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जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास
माघ शुक्ला 2 को सूर्यकान्ता श्रीजी के पास दीक्षा अंगीकार की। श्री सागरानंदसूरिजी के साध्वी-संघ में साहित्यिक क्षेत्र में आपका नाम प्रथम पंक्ति में गिना जाता है। प्रारंभ में आपके विचार - कल्याण, गुलाब, सुघोषा, शांतिसौरभ आदि सामयिक पत्रिकाओं में प्रकाशित होते थे। उसके पश्चात् लगभग 30 पुस्तकें 'सूर्य शिशु' नाम से लिख चुकी हैं। इनमें से कुछ निम्न हैं
कथा-साहित्य :- कुलदीपक, मायानी जाल, संसार ना वहेण भाग 1 से 3, वैर नां विषपान, संसार नी सहिष्णु नारी, वीणेला मोती, पलटता रंग, जीवन धन, उर उजास, प्रेरणा प्रकाश, प्रेम पीयूष आदि -आदि ।
भक्ति काव्य :- पुष्प - सुमलय सौरभ, आनंद - चंद्र ज्योति, भक्तिनी मस्ती, प्रभु प्रीत नां गीत, संगीत नी सरगम, पद्म परिमल आदि। आपने गुरू-स्मृति में 45 फुट ऊँचा 'आगम स्तम्भ' कपड़वंज में बनवाया। अनेक स्थानों पर भक्ति - मंडल, लायब्रेरी, कोयम्बतूर में श्रीसंघ की स्थापना, पालीताणा में 'सूर्यशिशु साधना सदन' छ री पालित संघ, परीक्षाएँ, प्रतिमा-प्रतिष्ठापन आदि अनगिनत शासन प्रभावना के कार्य किये। संवत् 2044 को सूरत में इस सरस्वती पुत्री ने चिर विदाई ली | 298
विशिष्टता - अखिल भारतवर्ष के श्रमणी - संघ में आपके ग्रूप की एक अप्रतिम विशेषता पढ़ने में आई है, वह है - एक ही ग्रूप में चार साध्वियाँ 'शतावधानी' हैं। उनके नाम हैं (1) आप स्वयं मयणाश्रीजी (2) साध्वी शुभोदया श्रीजी (3) साध्वी अमितगुणाश्रीजी (4) साध्वी प्रमितगुणाश्रजी । साध्वी शुभोदया श्रीजी का इंग्लिश पर कमांड एवं स्वर की मीठास विशेष उल्लेखनीय है । 299
5.3.1.25 श्री हेमप्रभाश्रीजी ( संवत् 2010-38)
विशद ज्ञान एवं मधुर वाणी वैभव की धनी हेमप्रभाश्रीजी का जन्म नवसारी निवासी सेठ नागरदास दुर्लभजी भाई व माता कमलाबहन के यहाँ हुआ। संवत् 2010 को सिद्धगिरि महातीर्थ की छत्रछाया में हेमेन्द्र श्रीजी की सुशिष्या बनकर संयम के पुनीत पंथ पर पदार्पण किया। अल्पावधि में ही आगम, धर्मग्रंथों एवं अनेक भाषाओं पर प्रभुत्व स्थापित कर लिया। तपस्या के क्षेत्र में ज्ञानपंचमी, मौन एकादशी, नवपदजी की 11 ओली, पालीताणा की छट्ट द्वारा सात यात्रा, उपवास से 3 यात्रा इत्यादि 99 यात्राएँ की । अल्प समय में महान आत्म-परहित संपादित कर संवत् 2038 में स्वर्गवासिनी हुईं। इनकी दस शिष्याएँ- दमिताश्रीजी, मणिप्रभाश्रीजी, प्रियदर्शनाश्रीजी, पद्मलताश्रीजी, पुण्योदयाश्रीजी, विश्वप्रज्ञाश्रीजी, पुण्यप्रभाश्रीजी, हेमप्रज्ञाश्रीजी, भव्यपूर्णाश्रीजी, हितेशाश्रीजी तथा 23 प्रशिष्याएँ हैं- निर्मलयशाश्रीजी, दिव्ययशाश्रीजी, दिव्यदर्शनाश्रीजी, निर्मलगुणाश्रीजी, मुक्तिदर्शाश्रीजी, मुक्तिप्रियाश्रीजी, चारूवर्षाश्रीजी, चारूवदनाश्रीजी, मृदुप्रिया श्रीजी, प्रफुल्लप्रभाश्रीजी, मुक्तिदर्शनाश्रीजी, पूर्णाहिताश्रीजी, हितदर्शनाश्रीजी, पुण्यदर्शनाश्रीजी, सम्यग्दर्शनाश्रीजी, मोक्षदर्शनाश्रीजी, ऋजुदर्शनाश्रीजी, पुनीतदर्शनाश्रीजी, पूर्णलताश्रीजी, पीयूषपूर्णाश्रीजी, पूर्णिताश्रीजी, शासनरत्नाश्रीजी, रत्नेशा श्रीजी | 300
298. वही. पृ. 228
299. वही, पृ. 840
300. वही, पृ. 230-31
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