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चिकित्सा में निपुण थी। श्री प्रमोदश्री जी, श्री सुमनकुमारी जी द्वारा भी कई कलात्मक कृतियाँ निर्मित हुई। श्री संघमित्र जी, श्री राजिमती जी, श्री जतनकंवर जी, श्री कनकश्री जी, श्री यशोधरा जी, श्री स्वयंप्रभा जी आदि कई श्रमणियों ने चिंतनप्रधान उत्तम कोटि का साहित्य जन जीवन को प्रदान किया। महाश्रमणी एवं संघ महानिदेशिका साध्वी प्रमुखा श्री कनकप्रभा जी की अजस्र ज्ञान गंगा से लगभग 115 पुस्तकों का लेखन व सम्पादन हुआ है, जो अपने आप में अनूठा कार्य है। जयश्री जी आदि कई श्रमणियों की उत्कृष्ट काव्य कला की विद्वद्जनों ने मुक्त कंठ से प्रशंसा की है, अमितप्रभा जी आदि कई साध्वियाँ शतावधाती हैं। श्री लावण्यप्रभा जी उज्ज्वलप्रभा जी, सरलयशा जी, सौभाग्ययशा जी आदि कई श्रमणियों ने शिक्षा के अत्युच्च शिखर को छुआ है। समणी साधिकाओं में भी श्री स्थितप्रज्ञा जी, कुसुमप्रज्ञा जी, उज्ज्वलप्रज्ञा जी, अक्षयप्रज्ञा जी आदि विदुषी चिन्तनशील समणियाँ हैं, जो उच्च कोटि का साहित्य सृजन कर समाज को नई दिशा प्रदान कर रही हैं तथा सुदूर देश विदेशों में जाकर ध्यान, योग, जीवन विज्ञान आदि का प्रशिक्षण दे रही हैं।
इस प्रकार सप्तम अध्याय में आचार्य भिक्षु से प्रारम्भ कर आचार्य महाप्रज्ञ जी के शासनकाल तक की कुल 1697 श्रमणियाँ एवं 101 समणियों का परिचय दिया है । इन श्रमणियों का इतिहास संवत् 1821 से 2053 तक सम्पूर्ण आलोकित है, उसके पश्चात् नौ-दस वर्षों की अवधि में दीक्षित होने वाली श्रमणियों की सम्पूर्ण जानकारी उपलब्ध नहीं हो सकी। अतः संवत् 2053 के पश्चात् का क्रमबद्ध विवरण हम प्रस्तुत शोध प्रबन्ध में नहीं दे पाए। कतिपय समणियाँ आगे जाकर श्रमणी दीक्षा अंगीकार कर लेती हैं, उनके दोनों स्थानों पर नाम भिन्न होने से यह निर्णय होना कठिन है कि वह पूर्व वर्णित है या उससे भिन्न है। ऐसी स्थिति में हमने उसके समणी रूप को छोड़कर श्रमणी रूप में परिचय देने का प्रयास किया है, तथापि पुनरावृत्ति सम्भव है।
अष्टम अध्याय : उपसंहार
शोध-प्रबन्ध के अन्त में उपसंहार स्वरूप जैन श्रमणी संघ का तप-त्यागमय स्वरूप दर्शाया गया है तथा विश्व इतिहास में उसकी महत्ता स्थापित की गई हैं। प्राचीनकाल से अर्वाचीन काल तक की श्रमणियों के योगदान की सामूहिक यशोगाथाएँ भी गाई गई हैं। श्रमणियों की देन व्यापक और बहुमुखी है, उसमें शोध की पर्याप्त सामग्री है। यहाँ उन सब पहलुओं पर भी विचार किया गया है, साथ ही श्रमणियों से संदर्भित अनेक प्रश्न जो वर्तमान समय में चर्चित हैं, उनके समाधान की आवश्यकता पर बल दिया गया है।
इस प्रकार प्रस्तुत शोध-ग्रंथ में श्रमण संस्कृति की धरोहर पूज्या 8153 श्रमणियों का इतिहास पूर्व पीठिका एवं उपसंहार सहित आठ अध्यायों में वर्णित है, इनके अतिरिक्त हजारों श्रमणियों का नामोच्चारण पूर्वक स्मरण किया गया है। जिनके नाम उपलब्ध नहीं हुए, उन्हें संख्या में परिगणित किया है। यह श्रमणी इतिहास अतीत को जानने का दर्पण है तो वर्तमान श्रमणी जीवन को नापने का थर्मामीटर है तथा भावी जीवन के लिये आत्म आरोग्यता दिलाने वाला अद्वितीय पाथेय भी है। श्रमणी संघ के इस विराट स्त्रोत के प्रत्यक्ष दर्शन कर हम हजारों वर्षों की श्रमणियों के साथ एक सूत्र में आबद्ध हो जाते हैं।
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