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________________ जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास प्रकार जिनशासन में तप की ध्वजा लहराने के साथ अपने परिवार से पाँच आत्माओं के संयम की प्रेरिका भी रहीं। इनकी तीन शिष्या व एक प्रशिष्या है। 324 5.3.3.9 साध्वी अनंतकीर्तिश्रीजी ( संवत् 2026 से वर्तमान) अमलनेर के कोठारी कुल में समुत्पन्न श्री अनंतकीर्तिश्रीजी ने संवत् 2026 में दीक्षा ली। दीक्षा लेते ही आप दो शिष्याओं की गुरणी बन गई। दीक्षा के सात वर्ष बाद अमलनेर में एक साथ होने वाली 26दीक्षाओं में आपके पास शिष्याओं की वृद्धि होती गई। दक्षिण भारत में आपने युवतियों में धर्म जागृति हितार्थ कई भव्य शिविर आयोजित किये, उनमें हजार - बारहसौ की संख्या हो जाती। आपकी नेतृत्व कुशलता, संयमनिष्ठता, निरभिमानता वर्णनीय है। 325 5.3.3.10 श्री हेमरत्नाश्रीजी ( संवत् 2026-48 ) उच्चकोटि की साधिका श्री हेमरत्नाश्रीजी अमलनेर में संवत् 2010 के दिन जन्मी और संवत् 2026 वैशाख शुक्ला 6 के दिन संयम स्वीकार कर श्री अनंतकीर्तिश्रीजी की शिष्या बनीं। अपनी व्युत्पन्न मेधा से इन्होंने संस्कृत - प्राकृत, न्याय, व्याकरण ज्योतिष, कम्मपयडि जैसे आकर ग्रंथों का गंभीर अध्ययन किया। सौम्यता, सहृदयता सहनशीलता को जीवन में चरितार्थ कर मद्रास में संवत् 2048 के दिन महाप्रयाण कर दिया । 326 5.3.3.11 श्री चन्द्रयशाश्रीजी अहमदनगर जिले केडग्राम वासी शेठ सूरजमलजी इनके पिता थे, वहीं के गर्भश्रीमंत धनराजजी भंडारी से इनका विवाह हुआ। आचार्य श्री विजय यशोदेवसूरिजी की वाणी से उबुद्ध दोनों पति-पत्नी दीक्षित हुए। चन्द्रयशाजी श्री निर्मलाश्रीजी की शिष्या बनीं। इनके सचोट उपदेशों से अहमदनगर जिनालय का पुनरोद्धार, 24 देरीओं के भव्य जिनालय का निर्माण हुआ। संवत् 2044 से ये पूना में विराजमान हैं। इनकी शिष्याएँ श्री चारूयशाजी, चारूधर्माश्रीजी, चारूप्रज्ञाश्रीजी, विमलयशाश्रीजी, कमलयशाश्रीजी, चंद्रशीलाश्रीजी, निरूयशाश्रीजी तथा प्रशिष्या चरणयशाश्रीजी हैं। 327 5.3.3.12 प्रवर्तिनी श्री रंजनश्रीजी के परिवार की श्रमणियाँ 1 328 क्रम साध्वी नाम दीक्षा संवत् तिथि 1. श्री विनयप्रभाश्रीजी 325. वही, पृ. 348-49 325. वही, पृ. 349-52 326. वही, पृ. 353-55 2. 327. वही, पृ. 355-56 328. जिनशासन नां श्रमणीरत्नों; पृ. 875 Jain Education International 2007 मृ. शु. 5 372 For Private & Personal Use Only गुरुणी नाम श्री रंजन श्रीजी श्री रंजन श्रीजी www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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