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________________ मुंबई मुंबई श्वेताम्बर परम्परा की श्रमणियाँ 62. श्री सुव्रतयशाश्रीजी 2011 कपड़वंज 2035 वै. शु. 6 पालीताणा श्री अतुलयशाश्रीजी 63. श्री सिद्धियशाश्रीजी 2014 बीदड़ा 2036 फा. शु. 6 श्री मंजुलयशाश्रीजी 64. श्री कमलयशाश्रीजी 2036 फा. कृ. 5 मुंबई श्री मंजुलयशाश्रीजी 65. श्री भाग्ययशाश्रीजी 2023 मुंबई 2036 ज्ये. शु. 10 श्री यशाश्रीजी 66. श्री अमरयशाश्रीजी 2017 कपड़वंज 2936 मा. कृ. 5 कपड़वंज श्री अतुलयशाश्रीजी 67. श्री रिद्धियशाश्रीजी 2023 तलाजा 2044 फा. कृ. 8 तलाजा श्री अतुलयशाश्रीजी 68. श्री चैतन्ययशाश्रीजी 2021 मेंदरड़ा 2046 फा. शु. 3 राजकोट श्री अतुलयशाश्रीजी 69. श्री गीर्वाणयशाश्रीजी - मोजीदड़ 2046 फा. शु. 3 राजकोट श्री अतुलयशाश्रीजी 5.3.6.6 श्री सूर्यप्रभाश्रीजी (संवत् 1995 के लगभग) इनका जन्म वेडछा ग्राम में हुआ, नवसारी निवासी, छगनभाई (वर्तमान में आचार्य श्री विजयकुमुदचन्द्रसूरि) के साथ विवाह संबंध हुआ। संयम-साधना की उत्कट भावना से दोनों ने दीक्षा अंगीकार की, ये श्री गुणश्रीजी की शिष्या बनीं। इनमें भक्तियोग के साथ वैयावच्च का विशिष्ट गुण था, इनकी तपाराधना भी अभूतपूर्व थी, मासक्षमण, श्रेणीतप, सिद्धितप, वर्धमान तप की 36 ओली, 500 आयंबिल आदि दीर्घ व कठोर तपस्याएँ की। वडोदरा के देरापोल उपाश्रय में आपका स्वर्गवास हुआ। आपकी शिष्या-प्रशिष्याओं का परिचय तालिका में दिया गया है। 5.3.6.7 श्री विद्युत्प्रभाश्रीजी (संवत् 2003-स्वर्गस्थ) ये आचार्य विजयनेमिसूरीश्वर जी की संसारपक्षीया भतीजी थीं। मधुपुरी के श्रेष्ठी चुनीभाई के साथ इनका विवाह संबंध हुआ, उनके स्वर्गवास के पश्चात् संवत् 2003 काल्गुन कृष्णा 5 कदम्बगिरि तीर्थ में श्री देवीश्री जी की शिष्या के रूप में दीक्षा अंगीकार की, पुत्री भी शशिप्रभाजी के नाम से ख्यातनामा साध्वी है। विद्युत्प्रभाजी ने शासन-प्रभावना के विविध कार्य-जिनालय जीर्णोद्धार, प्रतिष्ठापन, पुस्तक प्रकाशन आदि करवाये। इनकी नेश्राय की 24 से अधिक साध्वियाँ रत्नत्रय की आराधना में संलग्न हैं।48 5.3.6.8 श्री पुण्यप्रभाश्रीजी आपकी निष्कारण करूणा एक भाई ने लिखी- मैं सारा दिन परिवार के लिये मेहनत मजदूरी करता, पर परिवार में मेरी कोई कदर नहीं, शिक्षित होने पर भी मेरी शिक्षा फली नहीं, परिवार में मेरे प्रति किसी का सम्मान नहीं, अतः मैंने आत्महत्या का निर्णय किया। साध्वीजी को शंका हुई, उन्होंने मुझे बुलवाया, मुझे समझाया ऐसी शांति प्रदान की, कि आज तक मेरा मन शांत है। अब जटिल परिस्थितियों में भी मस्तिष्क संतुलित रहता है।349 साध्वी पुण्यप्रभाश्रीजी जैसी सैंकड़ों साध्वियाँ वर्तमान में जन-मानस को सही दिशादर्शन देकर सत्पथ पर लगाने का महनीय काय कर रही हैं। 348. वही, पृ. 841 349. वही, 470 403 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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