं। वीरेन्द्रश्रीजी की जितज्ञाश्रीजी, समयज्ञाश्रीजी, नयप्रज्ञाश्रीजी, तथा प्रशिष्याएँ-नंदीरत्नाश्रीजी, पुनीतरत्नाश्रीजी, प्रशमरत्नाश्रीजी, योगरक्षिताश्रीजी, दीपरक्षिताश्रीजी, दिव्यप्रज्ञाश्रीजी, जितप्रज्ञाश्रीजी हैं, जिनेन्द्रश्रीजी की मोक्षरत्नाजी, इस प्रकार इनकी विदुषी व तपस्विनी साध्वियों का विशाल परिवार है। संवत् 2015 में मासक्षमण की आराधना करके स्वर्गवासिनी हुईं।365 5.3.9.3 श्री विनयश्रीजी (संवत् 1991-2043) ___ कपड़वंज में संवत् 1976 को न्यालचंदभाई के यहाँ जन्मी श्री विनयश्रीजी ने अपनी ज्येष्ठा भगिनी विद्याश्रीजी के साथ संवत् 1991 मृगशिर शुक्ला 6 के दिन दीक्षा अंगीकार की। ये प्रारंभ से ही सरस्वती सुता के रूप में प्रख्यात थीं, संस्कृत, प्राकृत न्याय, दर्शन इतिहास, आगम आदि का गहन अध्ययन किया। कर्मग्रंथ में इनकी 'मास्टरी' थी, उसके लिये पुस्तक की भी जरूरत नहीं पड़ती। इनसे प्रतिबोध प्राप्त कर 11 परिवारीजन जिनशासन में दीक्षित हुए। दो ही वर्षों में इनकी 12 शिष्या-प्रशिष्याओं ने वर्षीतप की आराधना की, कई स्थानों पर साधर्मिक, दुष्काल गौरक्षण, उद्योगालय के लिये विशाल राशि एकत्रित करवाई। स्वयं ने वर्धमान तप की 35 ओली, 229 छ8, 12 अट्टम, सिद्धितप, 12 उपवास, बीशस्थानक तप (एकासणा आयंबिल, उपवास व छ? द्वारा) 364. रिखबचंद डागा, आदर्श प्रवर्तिनी, प्रकाशन-ममोल जैन ग्रंथमाला सन् 1951 365. 'श्रमणीरत्नों', पृ. 553-55 413 Jain Education International For privateersonal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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