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जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास
दीक्षा स्थान
महुवा महुवा महुवा
भावनगर
सूरत
5.3.6.9 श्री सूर्यप्रभाश्रीजी महाराज की शिष्या-प्रशिष्याएँ 50 क्रम साध्वी नाम जन्म संवत् स्थान दीक्षा संवत् तिथि 1. श्री सौम्यप्रभाश्रीजी 1999 करांची 2016 मा. शु. 5
श्री सुवर्णप्रभाश्रीजी 2001 करांची 2016 मा. __ श्री प्रियधर्माश्रीजी 2005 करांची 2026 मा. शु. 3
श्री कीर्तिप्रभाश्रीजी 2002 भावनगर 2026 मा. कृ. 5
श्री कल्परत्नाश्रीजी 2000 सूरत 2026 मा. कृ. 7 6. श्री तीर्थरत्नाश्रीजी 2010 पालीताणा 2034 ___फर. 12
श्री तेजरत्नाश्रीजी 2009 सूरत 2034 मा. शु. 5 8. श्री जयरत्नाश्रीजी 2009 पालीताणा 2037 9. श्री ज्ञेयरत्नाश्रीजी 2013 बोटाद
2037 श्री शासनरत्नाश्रीजी 2016 मोरीआ
2038 11. श्री मोक्षरत्नाश्रीजी 2017 शिवेन्द्रनगर 2038 फा. शु. 3 12. श्री कुलरत्नाश्रीजी 2018 मुंबई 2043 वै. शु. 6 13. श्री रत्नधर्माश्रीजी - तावीड़ा (सौ.) 2043 वै. शु. 6
पालीताणा
गुरूणी नाम श्री सूर्यप्रभाश्रीजी श्री सौम्यप्रभाश्रीजी श्री सौम्यप्रभाश्रीजी श्री सौम्यप्रभाश्रीजी श्री सौम्यप्रभाश्रीजी श्री सौम्यप्रभाश्रीजी श्री सुवर्णप्रभाश्रीजी श्री सौम्यप्रभाश्रीजी श्री सौम्यप्रभाश्रीजी श्री सौम्यप्रभाश्रीजी श्री सौम्यप्रभाश्रीजी श्री कल्परत्नाश्रीजी श्री सूर्यप्रभाश्रीजी
2037
चै. कृ. 10
ना ना
सूरत मुंबई मुंबई
मुंबई
मुंबई
मुंबई
महुवा
5.3.7 आचार्य श्री नीतिसूरीश्वरजी का श्रमणी-समुदाय
तपागच्छ के शासनप्रभावक गच्छाधिपति आचार्य विजयनीतिसूरिजी महाराज की आज्ञानुवर्तिनी श्रमणियों में श्री भुवनश्रीजी गुणश्रीजी आदि का नाम शीर्षस्थान पर है, ये शांतमूर्ति, परमविदुषी तपस्विनी महासाध्वी थीं, इनके परिवार की ललितप्रभाश्रीजी के उपदेशों से इस समुदाय में साध्वियों की आशातीत वृद्धि हुई, वर्तमान में श्री महिमाश्रीजी, नवलश्रीजी, लावण्यश्रीजी तथा निर्मल श्रीजी का विशाल श्रमणी-परिवार पूरे भारत में विचरण कर जैनधर्म की पताका को फहराने में अपना अप्रतिम योगदान दे रहा है, वर्तमान में इनकी संख्या 398 आंकी गई है। समुदाय स्थित सभी श्रमणियों की उपलब्ध गौरव गाथा यहाँ अंकित कर रहे हैं।
5.3.7.1 श्री लाभश्रीजी (संवत् 1967-2027)
झींझुवाड़ा में संवत् 1943 को जन्म लेकर ये 14 वर्ष की उम्र में वैधव्य को प्राप्त हुईं, पश्चात् संवत् 1967 माघ कृष्णा 2 के दिन श्री गुणश्रीजी के चरणों में दीक्षा अंगीकार की। इन्होंने स्वजीवन में तप को महत्त्वपूर्ण स्थान दिया, छ?, अट्ठम अठाई, 16 आदि बड़ा या छोटा कोई भी तप हो, एकासणे सतत चालु रखे। स्वजनों को प्रतिबोधित कर आत्मकल्याण के मार्ग पर बढ़ाने में भी इनका अपूर्व योगदान रहा, यही कारण है कि इनके परिवार की 17 पुण्यात्माओं ने दीक्षा अंगीकार की, जो अपने वैदुष्य एवं धर्म प्रभावक रूप में संघ में विख्यात हैं। 84
350. वही, पृ. 472 351. संपादक-श्री बाबूलाल जैन, समग्र जैन चातुर्मास सूची, ईसवी सन् 2005 पृ. 188
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