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जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास क्षीरसमुद्र, 500 आयंबिल एकांतर, 37 ओली पूर्ण, रत्नपावड़ी, दीपावली के 9-9
छट्ट, बीसस्थानक, कल्याणक, नवपदओली कायम, अन्य एकासणा तप नंदिताश्रीजी
8, 16, 30 उपवास, वर्षीतप, श्रेणितप, समवसरण, सिंहासन, बीसस्थानक, एकांतर 500 आयंबिल, सिद्धितप, कर्मसूदन, 99 यात्रा, सिद्धाचल, छट्ठ से सात यात्रा 2 बार, 41 ओली पूर्ण, 96 जिन कल्याणक, दीपावली छठ्ठ, नवपद ओली, पंचमी,
दशमी एकादशी, पूनम, उपधान 2 सत्त्वानंदश्रीजी - 5, 8, 16, उपवास, सिद्धितप, वर्षीतप, वीशस्थानक, नवकारपद, 99 यात्रा, छ8 से
सात यात्रा, सिद्धाचल, सहस्रकूट, 96 जिनकल्याणक, कर्मसूदन, 14 ओली प्रशमगुणाश्रीजी - नवपद ओली, 25 ओली पूर्ण, बीसस्थानक, वर्षीतप, 99 यात्रा 2 बार, उपधान, 8,
9 उपवास, बियासणां 16 वर्ष से । राजदर्शिताश्रीजी - अठाई, सिद्धितप, नवपद ओली, बीसस्थानक, 99 यात्रा दो बार सुरेन्द्र श्रीजी
7, 8, 16, 30 उपवास, सिद्धितप, वर्षीतप 2, 37 ओली पूर्ण, नवपदओली, 500 आयंबिल एकांतर, छमासी, सिद्धाचल, छ8 से 7 यात्रा, बीसस्थानक, पंचमी,
कल्याणक, उपधान, 99 यात्रा महायशाश्रीजी - 100 ओली पूर्ण, वर्षीतप, सिद्धितप, 6, 8, 10, 16, 30 उपवास, बीसस्थानक,
समवसरण, सिंहासन, क्षीरसमुद्र, नवपद ओली, 99 यात्रा दो बार आयंबिल से,
सहस्रकूट, सिद्धाचल, उपधान, एकासणे बीयासणे चालु प्रमुदिताश्रीजी - सिद्धितप, वर्धमान तप चालु 5.3.1.20 श्रीपद्मलताश्रीजी (स्वर्ग. संवत् 2036)
धर्मप्रेरणा की निर्झर पद्मलताश्रीजी संवत् 1978 में कपड़वंज के शाह ओच्छवलाल के यहाँ जन्मी तथा सूर्यकांताश्रीजी की शिष्या बनकर संयम मार्ग पर आरूढ़ हुईं। इनकी तलस्पर्शी वैराग्यवासित वाणी से 10 शिष्याएँ श्री निरूपमाश्रीजी, कल्पगुणाश्रीजी, वीरभद्रश्रीजी, आत्मज्ञाश्रीजी, धर्मज्ञाश्रीजी, प्रमितज्ञाश्रीजी, अमितगुणाश्रीजी, विनीतज्ञाश्रीजी, विनयज्ञाश्रीजी, महाभद्राश्रीजी तथा 10 ही प्रशिष्याएँ - सुशेनाश्रीजी, वज्ररत्नाश्रीजी, राजरत्नाश्रीजी, रीतिज्ञाश्रीजी, भव्यज्ञाश्रीजी, भव्यनंदिताश्रीजी, मृदुदर्शिताश्रीजी, कल्पद्रुमाश्रीजी, अपूर्वयोगाश्रीजी, विदितयोगाश्रीजी, संयमी बनीं। अंत समय में 10-10 कर्म रोग के आतंक पर विजय प्राप्त कर संवत् 2036 पालीताणां में वह धैर्यमूर्ति समताभाव से वीरगति को प्राप्त हुई।280
5.3.1.21 श्री इन्दुश्रीजी (संवत् 1999)
'मालवज्योति' विरूद से प्रसिद्धि प्राप्त इन्दुश्रीजी का जन्म देपालपुर (इन्दौर) की भूमि पर श्री मगनलाल जी व चंपाबाई के घर-आंगन में संवत् 1963 के शुभ दिन हुआ। देवास निवासी सौभाग्यमलजी चौधरी के संयोग 290. श्रमणीरत्नो, पृ. 225-26
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