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________________ श्वेताम्बर परम्परा की श्रमणियाँ 5.3.6.1 श्री सौभाग्यश्रीजी ( संवत् 1946-96 ) सौराष्ट्र के बोटाद गाँव में संवत् 1924 में श्री भगुभाई जीवाजी के यहाँ आपका जन्म हुआ 14 वर्ष की उम्र में विवाह और 16 वर्ष की उम्र में वैधव्य को प्राप्त होने पर पंजाब के पू. लब्धिविजयजी महाराज के उपदेश से वैराग्य की ज्योति प्रज्वलित हो गई। दीक्षा के लिये सतत संघर्ष करने पर भी अनुमति प्राप्त नहीं हुई तो 'चूड़ा' गाँव की धर्मशाला में स्वतः संयमी वेश ग्रहण कर लिया, अंततः परिवारी जनों ने 'सायला' दीक्षा की अनुमति दी। संवत् 1946 वैशाख शुक्ला 2 को श्री खांतिविजयजी म. के वरद हस्तों से दीक्षित होकर श्री देवश्री जी की शिष्या बनीं। आपने अनेक मंदिरों के जीर्णोद्धार एवं निर्माण की प्रेरणा दी। अनेक शिष्या - प्रशिष्याओं के मार्गदृष्टा बने! विशेष रूप से बालुचर की महारानी मीनाकुमारी जो प्रतिदिन पान के 50 बीड़े खाती थी, उसे बीस स्थानक की ओली तप से जोड़कर सदा-सदा के लिये व्यसनमुक्त कर दिया। उसने आपकी प्रेरणा से खंभात में धार्मिक पाठशाला की स्थापना करवाई, आज भी उस पाठशाला से अनेकों श्राविकाएँ एवं साध्वियाँ ज्ञानार्जन करती हैं। संवत् 1996 को पालीताणा में आपका समाधिपूर्वक स्वर्गवास हुआ। 343 5.3.6.2 श्री जिनेन्द्र श्रीजी ( संवत् 1989-2043 ) खंभात निवासी शेठ भोगीलालभाई की धर्मपत्नी मंगलाबहेन की कुक्षि से संवत् 1964 में इनका जन्म हुआ । लग्न के छः मास पश्चात् ही वैधव्य के दुःख से संसार की नश्वरता का बोधकर ये अन्य दो सखियों- रेवाबहेन और कांताबहेन के साथ संवत् 1989 ज्येष्ठ शुक्ला 4 के शुभ दिन स्वयं दीक्षा अंगीकार कर गुणश्रीजी की शिष्या बनीं। आगम एवं धर्म-ग्रंथों का गहन अभ्यास किया, अपने स्वजन, संबंधी तथा अन्य कई मुमुक्षु बहनों को संयम पथ पर आरूढ़ किया। संवत् 2043 बोटाद चातुर्मास में ये परलोकवासिनी हुईं। 344 इनकी श्री ऋजुमतिश्रीजी, मतिधरा श्रीजी, श्रुतधराश्रीजी, भूषणरत्नाश्रीजी, निधिरत्नाश्रीजी, जिनाज्ञा श्रीजी, विशालनंदिनी श्रीजी, राजनंदिनी श्रीजी, पृथ्वीधराश्रीजी, वैराग्यपूर्णाश्रीजी, श्वेतधराश्रीजी, पूर्वधराश्रीजी, कोविदरत्नाश्रीजी, प्रतिबोधरत्नाश्रीजी, जैनम्धराश्रीजी, हर्षोदया श्रीजी, हर्षलताश्रीजी, चंद्रहर्षाश्रीजी, मुक्तिसेनाश्रीजी, अर्हत्सेनाश्रीजी, तत्त्वरूचि श्रीजी, धन्यसेनाश्रीजी, मुक्तिसेनाश्रीजी, काव्ययशाश्रीजी आदि के अतिरिक्त कुछ शिष्या - प्रशिष्याओं का परिचय प्राप्त हुआ वह तालिका में दे रहे हैं 1345 5.3.6.3 श्री जिनेन्द्र श्रीजी का शिष्या - परिवार क्रम साध्वी नाम 1. 2. 3. श्री कीर्तिश्रीजी श्री जयप्रभाश्रीजी श्री कांतगुणाश्रीजी श्री कैलास श्रीजी जन्म संवत् स्थान दीक्षा संवत् तिथि खंभात खेड़ा गोधरा खंभात 4. 343. 'श्रमणीरत्नो', पृ. 423 344. वही, पृ. 450 345. वही, पृ. 451-52 Jain Education International 399 For Private Personal Use Only दीक्षा स्थान खंभात खंभात खंभात खंभात गुरुणी नाम श्री जिनेन्द्र श्रीजी श्री जिनेन्द्र श्रीजी श्री जिनेन्द्र श्रीजी श्री जिनेन्द्र श्रीजी www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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