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________________ जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास कर ये श्री महिमाश्रीजी की शिष्या बनीं। इन्होंने तप व सेवा गुण से सबके दिलों को जीता। शंखेश्वर के 108 अट्टम, 5 तिथि नियमित उपवास, 500 आयंबिल मासक्षमण, 16, 11 उपवास, 20 से अधिक अठाइयाँ, 2 वर्षीतप, 99 यात्रा 2, वर्धमान ओली की आराधना, प्रतिदिन चार विगय वर्जन कर स्वयं को प्रभुमय बनाने का सतत पुरूषार्थ किया। इनके पुत्र विजय जिनचंद्रसूरीश्वरजी के रूप में शासन प्रभावक आचार्य हैं। संवत् 2047 सावत्थी तीर्थ में इस तपस्विनी आत्मा ने चिर विदाई ली। 5.3.8.11 श्री हेमगुणाश्रीजी, दिव्यगुणाश्रीजी, हर्षगुणाश्रीजी आदि विदुषी साध्वियाँ (वर्तमान) वर्तमान में श्री सुवर्णाश्रीजी की शिष्याएँ श्री हेमगुणाश्रीजी एवं दिव्यगुणाश्रीजी प्राचीन हस्तलिखित प्रतियों के संशोधन व संपादन का महत्त्वपूर्ण कार्य कर रही हैं। इस श्रृंखला में इनके देवेन्द्रसूरिविरचित 'श्री दानोपदेशमाला', माणिक्यचन्द्रसूरि विरचित “ श्री शांतिनाथ चरित महाकाव्यम्” के दो भाग एवं शोभनमुनि कृत चतुर्विंशति स्तुति पर वृत्ति 'पणि- पीयूष - पयस्विनी' ग्रंथ प्रकाशित हुए हैं पुस्तक अवलोकन से इनकी संपादन कला एवं विद्वत्ता के दर्शन होते हैं। लेखिका साध्वी द्वय ने 'रम्यरेणु' नाम से ग्रंथों का प्रकटीकरण किया है। जो इनकी संसारपक्षीया मातेश्वरी ( रम्यगुणाश्रीजी) हैं। इसके अतिरिक्त 'रम्यरेणु' नाम से ही साध्वी हर्षगुणाश्री ने भी सचित्र कर्मग्रन्थ के 5 भागों का आलेखन भी किया है। कर्मग्रन्थ जैसे जटिल विषय को जिस सरल सुबोध चित्रमयी शैली में समझाने का प्रयास किया है, वह वस्तुतः अद्भुत व अपूर्व है । विदुषी साध्वियों का गहन अध्ययन, चिन्तन एवं प्रस्तुतिकरण वस्तुतः प्रशंसनीय है। इसी समुदाय की साध्वी महायशाश्रीजी ने 'सुरसुंदरीचरिय' की संस्कृत छाया लिखी है, तथा जिनयशाश्रीजी 'नवतत्त्व सुमंगला टीका' का अनुवाद कर रही हैं। ये सभी विदुषी साध्वियाँ आचार्य विजय मुनिचन्द्र सूरि जी म. सा. की प्रेरणा एवं मार्गदर्शन में साहित्य क्षेत्र में प्रगति कर रही हैं। 363 5.3.9 पंजाबकेसरी आचार्य श्री विजयवल्लभसूरिजी का श्रमणी - समुदाय मूर्तिपूजक संप्रदाय के आचार्य विजयवल्लभसूरि एक युगदृष्टा और दूरदर्शी आचार्य थे। चतुर्विध संघ में साध्वी समाज के उत्थान हेतु उन्होंने महत्त्वपूर्ण क्रांतिकारी कदम उठाये, उसीका प्रभाव है कि इस समुदाय की श्रमणियाँ सुशिक्षित एवं शासन की महान प्रभावना करने वाली हुईं, उन्होंने साध्वियों को पुरूषों की सभा में प्रवचन देने का अधिकार भी प्रदान किया । प्रवर्तिनी दानश्रीजी, प्रवर्तिनी कर्पूरश्रीजी, महत्तरा साध्वी श्री मृगावतीश्रीजी, श्री ओमकार श्रीजी, श्री सुमतिश्रीजी, श्री सुमंगलाश्रीजी आदि ने गुरूवल्लभ के विचारों को साकार रूप प्रदान करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। वर्तमान में इस समुदाय की साध्वी संख्या 196 है। इनमें श्री विनीताश्रीजी, श्री चित्तरंजनश्रीजी, श्री प्रवीणाश्रीजी, श्री अभयश्रीजी, श्री कमलप्रभाश्रीजी 'प्रवर्तिनी' पद पर एवं श्री सुमंगलाश्रीजी 'महत्तरा' पद पर अधिष्ठित हैं। 5.3.9.1 प्रवर्तिनी देवश्रीजी ( संवत् 1954-2004 ) आचार्य विजयवल्लभसूरिजी के मुखारविंद से पंजाब की धरती पर दीक्षा अंगीकार वाली श्वेताम्बर मूर्तिपूजक 363. ॐकारसूरि आराधना भवन, सुभाषचौंक गोपीपुरा, सूरत, सन् 1999 से 2002 Jain Education International 412 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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