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________________ श्वेताम्बर परम्परा की श्रमणियाँ जयप्रभाश्रीजी - चन्द्रयशाश्रीजी, दिव्ययशाश्रीजी, तत्त्वयशाश्रीजी, परागयशाश्रीजी सुलोचनाश्रीजी - निरंजनाश्रीजी, निर्मलाश्रीजी, आर्यरक्षाश्रीजी, कनकप्रभाश्रीजी - मदनरेखाश्रीजी सद्गुणाश्रीजी - प्रियंकराश्रीजी, सौम्यगुणाश्रीजी चंद्रकलाश्रीजी - विपुलयशाश्रीजी, संवेगरसाश्रीजी, मौनरसाश्रीजी, शाश्वतरसाश्रीजी मयूरकलाश्रीजी - नंदियशाश्रीजी, कैरवयशाश्रीजी, प्रशांतयशाश्रीजी, विरतियशाश्रीजी, विरागयशाश्रीजी, नम्राननाश्रीजी, तत्त्वरसाश्रीजी, अर्पितयशाश्रीजी मृगलोचनाश्रीजी - सम्यग्दर्शनाश्रीजी, चिरागरत्नाश्रीजी, पुण्यरत्नाश्रीजी जयरेखाश्रीजी - उपशमरसाश्रीजी सम्यरेखाश्रीजी - शासनरसाश्रीजी, संयमरसाश्रीजी, सिद्धान्तरसाश्रीजी नलिनीयशाश्रीजी - निरागयशाश्रीजी काश्मीराश्रीजी - सिद्धिदर्शनाश्रीजी, कीर्तिदर्शनाश्रीजी, कारूण्यदर्शनाश्रीजी उज्जवलयशाश्रीजी - अचिन्त्ययशाश्रीजी सुनितयशाश्रीजी - जिनदर्शिताश्रीजी, दिव्यदर्शिताश्रीजी, ज्ञानदर्शिताश्रीजी, श्रुतदर्शिताश्रीजी, शौर्यदर्शिताश्रीजी पुनीतयशाश्रीजी - क्षमादर्शिताश्रीजी, हितदर्शिताश्रीजी विचक्षणश्रीजी, महापद्माश्रीजी, रत्नरेखाश्रीजी, महानंदाश्रीजी, मुक्तिप्रियाश्रीजी, रत्नरेखाश्रीजी, महानंदाश्रीजी, तथा विश्वनंदिताश्रीजी का शिष्या परिवार नहीं है। 5.3.7.5 डॉ. श्री निर्मलाश्रीजी (1987 - से वर्तमान) प्रज्ञावन्त साध्वी निर्मलाश्रीजी अमदाबाद निवासी स्वरूपचंदजी व सूरजबहन की सुसंस्कारी कन्या-रत्न हैं, संवत् 1978 में इनका जन्म हुआ, जन्म के दो वर्ष पश्चात् ही पिता के स्वर्गवास से माता को इस असार संसार से विरक्ति हो गई, उसने नव वर्ष की बालिका को लेकर संवत् 1987 आषाढ़ शुक्ला 8 के दिन चाणस्मा में श्री धनश्रीजी के सान्निध्य में दीक्षा अंगीकार की। श्री निर्मलाश्रीजी अपनी मातुश्री सुनंदाश्रीजी की शिष्या बनीं। साध्वी निर्मलाश्रीजी ने एम. ए. की परीक्षा सर्वप्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण करके 'भारतीय दर्शन' पर पी.एच.डी. की उपाधि बिहार की वैशाली विद्यापीठ से प्राप्त की 'जैन दर्शन में अभाव मीमांसा' विषय पर भी इन्होंने शोधपरक निबंध लिखा है। पालनपुर में आपने 29 के लगभग स्कूलों व संस्थाओं में जाहिर प्रवचन किया, व 'संस्कार अध्ययन सूत्र' का आयोजन किया। आपके शिविर आयोजन के प्रभाव से 35 बहनों ने दीक्षा अंगीकार की, कईयों ने श्रावक-व्रत अंगीकार किये। आप अत्यंत प्रज्ञावन्त साध्वीजी हैं, अपनी तीक्ष्ण, बुद्धि से कलकत्ता में सन् 1958 में बड़े-बड़े मिनिस्टर, जज आदि गणमान्य लोगों के समक्ष शतावधान के प्रयोग किये। आपका यह प्रयोग भारत की महिला समाज में सर्वप्रथम था। इस अवधान द्वारा आपने समस्त साध्वी समाज को गौरवान्वित किया है। इनकी धर्म प्रभावना को देखकर स्थान-स्थान पर श्री संघ द्वारा इन्हें 'शासनप्रभावक', |407|| Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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