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डी. डिग्री प्राप्त धर्मप्रभाविका साध्वी है। डॉ. मुक्तिप्रभा जी डॉ. दिव्यप्रभा जी जैनधर्म व दर्शन के गूढ़ रहस्यों की अनुसंधातृ एवं द्रव्यानुयोग, चरणानुयोग की व्याख्याता है। वाणीभूषण श्री प्रीतिसुधाजी अपनी सधी हुई सुमधुर वाणी से हजारों की संख्या में जन समाज को व्यसनमुक्त कराने और कसाइयों के हाथों से पशओं को छुड़वाकर गोरक्षण संस्थाएँ स्थापित कराने की सार्थक भूमिका निभा रही हैं। इसी प्रकार डॉ. ज्ञानप्रभा जी, श्री सुशीलकंवर जी, श्री कुशलकवर जी, श्री किरणप्रभा जी, श्री आदर्शज्योतिजी, श्री नूतनप्रभा जी, श्री त्रिशलाकंवरजी आदि ऋषि सम्प्रदाय की सैंकड़ों विदुषी श्रमणियाँ हैं, जिनमें परिचय प्राप्त 210 श्रमणियाँ हमारे शोध प्रबन्ध में निबद्ध हुई हैं। ऋषि सम्प्रदाय की एक शाखा गुजरात में 'खम्भात सम्प्रदाय' के नाम से चल रही है इसमें श्री शारदाबाई विनय, विवेक की प्रतिमूर्ति, आगमज्ञा, सरल गम्भीर निडर वक्ता एवं खम्भात सम्प्रदाय में श्रमणों की विच्छिन्न कड़ी को जोड़ने वाली साध्वी थीं, इनके नाम से प्रवचनों की कई पुस्तकें प्रकाशित हैं।
क्रियोद्धारक पूज्य हरिदास जी महाराज के पंजाबी समुदाय में श्रमणी संघ का आरम्भ उपलब्ध प्रमाणों के आधार पर विक्रमी संवत् 1730 के लगभग महासती श्री खेतांजी से होता है। इनकी परम्परा में श्री वगतांजी निर्मल मतिज्ञान धारिणी थी। आहार की शुद्धता, अशुद्धता का ज्ञान वे देखते ही कर लेती थीं। सीतांजी द्वारा 5000 लोगों ने माँस मदिरा का त्याग किया था, श्री खेमांजी ने 250 जोड़ों को आजीवन ब्रह्मचर्यव्रत प्रदान कराया था। श्री ज्ञानांजी ने विच्छिन्न साधु-परम्परा की कड़ी को जोड़ने का अद्भुत कार्य किया। आचार्य अमरसिंह जी महाराज और आचार्य सोहनलाल जी महाराज जैसी महान हस्तियाँ जैन समाज को महासती श्री शेरांजी से प्राप्त हुई थीं। श्री गंगीदेवी जी बीसवीं सदी के प्रारम्भ की अत्यन्त धैर्यवान चारित्रवान श्रमणी थी। पंजाब श्रमणी संघ की प्रथम प्रवर्तिनी श्री पार्वती जी महाराज हिन्दी साहित्य की प्रथम जैन साध्वी लेखिका हुई हैं। अनेक अन्य मतानुयायी पंडित उनसे शास्त्रार्थ कर धर्म के सत्य सिद्धान्तों पर आस्थावान बने थे। श्री चंदाजी महाराज, श्री द्रौपदांजी महाराज, श्री मथुरादेवी जी महाराज, श्री मोहनदेवी जी महाराज प्रभावशाली प्रवचनकर्ती थीं, उन्होंने समाज की अनेक कुरीतियाँ बंद करवाकर स्थान-स्थान पर धार्मिक सत्संग प्रारम्भ करवाये थे। प्रवर्तिनी श्री राजमती जी, श्री पन्नादेवी जी (टुहाना वाले) महाश्रमणी श्री कौशल्यादेवी जी आदि परम सहिष्णु, समता की साक्षात् मूर्ति, आत्मनिष्ठ श्रमणियाँ थीं। श्री मोहनमाला जी, श्री शुभ जी, श्री हेमकंवर जी ने क्रमश: 311, 265 और 251 दिन सर्वथा निराहार रहकर विश्व में जैन श्रमण संस्कृति का गौरव निनाद किया। इनके अतिरिक्त कंठ कोकिला श्री सीता जी, परम शुचिमना श्री पन्नादेवी जी, वात्सल्यनिधि श्री कौशल्या जी 'श्रमणी', दृढ़ संयमी श्री मगनश्री जी, सर्वदा ऊर्जस्वित व्यक्तित्त्व कृतित्व संपन्ना श्री स्वर्णकान्ता जी गद्य-पद्य में समान कलम की धनी श्री हक्मदेवी जी. अध्यात्मनिष्ठ श्री सन्दरी जी. प्रबल स्मति धारिणी, सुदूर विहारिणी प्रवर्तिनी श्री केसरदेवी जी, प्रभावसम्पन्ना श्री कैलाशवती जी, व्यवहार कुशल श्री पवनकुमारी जी, शासन प्रभाविका श्री शशिकान्ता जी आदि पंजाब की इन विशिष्ट साध्वियों ने समाज व देशके उत्थान में जो सक्रिय कार्य किये वे स्वर्णाक्षरों में अंकित करने योग्य हैं। इन सबका वैदुष्य से भरपूर शिष्या परिवार भी इन्हीं के लक्ष्य कदमों पर चल रहा है।
आचार्य धर्मसिंह जी महाराज के क्रियोद्धार का समय विक्रमी संवत् 1685 है। इनकी समूची परम्परा आठ कोटि दरियापुरी सम्प्रदाय के नाम से प्रसिद्ध है। यद्यपि यह परम्परा एक क्षीणतोया नदी की धारा के समान गुजरात में ही प्रवाहित है किन्तु इस संघ की उल्लेखनीय विशेषता है कि आज 386 वर्षों की सुदीर्घ अवधि
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