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श्वेताम्बर परम्परा की श्रमणियाँ
5.3.1.26 श्री सूर्योदया श्रीजी ( संवत् 2011
आप अमदाबाद के श्री दलीचंद वीरचंदजी की सुपुत्री हैं, संवत् 2011 माघ शुक्ला 14 इन्दौर में श्री सुमन श्रीजी के पास दीक्षा ग्रहण की। अठाई, 16 मासक्षमण, सिद्धितप चत्तारि अट्ठ दस दोय, बीसस्थानक की ओली, वर्षीतप 500 आयंबिल संलग्न आदि तप मार्ग का अनुसरण करने के साथ ही इन्होंने छ'री पालित संघ यात्रा, प्रतिष्ठा, मंदिर, उपाश्रय, पाठशाला आदि शासन प्रभावना के भी अनेकविध कार्य किये। स्वयं की 6 शिष्याएँ - रत्नज्योतिश्रीजी, पद्मज्योतिश्रीजी, कल्पज्योति श्रीजी, शाशनज्योतिश्रीजी, सुवर्णज्योतिश्रीजी, सिद्धांतज्योतिश्रीजी तथा दो प्रशिष्या- मोक्षज्योतिश्रीजी, अक्षयज्योतिश्रीजी हैं । 301
5.3.1.27 श्री प्रशमशीलाश्रीजी ( संवत् 2016 से वर्तमान)
साबरमती के श्रेष्ठी भूराभाई की सुपुत्री श्री प्रशमशीलाजी का जन्म संवत् 1996 में हुआ। वैराग्यभाव से स्वकुल व श्वसुरकुल से आज्ञा लेकर संवत् 2016 पोष कृष्णा 6 को राजनगर श्री प्रगुणाश्रीजी के पास दीक्षा अंगीकार की। न्याय, संस्कृत, प्राकृत, द्रव्य गुण पर्याय, व आगमग्रंथों का विशद अध्ययन किया। आपके प्रवचन में भी अद्भुत आकर्षण था। स्वयं की 11 शिष्याएँ हैं- प्रशमनाश्रीजी, प्रशमानना श्रीजी, प्रशमवर्षाश्रीजी, प्रशमरत्नाश्रीजी, प्रशमदर्शनाश्रीजी, प्रशमरक्षिताश्रीजी, प्रशमनंदाश्रीजी, प्रशमीशाश्रीजी, प्रशमतीर्थाश्रीजी, प्रशमजिनेशाश्रीजी 1302
5.3.1.28 अमितगुणाश्रीजी ( संवत् 2020 से वर्तमान)
संवत् 2020 माघ कृष्णा चतुर्थी को श्री फल्गुश्रीजी के पास दीक्षित अमितगुणाश्रीजी बड़नगर (उज्जैन) के श्री गुलाबचंदजी की कन्या हैं। इनकी शासन प्रभावना उल्लेखनीय है । साधारण सी रकम के लिये श्री संघों को विशेष परिश्रम करना पड़ता है। किंतु ये जहाँ भी जाती हैं वहाँ 'चन्दनबाला के अट्टम' करवाती हैं और धनावह शेठ की बोली बुलवाती हैं तथा लाखों की दानराशि मिनटों में लिखवा लेती हैं। आपकी प्रेरणा से 8 मंदिर, 7 उपाश्रय 5 पदयात्री का निर्माण हुआ। आपकी विदुषी शिष्याओं में अनंतगुणाश्रीजी, अमीपूर्णाश्रीजी, अर्चितगुणाश्रीजी, अर्पितगुणाश्रीजी, अमीझरा श्रीजी व अर्चनाजी हैं। अनंतगुणाश्रीजी, की अनंतकीर्तिश्रीजी और अनंतयशाश्रीजी ये दो शिष्याएँ हैं। अमीपूर्णाश्रीजी की अमीदर्शाश्रीजी, अमीयशाश्रीजी, अमीवर्षाश्रीजी, अर्चपूर्णाश्रीजी ये 4 शिष्याएँ तथा मृद्रपूर्णाश्री, अर्हता श्रीजी, अर्पणा श्रीजी, भक्तिपूर्णाश्रीजी ये 4 प्रशिष्याएँ हैं। ज्ञान, ध्यान, जप, तप, स्वाध्याय में अग्रणी वर्धमान ओली तप की आराधिका अमितगुणाश्रीजी का संघ में महत्त्वपूर्ण योगदान है 1303
5.3.1.29 साध्वी चारूव्रताश्रीजी ( संवत् 2029 वर्तमान )
पाटणवाव (जूनागढ़) के शेठ श्री देवचंदभाई कुसुंबाबहन की पुत्री चारुव्रताजी धर्म प्रभाविका ऊर्जस्वल व्यक्तित्व की धनी साध्वी हैं। संवत् 2029 वैशाख शुक्ला 3 को हेमेन्द्रश्रीजी के पास दीक्षा ग्रहण कर ये शीघ्र ही एक विदुषी साध्वी के रूप में प्रख्यात हो गईं। मेवाड़, मध्यप्रदेश में अपने प्रभावशाली प्रवचनों से अनेकों घर
301. वही, पृ. 210 302. वही, पृ. 211
303. वही, पृ. 214-15
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