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जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास
‘शासनदीप', ‘समाजोद्धारक' आदि पदों से अलंकृत किया । इनकी 10 शिष्याएँ हैं-तरूणश्रीजी, पद्मयशाश्रीजी, पूर्णयशाश्रीजी, भास्वरयशाश्रीजी, दिव्ययशाश्रीजी, नलिनीयशाश्रीजी, देविनीयशाश्रीजी, चारूयशाश्रीजी, विमलयशाश्रीजी, प्रणवयशाश्रीजी । पौत्र शिष्याएँ- निर्वेदयशाश्रीजी, चंदनबालाश्रीजी, पीयूषकलाश्रीजी, भव्ययशाश्रीजी, मुक्तिमाला श्रीजी, निरागयशाश्रीजी, कारूण्ययशाश्रीजी, अक्षतयशा श्रीजी, कामितयशा श्रीजी 1356
5.3.7.6 श्री ललितप्रभाश्रीजी ( संवत् 1995 के पश्चात् से वर्तमान )
श्री भक्ति श्रीजी के शिष्या - परिवार में ललितप्रभाजी एक तेजस्वी वर्चस्वी साध्वी हुई हैं, इनके द्वारा लगभग 100 मुमुक्षु आत्माएँ संयम मार्ग पर आरूढ़ हुई। ये राजस्थान के राणीबाग वासी हीराचंदजी एवं अंशीबाई की सुपुत्री थीं। रोडला निवासी श्री जसराजजी के साथ जिस दिन विवाह हुआ, उसके दूसरे दिन ही ये वैधव्य को प्राप्त हो गईं। संसार की क्षणभंगुरता को देखकर तीव्र वैराग्य भाव से 19 वर्ष की उम्र में भक्ति श्रीजी के चरणों में इन्होंने अपना जीवन समर्पित कर दिया। दीक्षा के पश्चात् इन्होंने तीन मासक्षमण, श्रेणीतप, सिद्धितप, भद्रतप, नवकारतप, सिंहासनतप, समवसरण तप, अट्टम, छट्ठ तप, 35 वर्धमान ओली, बीस स्थानक आदि विविध तपस्याएँ की। साथ ही स्थान-स्थान पर शिविरों का फल संचालन कर युवापीढ़ि को धर्म की ओर उन्मुख किया। शासन प्रभावना में भी इनका योगदान अविस्मरणीय है, दो भव्य मंदिरों का निर्माण, 15 उजमणां, उपाश्रय, पाठशालाएँ, उपधान, छ' रिपालित संघ इनकी सशक्त प्रेरणा का प्रतिल है। 400 अट्ठम तप की अनुमोदना निमित्त पालीताणाघेटी के पास 20 विहरमान की 20 देहरी का निर्माण करवाकर तप-प्रसंग पर होने वाले व्यर्थ आडंबर को दूर किया। इनकी 13 शिष्याएँ एवं 51 प्रशिष्याओं की नामावली इस प्रकार है- श्री स्नेहलता श्रीजी, हर्षप्रभाश्रीजी, विश्वपूर्णाश्रीजी, लक्षगुणाश्रीजी, ललितयशा श्रीजी, लक्षितप्रज्ञाश्रीजी, कल्पशीला श्रीजी, कल्परत्नाश्रीजी, दक्षरत्नाश्रीजी, सम्यग्रनाश्रीजी, रश्मिरेखाश्रीजी, शासनदर्शनाश्रीजी, दर्शनप्रिया श्रीजी ये 13 शिष्याएँ हैं, तथा प्रशिष्याएँ- भव्यगुणाश्रीजी, ज्योतिप्रज्ञाश्रीजी, दिव्यप्रज्ञाश्रीजी, श्रुतदर्शिताश्रीजी, शीलगुणाश्रीजी, फुल्लप्रज्ञाश्रीजी, मतिप्रज्ञाश्रीजी, मुक्तिरसाश्रीजी, अतुलप्रज्ञाश्रीजी, दीक्षितप्रज्ञाश्रीजी, शाश्वतप्रज्ञा श्रीजी, रत्नत्रया श्रीजी, जयवर्धनाश्रीजी, समकीतगुणाश्रीजी, निखिलगुणाश्रीजी, सिद्धिरक्षिताश्रीजी, श्रुतरक्षिताश्रीजी, ज्योतिप्रज्ञाश्रीजी, तत्त्वप्रज्ञाश्रीजी, सुविनीतप्रज्ञाश्रीजी, आदर्शप्रज्ञाश्रीजी, नम्रदर्शिता श्रीजी अक्षयरसाश्रीजी, आगमरसाश्रीजी, अनंतरसाश्रीजी, साहित्यरसाश्रीजी, मुक्तिपूर्णाश्रीजी, विनीतपूर्णाश्रीजी, संवेगपूर्णाश्रीजी, विरागपूर्णाश्रीजी, चिंतनपूर्णाश्रीजी, सुनयनपूर्ण श्रीजी, कोमलपूर्णाश्रीजी, वैराग्यदर्शिता श्रीजी, हितेशपूर्णाश्रीजी, सम्यग्गुणाश्रीजी, रवीन्द्रगुणाश्रीजी, सिद्धान्तगुणाश्रीजी, समर्पितगुणाश्रीजी, शासनदर्शिताजी, कल्पदर्शिताजी, गुणज्ञदर्शिताश्रीजी, निर्वेदगुणाश्रीजी, रत्नयशाश्रीजी, हर्षितप्रज्ञाश्रीजी, रक्षितप्रज्ञाश्रीजी, कीर्तिशीलाश्रीजी, संयमशीला श्रीजी, पीयूषरत्नाश्रीजी, लब्धिरत्नाश्रीजी, भवितरत्नाश्रीजी, और मोक्षप्रिया श्रीजी । ये सभी श्रमणियाँ अपने उच्च संयमी जीवन, तपोमय चरित्र एवं उत्कृष्ट आचार-विचार द्वारा गुरूणी की गरिमा में अभिवृद्धि करती हुईं विचरण कर रही हैं। 357
5.3.7.7 श्री राजु श्रीजी (सं. 2006- >
इनका जन्म राधनपुर के श्री जगजीवनदास की धर्मपत्नी मणिबहन की कुक्षि से संवत् 1979 में हुआ। विवाह के पांच वर्ष पश्चात् पति और दो पुत्रियों के वियोग ने इन्हें संसारी जीवन से विरक्त कर दिया, अतः संवत् 2006
356. वही, पृ. 512
357. वही, पृ. 494-99
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