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श्वेताम्बर परम्परा की श्रमणियाँ तल्लीनता आदि गुणों से आकृष्ट होकर अनेक भव्यात्माएं प्रेरणा प्राप्त कर प्रव्रज्या के पावन पथ पर गतिशील बनीं। वर्तमान में इनकी 60 से अधिक शिष्या-प्रशिष्या वृंद हैं।320
5.2.3.5 श्री विनयप्रभाश्रीजी (संवत् 2007-स्वर्गस्थ)
माता मणिबहेन व पिता मोहनभाई की सुपुत्री विनयप्रभाश्रीजी ने वैधव्य के पश्चात् संवत् 2007 मृगशिर शुक्ला 5 के शुभदिन दीक्षा अंगीकार की और श्री रंजनश्रीजी की शिष्या बनीं। अपने संयम, तप विनय, वैराग्य से इन्होंने प्रत्येक साध्वियों का दिल जीता। मनोबल इतना मजबूत था कि 68 वर्ष की उम्र में 8 मास में तीन हजार कि. मी. की पदयात्रा तपस्या के साथ की तथा दूर-2 विचरण कर अनेक भव्यात्माओं के आत्मोद्धार में प्रेरक निमित्त बनीं।321
5.3.3.6 श्री शशिप्रभाश्रीजी ( - 2045)
शशिप्रभाजी के पिता का नाम मणिलाल व माता का नाम डाहीबहेन था, प्रवर्तिनी रंजनाश्रीजी के पास दीक्षा ग्रहण की। गुरू भक्ति इनकी बेजोड़ थी। कई वर्ष गुरूणी की सेवा में खंभात रहीं, वहीं संवत् 2045 कार्तिक शुक्ला 9 के दिन स्वर्गवासिनी हुईं।322 5.3.3.7 प्रवर्तिनी श्री बसंतप्रभाजी (संवत् 2011 से वर्तमान)
आपका जन्म संवत् 1992 में खंभात में हुआ, नाम रखा 'विजया'। माता-पिता ने आपकी सगाई खंभात में ही कर दी, इसी बीच उपधान तप की माला पहनते हुए आपने ब्रह्मचर्य का प्रत्याख्यान कर लिया। जबर्दस्ती से विवाह संबंध कर श्वसुर गृह में आये, पर ब्रह्मचर्यव्रत नहीं छोड़ा। डेढ़ वर्ष की कठिन तपस्या के पश्चात् पति की आज्ञा लेकर संवत् 2011 में रंजनश्रीजी के पास दीक्षा अंगीकार की। दीक्षा के पश्चात् आपने मासखमण, वर्षीतप, अठाई, वर्धमान तप की ओली आदि तपाराधना के साथ-जैनधर्म व दर्शन का गहन अध्ययन किया। जहाँ-जहाँ साधुओं का विचरण अल्प होता है ऐसे क्षेत्रों में जाकर आपने धर्म-प्रभावना की। अनेक नूतन जिनालयों का निर्माण, जीर्णोद्धार, अंजनशलाका आदि शासन प्रभावना के कार्य किये। आपकी 21 शिष्याएँ बनीं।23 5.3.3.8 श्री विनीताश्रीजी (संवत् 2012-स्वर्गस्थ)
सौराष्ट्र के मूली ग्राम निवासी परसोत्तमभाई व विमलाबहेन के घर संवत् 1988 में इन्होंने जन्म लिया, विवाह के पश्चात् वैधव्य से इनकी जीवन दिशा परिवर्तित हुई और राणपुर में संवत् 2012 वैशाख शुक्ला 7 को श्री रोहिणाश्रीजी के पास दीक्षा अंगीकार की। दीक्षा से पूर्व जहां ये पोरूषी का प्रत्याख्यान भी नहीं कर सकती थीं वही अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति से वर्धमान तप की 63 ओली पूर्ण कर चुकी हैं, एकांतर 1051 आयंबिल किये इस 320. वही, पृ. 335-36 321. वही, पृ. 342-43 322. वही, पृ. 345 323. वही, पृ. 345
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