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जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास 5.3.1.19 श्री निरंजनाश्रीजी (वर्तमान)
प्रेरणादायी व्यक्तित्व लिये श्री निरंजनाश्रीजी नौ दस वर्ष की उम्र में दीक्षित हुईं, वर्तमान में 50-60 शिष्याओं की गुरूणी होने पर भी अहंत्व ममत्व व कर्तृत्व से रहित इनका जीवन है। स्वयं वर्षीतप, अठाई, नवपद ओली, रत्नपावड़ी तप, सिद्धाचल तप, कल्याणक, बीसस्थानक तथा अन्य अनेकविध तपस्या करती हुई अपनी शिष्याओं को भी तप की प्रेरणा देती हैं। इनकी तपस्विनी शिष्याओं की झलक इस प्रकार है।289 धर्मविद्याश्रीजी - 100 ओली सम्पन्न, सिद्धितप, 6, 8, 10, 15, 16, 30, 51 उपवास, बीसस्थानक,
समवसरण, सिंहासन, वर्षीतप, काठिये के 13 अट्ठम, कषायजय, इन्द्रियजय, लगातार 1500 आयंबिल दो बार, दो बार 500 आयंबिल सह 99 यात्रा, नवपद
ओली, क्षीरसमुद्र, अक्षयनिधि, चत्तारि अट्ठ दस दोय, सिद्धाचल, धर्मचक्र तप धर्मयशाश्रीजी
11, 15, 16, 17, 30 उपवास, 5 अठाई, 100 ओली संपूर्ण कर पुनः प्रारंभ, बीसस्थानक, नवपद ओली एक धान्य से, चत्तारि अट्ठ दस दोय, सिद्धितप, भद्रतप, वर्षीतप 2 (एक छ8 से) 500 आयंबिल, कल्याणक, 99 यात्रा दो बार, छट्ठ के साथ 7 यात्रा, सिद्धाचल, दीपावली के 9 छ8, रत्नपावडी, कर्मसूदन समवसरण,
चतुर्मासी, छमासी, धर्मचक्र, नवकार तप, उपधान, सहस्रकूट, छः अठाई आदि। इन्द्रियदमाश्रीजी - 8, 16, 30 उपवास, 100 ओली पूर्ण, बीसस्थानक, वर्षीतप, क्षीरसमुद्र, नवकारपद,
नवपद ओली, 500 आयंबिल एकांतर, चोमासी, दोमासी, डेढ़मासी, कषायजय, आयंबिल सह 99 यात्रा, छ8 से 7 यात्रा, क्षीरसमुद्र, उपधान, सहस्रकूट कल्याणक
तथा एकासणे आदि। धर्मरसाश्रीजी
8, 9 उपवास, बीसस्थानक, कर्मसूदन, वर्धमान ओली 40, छट्ठ से सात यात्रा 2, वर्षीतप, पंचमी, दशमी, कल्याणक, नवपद ओली, युगप्रधान तप, अक्षयनिधि,
अष्टमहासिद्धि, नवपद ओली 17 वर्ष से, अन्य एकासण तप मनोरमाश्रीजी वर्षीतप, नवपद ओली, चौविहारछट्ट से सात यात्रा, वर्धमान तप की 22 ओली 99
यात्रा, उपधान, अट्ठाई, छ: काय । नयदर्शनाश्रीजी - 5, 8, 30 उपवास, सिद्धितप, बीसस्थानक, सिद्धाचल, नवपद ओली, वर्धमान
ओली 19, छट्ठ से सात यात्रा, उपधान अमितप्रज्ञाश्रीजी - नवपद ओली, वर्धमान ओली चालु, उपधान, दीपावली तप, एकासणा आदि अमीरसाश्रीजी
8, 16, 30 उपवास, 51 ओली, बीसस्थानक, श्रेणीतप, भद्रतप, वर्षीतप, सिद्धितप, चत्तारिअट्ठ दश दोय, क्षीरसमुद्र, 500 आयंबिल एकांतर, नवपद ओली, डेढ़, दो, तीन, छः मासी, कर्मसूदन, कषायजय, इन्द्रियजय, 99 यात्रा दो, 45 आगम, कल्याणक, उपधान, नवकारपद तप।
289. मुनि सुधर्मसागरजी, वही, पृ. 249-52
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