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________________ के पश्चात् भी एक आचार्य के नेतृत्व में गतिशील है। इस सम्प्रदाय की साध्वियों के उल्लेख संवत् 1961 से प्राप्त होते हैं। संवत् 1961 में नाथीबाई आगमज्ञाता मारणान्तिक उपसर्गों में भी समताभाव रखने वाली साध्वी हुई थी। इन्होंने समाज में धर्म के नाम पर चल रहे अनेक आडम्बरों को दूर करवाया। सूर्यमंडल की अग्रणी श्री केसरबाई भद्र प्रकृति की समतावार निर्मल हृदया साध्वी थी। श्री ताराबाई सरल, सौम्य, वाणी वर्तन में एकरूप और अविरत स्वाध्यायशीला थी। श्री हीराबाई मधुरकंठी तपस्विनी प्रभावक प्रवचनकी थी। श्री वसुमती बाई प्रतिभावंत साध्वी थी। इनके तलस्पर्शी, विचार सभर गम्भीर आशय वाले प्रवचनों की कई पुस्तकें प्रकाशित हैं। बम्बई में एकबार 51 जोड़ों ने इनसे ब्रह्मचर्यव्रत ग्रहण किया था। दरियापुरी सम्प्रदाय की वर्तमान 112 साध्वियाँ हैं। उक्त ग्रंथ में हमने संवत् 1961 से संवत् 2060 तक की 163 श्रमणियों के परिचय और योगदान का उल्लेख किया है। क्रियोद्धारक श्री धर्मदास जी महाराज की परम्परा गुजरात, मालवा, मारवाड़, मेवाड़ आदि भारत के प्रायः सभी देशों में विस्तार को प्राप्त हुई हैं। गुजरात-परम्परा की श्रमणियों का इतिवृत्त संवत् 1718 से उपलब्ध होता है। यह परम्परा गुजरात, सौराष्ट्र, कच्छ में अनेक शाखाओं में विभक्त हुई। लिंबडी अजरामर सम्प्रदाय में बहुश्रुता एवं शत शिष्याओं की प्रमुखा श्री वेलबाई स्वामी श्री उज्ज्वल कुमारी जी आदि हुई। लिंबड़ी गोपाल सम्प्रदाय में सौराष्ट्र सिंहनी श्री लीलावती बाई 145 साध्वियों की कुशल संचालिका थी, इनके प्रवचनों की 'तेतलीपुत्र' आदि कई पुस्तकें हैं। इनकी कई मासोपवासी उग्र तपस्विनी आगमज्ञाता साध्वियों में श्री निरूपमाजी हैं, जो बत्तीस शास्त्रों को कंठस्थ कर महावीर युग की प्रत्यक्ष झलक दिखा रही है। गोंडल सम्प्रदाय में श्री मीठीबाई घोर तपस्विनी महाश्रमणी थी। वर्तमान में प्राणकुंवरबाई, मुक्ताबाई, तरूलताबाई, लीलमबाई, प्रभाबाई, हीराबाई विशाल श्रमणी संघ की संवाहिका आगमज्ञा साध्वियाँ हैं। बरवाला सम्प्रदाय में जवेरीबाई उग्र तपस्विनी साध्वी थी। बोटाद सम्प्रदाय में चम्पाबाई, मंजुलाबाई, कच्छ आठ कोटि मोटा संघ में श्री मीठीबाई, श्री जेतबाई, कच्छ नानीपक्ष में देवकुंवरबाई आदि दृढ़ संयम निष्ठ आत्मार्थिनी श्रमणियाँ हुई। वर्तमान में धर्मदास जी महाराज की गुजरात परम्परा में 726 के लगभग श्रमणियाँ विद्यमान हैं। मालव परम्परा में भी संवत् 1718 से साध्वियों का इतिहास उपलब्ध होता है, जिनके नाम श्री लाडूजी डायाजी आदि हैं। संवत् 1940 में श्री मेनकंवर जी परम वैराग्यवान प्रखर प्रतिभा सम्पन्न साध्वी थीं, उन्होंने भारत के वायसराय एवं सैलाना नरेश आदि राजाओं को अपने प्रवचनों से प्रभावित कर राज्य में अमारि की घोषणा करवाई थी। श्री हीराजी, दौलाजी, प्रवर्तिनी श्री माणककंवर जी, प्रवर्तिनी श्री महताबकंवर जी, प्रवर्तिनी श्री गुलाबकवर जी, प्रवर्तिनी श्री सज्जनकंवर जी आदि लोक हृदय में प्रतिष्ठित विद्वान् साध्वियाँ श्रमणी संघ की निधि हैं। ज्ञानगच्छ में श्री नन्दकंवर जी एवं उनका श्रमणी समुदाय जो आज लगभग 450 की संख्या में विचरण कर रहा है, वह अपने उत्कृष्ट संयम एवं आगम ज्ञान के लिए श्रमणी संघ में एक अद्वितीय मिसाल है। मारवाड़ परम्परा में श्री रघुनाथ जी, श्री जयमल जी, श्री कुशलो जी का श्रमणी समुदाय प्रमुख है। इन श्रमणियों का उल्लेख संवत् 1810 से आर्या केशर जी श्री चतरूजी श्री अमरू जी से प्राप्त होता है। संवत् 1851 में इस परम्परा की साध्वी श्री तेहकंवर जी ने विशाल आगम-साहित्य की दो बार प्रतिलिपि की थी। श्री चौंथाजी ने कई साधु साध्वियों को आगमों में निष्णात बनाया था। श्री सरदारकुंवर जी के द्वारा कई हस्तियाँ संयम मार्ग पर आरूढ़ होकर जिनधर्म की पताका को फहराने वाली बनी। श्री जड़ावांजी श्री भूरसुन्दरी जी की (xxxvii) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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