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जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास
5.3.2.6 साध्वी त्रिलोचनाश्रीजी (संवत् 1994)
पाटण निवासी भोगीभाई जवेरी और बापूबहन के घर संवत् 1977 में त्रिलोचनाश्रीजी का जन्म हुआ, संवत् 1994 ज्ये. शु. 2 को श्री दर्शनश्रीजी की शिष्या के रूप में ये संयम मार्ग पर प्रस्थित हुईं। श्रुतोपासना के अतिरिक्त ये अपनी निश्रावर्ती जो भी तप के क्षयोपशमवाली साध्वियाँ होतीं; उन्हें तप की निरंतर प्रेरणा देती थीं, जिसके प्रभाव से इनके शिष्या-प्रशिष्या परिवार में प्रायः 27 श्रमणियों ने 'मासखमण' तप की आराधना की है।
5.3.2.7 श्री निरंजनाश्रीजी (सं. 2000-2034)
मोदी परिवार के व्रजलाल भाई के यहाँ इनका जन्म हुआ, अपनी ज्येष्ठा भगिनी के साथ राजकोट में संवत् 2000 फा.शु. 5 को दीक्षा ली। इनकी श्रुतोपासना उल्लेखनीय है। संस्कृत, प्राकृत, काव्य, न्याय आदि की उच्चकोटि की अध्येता के साथ इन्हें 25 हजार श्लोक कंठस्थ थे। इन्होंने स्थान-स्थान पर ज्ञान भंडार खुलवाये, खुले हुए ज्ञान भंडारों को व्यवस्थित करने में भी इनका महत्वपूर्ण योगदान रहा। तपाराधना के क्षेत्र में भी प्रथम चातुर्मास में ही चौविहारी अट्ठाई की मिशाल कायम की। वर्षीतप, चौमासी, बीसस्थानक, नवपद ओली, 33, चत्तारि अट्ट आदि विविध तपस्याएं की। संवत् 2034 को 107 डिग्री ज्वर में भी 2000 गाथाओं का स्वाध्याय करती हुई स्वर्गलोक की ओर प्रस्थित हुईं।12 5.3.2.8 प्रवर्तिनी खांतिश्रीजी (संवत् 2006- स्वर्गस्थ)
पिंडवाड़ा के श्रेष्ठी सरेमलजी की धर्मपत्नी केशरबाई की कुक्षि से संवत् 1962 में इनका जन्म हुआ, वीरवाड़ा के श्रेष्ठी श्री छगनलालजी के साथ सांसारिक जीवन व्यतीत करते हुए ये 3 सुपुत्रों की जननी बनीं, पतिवियोग के पश्चात् संवत् 2006 वैशाख कृष्णा 6 को ये रोहिताश्रीजी की प्रथम शिष्या के रूप में दीक्षित हुईं। ये तप, त्याग व संयम की आराधना में वृद्धावस्था में भी जागरूक थीं। 82 वर्ष की उम्र तक 3 मासखमण, 3 वर्षीतप, सिद्धितप चत्तारि., 16, 15 उपवास दो बार, अठाई 9, 10 और 11 उपवास, 13 काठिया के 13 अट्टम, 500 आयंबिल, 99 यात्रा 3 बार, वर्धमान तप की 67 ओली, नवपद ओली आदि विविध तपस्याएँ की। इनकी शिष्या श्री किरणप्रज्ञाश्रीजी तथा प्रशिष्या हर्षितप्रज्ञाश्री, लक्षितप्रज्ञाश्री हैं। वर्तमान में इनकी 70 साध्वियाँ हैं।
311. वही, पृ. 305 312. वही, पृ. 283 313. वही, पृ. 314-16
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