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________________ श्वेताम्बर परम्परा की श्रमणियाँ से ये दो पुत्रों की माता बनीं। पतिवियोग, संसार का असली स्वरूप देखकर ये संवत् 1999 माघ शुक्ला 15 को मालव दीपिका मनोहरश्रीजी के पास दीक्षित हो गईं। इनकी वाणी के प्रभाव से कई आत्माएँ प्रव्रज्या मार्ग पर आरूढ़ हुईं, इतना ही नहीं अपने ही परिवार की 21 दीक्षाएँ करके इन्होंने जिनशासन को अपूर्व योगदान दिया। इनका विशाल शिष्या-प्रशिष्या परिवार ग्राम-ग्राम विचरण कर स्व-पर उपकारी सिद्ध हो रहा है। शिष्या परिचय-हिरण्यश्रीजी', कमलप्रभाश्रीजी292, हेमप्रभाश्रीजी, कुसुमश्रीजी, कैलासश्रीजी, चन्द्रभाश्रीजी, करूण्योदयाश्रीजी, चंद्रकांताश्रीजी, पुष्पाश्रीजी, शशीप्रभाश्रीजी, हेमेन्द्रश्रीजी, गुणज्ञाश्रीजी, चन्द्रयशाश्रीजी, सौम्ययशाश्रीजी, तीर्थरलाश्रीजी, चारित्ररत्नाश्रीजी, सौम्यपूर्णाश्रीजी, राजरत्नाश्रीजी, चन्द्ररत्नाश्रीजी, चारूधर्माश्रीजी, रम्यधर्माश्रीजी, कल्पद्रुमाश्रीजी, विपुलप्रज्ञाश्रीजी, मतिप्रज्ञाश्रीजी, अक्षयप्रज्ञाश्रीजी, सौम्यव्रताश्रीजी, चारूव्रताश्रीजी294, चारूदर्शनाश्रीजी, अर्पिताश्रीजी, अक्षिताश्रीजी, पूर्विताश्रीजी, अर्चिताश्रीजी, सुरेखाश्रीजी, प्रीतरसाश्रीजी, मुक्तिरसाश्रीजी, चारित्ररसाश्रीजी, पीयूषरसाश्रीजी, अपूर्वरसाश्रीजी, पूर्णयशाश्रीजी, हर्षप्रज्ञाश्रीजी, पीयूषवर्षाश्रीजी, सौम्यवदनाश्रीजी, रश्मिताश्रीजी, राजिताश्रीजी, निर्मिताश्रीजी, कल्पयशाश्रीजी, सूचिप्रज्ञाश्रीजी, सौम्यवर्षाश्रीजी, अमीवर्षाश्रीजी, गुणरत्नाश्रीजी। अल्प दीक्षापर्याय में भी इन्दुश्रीजी ने देवास, झार्डा, इन्दौर आदि स्थानों में भव्य जिनालयों का निर्माण, उपाश्रय आदि के प्रेरक कार्य किये।295 5.3.1.22 श्री हेमेन्द्र श्रीजी (संवत् 2003-37) बीलीमोरा नगर के धर्मिष्ठ परिवार के श्री वीरचंदभाई दिवालीबहन के घर संवत् 1985 में इनका जन्म हुआ। संस्कारों की प्रबलता से संवत् 2003 मृगशिर कृष्णा 4 के शुभ दिन संयम मार्ग पर आरूढ़ होकर श्री प्रभंजनश्रीजी की शिष्या बनीं। इनके तलस्पर्शी अध्ययन एवं चारित्रनिष्ठ जीवन से उद्बोधित कई उच्चकुलीन कन्याएँ इनकी शिष्या प्रशिष्या बनीं। जैसे- आत्मप्रभाश्रीजी, हेमप्रभाश्रीजी, आत्मानंदश्रीजी, वीरेशाश्रीजी, मोक्षज्ञाश्रीजी, प्रशिष्याएँ - हर्षयशाश्रीजी, कीर्तिप्रभाश्रीजी, रत्नेशाश्रीजी, रत्नवीराश्रीजी, चंद्रयशाश्रीजी, मीनेशाश्रीजी, यशवीराश्रीजी। श्री हेमेन्द्रश्रीजी शासन प्रभावना के अनेकविध कार्य संपन्न कर संवत् 2037 में समाधिपूर्वक स्वर्गवासिनी हुई।296 5.3.1.23 नित्योदयश्रीजी (संवत् 2004-36) जामनगर में जन्मी वहीं शांतिभाई रंगवालों से विवाह हुआ, उनसे एक पुत्र व एक पुत्री की प्राप्ति हुई। अल्प समय में पति व पुत्र वियोग ने इनके जीवन को वैराग्य की ओर मोड़ दिया। माता-पुत्री दोनों ने संवत् 2004 वैशाख कृष्णा 3 को श्री कनकप्रभाश्रीजी के पास दीक्षा ग्रहण की। 32 वर्ष तक विशुद्ध संयम का पालन कर कइयों को प्रतिबोधित किया। आपका शिष्या परिवार इस प्रकार है- श्री निरूजाश्री (पुत्री), मोक्षप्रज्ञाश्री, चरणप्रज्ञाश्री, भव्यप्रज्ञाश्री, कल्पिताश्री, भावितरत्नाश्रीजी, विदितरत्नाश्रीजी, नम्रताश्री, सरिताश्रीजी1297 5.3.1.24 मयणाश्रीजी 'सूर्यशिशु' (संवत् 2005-2044) ये सूरत के जवेरी कुटुंब के श्रेष्ठी जीवनचंद जी व गुलाबबहन की सुकन्या थीं। सूरत में ही संवत् 2005 291-294. इनका परिचय अग्रिम पृष्ठों पर देखें 295. श्रमणीरत्नो, पृ. 193-95 296. वही, पृ. 227 297. वही, पृ. 202 353 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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