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________________ उत्कृष्ट काव्य कला की विद्वानों ने भूरि भूरि प्रशंसा की है। श्री पन्नादेवी जी ने 'काणुंजी भैरूं नाका' पर होने वाले भीषण पशु संहार को बंद करवाया था। प्रवर्तिनी श्री उमरावकंवरजी उच्चकोटि की योगसाधिका, मधुर उपदेष्टा एवं चिन्तनशीला साध्वी हैं। रत्नवंश की प्रमुखा साध्वी श्री सरदारकुंवर जी, श्री मैनासुन्दरी जी अपनी ओजस्वी प्रवचनशैली और स्पष्ट विचारधारा के लिये प्रसिद्ध थीं। श्री उम्मेदकंवर जी उत्कृष्ट, त्यागी तपस्विनी आदर्श श्रमणी हैं। इसी परम्परा की और भी कई साध्वियाँ विदुषी डॉक्टरेट व शासन प्रभाविका हैं। मेवाड़ परम्परा में श्री नगीनाजी शास्त्रचर्चा में निपुण महासाध्वी हुईं। इनकी चन्दूजी, इन्द्राजी, कस्तूरां जी, श्री वरदूजी आदि कई शिष्याएँ महातपस्विनी और उग्र अभिग्रहधारी थी। श्री श्रृंगारकुंवर जी निर्भीक स्पष्टवक्ता और समयज्ञा साध्वी थीं। आचार्य श्री एकलिंगदास जी महाराज के पश्चात् मेवाड़ की विश्रृंखलित कड़ियों को इन्होंने ही टूटने से बचाया। श्री प्रेमवती जी राजस्थान सिंहनी के नाम से विख्यात साध्वी थीं, अहिंसा के क्षेत्र में इनका योगदान सराहनीय था । क्रियोद्धारक श्री हरजी ऋषि जी की परम्परा में मुख्य रूप से तीन शाखाएँ विद्यमान हैं, उन्हें कोटा सम्प्रदाय, साधुमार्गी सम्प्रदाय और दिवाकर सम्प्रदाय के नाम से जाना जाता है। यद्यपि श्री हरजीऋषि जी के क्रियोद्धार का काल संवत् 1686 के आसपास का है, किन्तु इनके साध्वी सम्प्रदाय का क्रमबद्ध इतिहास संवत् 1910 के लगभग हुई प्रवर्तिनी श्री खेतांजी का मिलता है। कोटा सम्प्रदाय श्री बड़ाकंवर जी का 52 दिन का संथारा प्रसिद्ध है। संथारे में 52 दिन ही नाग उनके दर्शन करने आता रहा। प्रवर्तिनी श्री मानकंवर जी विदर्भसिंह जी थीं, 45 शिष्या प्रशिष्याओं की संयमदात्री थीं। उपप्रवर्तिनी श्री सज्जनकुंवर जी ने डूंगला ग्राम के बाहर नवरात्रि पर होने वाली घोर पशुबलि को अपनी ओजस्वी वाणी से बंद करवाया था। प्रवर्तिनी प्रभाकंवर जी अनेक श्रमण श्रमणियों की संयम प्रेरिका आगमज्ञा साध्वी हैं। आचार्य हुक्मीचन्द्र जी महाराज की सम्प्रदाय में श्री रंगूजी विशिष्ट व्यक्तित्त्व की धनी साध्वी थीं। प्रवर्तिनी श्री रत्नकंवर जी आदर्श त्यागिनी थीं। श्री नानूकंवरजी चातुर्मास के 120 दिन में 5-7 दिन ही आहार ग्रहण करती थीं, उन्होंने दीक्षा के पूर्व कुष्ठ रोग से मृत्यु प्राप्त अपने पति की स्वयं अन्त्येष्टी क्रिया की थी। प्रवर्तिनी श्री आनन्दकंवर जी इतनी करूणामूर्ति थी, कि अपनी जान की परवाह किये बिना जीवदया के अनेक कार्य किये। घोर तपस्विनी श्री बरजूजी ने 82 दिन के उपवास कठोर कायक्लेश करते हुए किये थे। श्री मोता जी बृहद् श्रमणी संघ की जीवन निर्मातृ थीं। श्री नानूकंवर जी बहुभाषाविद् व आगम ज्ञान में निष्णात थीं। दिवाकर सम्प्रदाय में श्री साकरकंवर जी, श्री कमलावती जी अत्यन्त विदुषी शास्त्र मर्मज्ञा एवं ओजस्वी वक्ता थी । कृशकाया में अतुल आत्मबल की धनी श्री पानकंवर जी ने 49 दिन के संथारे में जिस प्रकार देहाध्यास का त्याग किया वह अद्भुत था। वर्तमान में डॉ. सुशील जी, डॉ. चन्दना जी, डॉ. मधुबाला जी, श्री सत्यसाधना जी, श्री अर्चना जी आदि धर्म की अपूर्व प्रभावना में संलग्न हैं। लगभग 400-500 वर्षो से अनवरत प्रवहमान उक्त छः क्रियोद्धारकों की परम्परा में आज तक हजारों श्रमणियाँ हो चुकी हैं, किन्तु प्रामाणिकता पूर्वक उनकी निश्चित् गणना नहीं हो पाई । सन् 2005 के गणनीय आँकड़ों में इनकी संख्या 2953 आंकी गई हैं, किन्तु कइयों के नाम प्रकाशित सूची में नहीं आ पाये हैं। लगभग तीन हजार श्रमणी - वैभव से सम्पन्न यह सम्प्रदाय आज अधिकांश श्रमण संघ में विलीन है। इनमें गुजराती बृहद् संघ, रत्नवंश, ज्ञानगच्छ, साधुमार्गी, नानकगच्छ और जयमल सम्प्रदाय की कतिपय श्रमणियों के Jain Education International (xcxcxviii) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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