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________________ श्वेताम्बर परम्परा की श्रमणियाँ वर्ष की दीर्घायु में 60 वर्ष शुद्ध संयम का पालन कर ये समाधिपूर्वक स्वर्गवासिनी हुईं। श्री लाभ श्री की पाँच विदुषी शिष्याएँ हैं- श्री मंगलाश्रीजी, सुशीलाश्रीजी, मनोहरश्रीजी, चंद्रप्रभाश्रीजी तथा कंचनश्रीजी। श्री कंचनश्रीजी की शिष्या लावण्यश्रीजी अत्यंत विदुषी शासन प्रभाविका साध्वी हैं उनका परिचय पृथक् रूप से अंकित है। शेष प्रशिष्याओं के नामोल्लेख मात्र उपलब्ध हुए हैं जो इस प्रकार हैं-श्री स्नेहलताश्रीजी, श्री अभयप्रज्ञाश्रीजी, व्रतनंदिताश्रीजी, सूर्यप्रभाश्रीजी, शुभंकराश्रीजी, मालिनीयशाश्रीजी, शासनदर्शिताश्रीजी, श्रेयःवर्धनाश्रीजी, आत्मप्रभाश्रीजी, प्रज्ञाश्रीजी, अर्केन्दुश्रीजी, कैलासश्रीजी, हर्षपूर्णाश्रीजी, कैवल्यरत्नाश्रीजी, धैर्यप्रज्ञाश्रीजी, मौनरलाश्रीजी, प्रशीलयशाश्रीजी, संयमदर्शिताश्रीजी, मैत्रीदर्शिताश्रीजी, शीलरत्नाश्रीजी, संवेगरत्नाश्रीजी, श्रुतवर्धनाश्रीजी, भावितरत्नाश्रीजी, साधि तरत्नाश्रीजी, मोक्षरत्नाश्रीजी, अर्पितगुणाश्रीजी, समर्पितगुणाश्रीजी, जिनेन्द्रप्रभाश्रीजी, सिद्धिपूर्णाश्रीजी, अक्षयरत्नाश्रीजी, मैत्रीपूर्णाश्रीजी, जिनरक्षिताश्रीजी, समकितरत्नाश्रीजी, सुलसाश्रीजी, पद्मरेखाश्रीजी, अर्हत्पद्माश्रीजी, मृगनयनाश्रीजी, मुक्तिनिलयाश्रीजी, भव्यदर्शिताश्रीजी, रम्यदर्शनाश्रीजी, चंद्रयशाश्रीजी, तरूणश्रीजी, भद्रगुप्ताश्रीजी3521 5.3.7.2 श्री मनोहरश्रीजी (संवत् 1967 के लगभग) आगमप्रज्ञ, दर्शनप्रभावक मुनि श्री जंबूविजयजी की मातेश्वरी एवं श्री भुवनविजयजी की संसारपक्षीया धर्मसहचरी मनोहरश्रीजी स्वयं भी तप-संयम की जीवन्त प्रतिमूर्ति है। झींझूवाड़ा के पोपटभाई और बेनीबहन को इनका जन्मप्रदाता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। पति के दीक्षित होने पर ये स्वयं भी 45 वर्ष की उम्र में आठ वर्षीय पुत्र के साथ श्री लाभश्रीजी (बहिन) के पास दीक्षित हो गईं। आत्मा को कर्मभार से मुक्त करने के लिये इन्होंने उग्र तपस्याएँ की- मासक्षमण, चत्तारि, अट्ठ दस दोय, सिद्धितप, श्रेणीतप, समवसरण तप, 5 वर्षीतप, 20, 16, 11, 10 उपवास, 7 अठाई, वर्धमान तप की 60 ओली, आजीवन एकासणा आदि तप किया। 100 वर्ष की उम्र में भी ये सदा अप्रमत्त जीवन जीती रहीं। अपने पीहर पक्ष से 70 व श्वसुरपक्ष से 6 आत्मार्थी जनों की प्रतिबोधिका रहीं। स्वयं की 45 शिष्या-प्रशिष्याएँ थीं, सबके लिये उनका एक ही वाक्य था-'परचिंता मां पड़शो नहीं, आत्मचिंता ज करजो' ऐसी तपस्विनी, दीर्घायुषी महासाध्वी का आशीर्वाद प्राप्त करके साधु-साध्वी श्रावक-श्राविका अपना अहोभाग्य समझते थे । श्री मनोहराश्रीजी की तीन शिष्याएँ चारित्रश्रीजी, महिमाश्रीजी, विमलश्रीजी हैं, आगे इन तीनों का विशाल परिवार है। चारित्रश्रीजी का शिष्या परिवार-प्रभाश्रीजी, चंद्रप्रभाश्रीजी, मंजुलाश्रीजी, चंद्रकलाश्रीजी, चंद्रयशाश्रीजी, महायशाश्रीजी, चंद्रनंदिताश्रीजी, अमितप्रज्ञाश्रीजी, अक्षयप्रज्ञाश्रीजी, अनंतप्रज्ञाश्रीजी, अर्पणरसाश्रीजी, आगमरसाश्रीजी, आर्जवरसाश्रीजी, अमीझरणाश्रीजी, पावनरसाश्रीजी, अपूर्वरसाश्रीजी। विमलश्रीजी की 3 शिष्याएँ हैं- गुणश्रीजी, हेमश्रीजी, चारूलताश्रीजी। 5.3.7.3 प्रवर्तिनी महिमाश्रीजी (संवत् 1984-2042) श्री महिमाश्री का जन्म गुर्जरदेश में स्थित राधनपुर के श्रेष्ठी श्री जगजीवनदास की धर्मपत्नी मणिबहेन की कुक्षि से संवत् 1960 में हुआ। वहीं के मणिलालभाई के साथ इनका विवाह हुआ, किंतु चार मास के पश्चात् ही ये विधवा हो गईं। मनोहरश्रीजी के सत्संग से वैराग्य की भावना तीव्र हुई तो संवत् 1984 आषाढ़ शुक्ला 3 के दिन दीक्षा अंगीकार की। अल्पवय से ही इन्होंने सिद्धितप, चत्तारि अट्ठ दस दोय, समवसरण, सिंहासन तप 16, 352. 'श्रमणीरत्नो', पृ. 504-505 353. वही, पृ. 500-501 405 For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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