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श्वेताम्बर परम्परा की श्रमणियाँ
5.3.2.2 प्रवर्तिनी श्रीदर्शनजी (सं. 1983-2022 )
अमदाबाद के वीशा श्रीमाली सेठ संकरचंद की धर्मपत्नी शणगार बहन की कुक्षि से संवत 1970 में इनका जन्म हुआ। संवत् 1983 पोष कृष्णा 5 महेसाणा में श्रीमद् विजयमेघसूरिजी के वरद हस्त से दीक्षा ग्रहण कर ये श्री दयाश्रीजी की शिष्या बनीं। बाल्यवय से ही ये ज्ञानपिपासु, धर्मरूचि से संपन्न एवं पापभीरू थीं, रसनेन्द्रिय विजेता और उत्कृष्ट त्यागी भी थीं, इनकी शीतल छाया में कई तपस्विनी, त्यागी, ज्ञानी, लेखक, कवियत्री, सेवाभाविनी, व्याख्यातृ 191 साध्वियों से अधिक साध्वियों का समुदाय हैं। संवत् 2022 अक्षय तृतीया को पाटण में पंडितमरण से इनका देहविलय हुआ। 307
5.3.2.3 प्रवर्तिनी श्री लक्ष्मीश्रीजी (सं. 1983-2021 )
संवत् 1960 जैन नगरी राजनगर में श्री वाडीलाल भाई के यहाँ इनका जन्म हुआ। एक पुत्री की माता बनने के पश्चात् पतिवियोग से वैराग्य प्राप्त कर संवत् 1983 वैशाख कृष्णा 16 को शेरीसा तीर्थ में ये दीक्षित हुईं। ये कल्याणश्रीजी की प्रशिष्या थीं तथा आशु कवयित्री के रूप में प्रसिद्ध थीं, अनेक प्रकरण ग्रंथों का अध्ययन एवं सुविशुद्ध चारित्र का पालन करने वाली थीं। इनके शिष्या प्रशिष्या परिवार की संख्या 220 तक थी। संवत् 2021 वापी में ये दिवंगत हुई 1308
5.3.2.4 प्रवर्तिनी श्री जयश्रीजी (सं. 1983 से स्वर्गस्थ )
राजनगर की पुण्यधरा पर सेठ नानालाल भाई के यहाँ जन्म लेकर इन्होंने तीव्र वैराग्यभाव से श्वसुर व पीहर पक्ष को कहे बिना ही शेरीसा तीर्थ जाकर स्वयं सं. 1983 वै. कृ. 6 को दीक्षा अंगीकर करली, ये महान जिनशासन प्रभाविका साध्वी थीं, लगभग 150 से अधिक मुमुक्ष आत्माओं को तत्त्वज्ञानामृत का पान कराया था। इनका जीवन आडम्बर रहित सादगीमय व अल्प उपधि से युक्त था, आवश्यक क्रियाओं में भी ये अप्रमत्त भाव रखती थीं। 309
5.3.2.5 प्रवर्तिनी श्री देवेन्द्र श्रीजी (सं. 1990 - स्वर्गस्थ )
प्रकृष्ट तपस्विनी प्रवर्तिनी देवेन्द्रश्रीजी का जन्म लींबड़ी संवत् 1980 कार्तिक शुक्ला 1 को माता पुरीबहेन व पिता खेतशी भाई के यहाँ हुआ । मात्र 10 वर्ष की उम्र में संवत् 1990 पोष कृष्णा 4 को अमदाबाद में आचार्य विजय सिद्धिसूरिजी ( बापजी महाराज) के वरदहस्त से दीक्षा अंगीकार ये श्री शांति श्रीजी की शिष्या बनीं। इनकी तपस्या की सूचि इस प्रकार है मासक्षमण 2, सिद्धितप 2, 20 स्थानक 4 वर्षीतप 5, (एक छट्ठ से) अट्ठाई
2,
चत्तारि अट्ठ दस दोय, श्रेणितप, भद्रतप, डेढ़ मासी, समवसरण, सिंहासन, जिनगुणसंपत्ति, मेरूमंदिर, 229 छट्ट व 12 अट्ठम, 6, 5, 16 उपवास, 108 अट्ठम, धर्मचक्र तप, नवकारतप, एकांतर 500 आयंबिल, 99 जिन ओली, वर्धमान तप की 50 ओली आदि। 310 श्री देवेन्द्र श्री जी का शिष्या परिवार तालिका में देखें।
307. वही, पृ. 293-96
308. वही, पृ. 272-74
309. वही, पृ. 279
310. वही, पृ. 312-14
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