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________________ जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास हीरश्रीजी, वल्लभ श्रीजी, चारित्रश्रीजी, सुमतिश्रीजी, जयाश्रीजी, मृगांक श्रीजी, गंभीराश्रीजी, सूर्योदया श्रीजी, हेमप्रभाश्रीजी, सूर्ययशाश्रीजी, अरूण श्रीजी, विज्ञान श्रीजी, तीर्थश्रीजी, गीर्वाणश्रीजी, मनोरमाश्रीजी, पद्मलताश्रीजी, विद्याश्रीजी, चंद्रकलाश्रीजी, चारूलताश्रीजी, जयप्रभाश्रीजी, महिमाश्रीजी, रत्नप्रभाश्रीजी, ललितप्रभाश्रीजी, चंपकलताश्रीजी, चंदनबालाश्रीजी, विजयाश्रीजी आदि। उक्त साध्वियों के नामोल्लेख के सिवाय अन्य जीवन संबंधी जानकारी प्राप्त नहीं होती, वर्तमान में जिनका जीवन उपलब्ध हुआ है, उन्हीं को यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है। 5.3.8.1 प्रवर्तिनी कंचनश्रीजी ( संवत् 1969 - स्वर्गस्थ ) प्रवर्तिनी कंचनश्रीजी 52 साध्वियों की जीवन शिल्पी एवं 500 साध्वियों में अग्रणी साध्वी थीं। बोरसद ग्राम के सुश्रावक नगीनदास जी के यहाँ संवत् 1945 में इनका जन्म हुआ । विवाह के दो मास पश्चात् विधवा हो जाने पर इन्होंने अपने हृदय में धर्म की स्थापना की और श्री बापजी महाराज की आज्ञानुवर्तिनी ताराश्रीजी के पास दीक्षा अंगीकार की। 67 वर्ष की दीर्घ संयम पर्याय में नव चौमासी, दो छमासी, डेढ़मासी एकमासी तप, वर्षीतप, एकांतर 500 आयंबिल, वर्धमान तप की 63 ओली, सतत एकासण तथा ज्ञान, ध्यान व शुद्ध संयम की आराधना कर 91 वर्ष की उम्र में ये दिवंगत हुईं। 360 5.3.8.2 श्री सुलोचनाश्रीजी ( संवत् 1989-2021 ) छाणी (गुजरात) निवासी श्री त्रिकमलाल रेवाबहन की सुपुत्री सुनंदा का जन्म 1974 बसंतपंचमी को हुआ । बाल्यवय में ही सुसंस्कारी होने के कारण संवत् 1989 में त्यागमार्ग स्वीकार कर ये श्री हीरश्रीजी की शिष्या बनी। स्वाध्याय, समता और वैयावृत्य इनके जीवन का मूलमंत्र रहा। छट्ट से सात यात्रा, शत्रुंजय तप, 99 यात्रा चार बार की। कई मीठाई, फ्रूट आदि का त्याग कर तप से जीवन को सुशोभित किया। इनकी मातुश्री रेवाबहन भी दीक्षित होकर रत्नश्री साध्वी बनीं। 361 आपकी तपस्विनी शिष्याओं के तप का विवरण अग्रिम पंक्तियों में दिया जा रहा है। 362 5.3.8.3 श्री मलयप्रभाश्रीजी आपने इन्द्रियजय, कषायजय, कल्याणक, 14 पूर्व, 45 आगम, मेरूतप, 5 महाव्रत 10 यतिधर्म तप, अष्टमी, दूज, ग्यारस, दशम, वर्षीतप, नवकारतप, अष्टमसिद्धि, बीस स्थानक, क्षीरसमुद्र, अंगविशुद्धि, गौतम कमल, 96 जिन ओली, नवपद ओली, रत्नपावड़ी, वर्धमान ओली, शत्रुंजयमोदक, षट्कायतप, स्वर्गस्वस्तिक, घनतप, वर्गतप, छ: मासी, पांच दिन कम छ: मासी, चारमासी 2, तीनमासी 2, अढ़ीमासी 2, डेढ़मासी 2, मासक्षमण 5 दो मा 5, मोक्षदंडक, योगविशुद्धि, 500 आयंबिल एकांतर, 99 यात्रा तीन बार, छट्ठ से 7 यात्रा, दो अठाई, नौ चत्तारि अट्ठ दस दोय, कर्मप्रकृति आदि विविध तप किये। 5.3.8.4 श्री मेरूप्रभाश्रीजी वर्षीतप, नवपद ओली, वर्धमान ओली, रतनपावड़ी, दीपावली, अठाई 5, ग्यारस, पांचम, दूज, आठम, दशम, 360. 'श्रमणीरत्नो', पृ. 523 361. आचार्य विजयमुनिचन्द्रसूरि जी के पत्र के आधार पर 362. 'श्रमणीरत्नो', पृ. 530-31 Jain Education International 410 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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