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श्वेताम्बर परम्परा की श्रमणियाँ
सिद्धितप 500 आयंबिल, सिद्धाचल की 99 यात्रा की। इनके अतिरिक्त श्री लक्ष्यज्ञाश्री, तक्षशीलाश्री, कल्परेखाश्रीजी ने भी मासक्षमण तथा अनेक छोटी-बड़ी तपस्या की । इस प्रकार इन साध्वियों ने जैनधर्म तथा संघ के गौरव में महान अभिवृद्धि की है | 285
5.3.1.17 श्री सुरप्रभाश्रीजी ( संवत् 1995 )
राणपुर निवासी श्रेष्ठी नागरदास व झबकबेन की सुपुत्री समता का जन्म संवत् 1960 को हुआ । समता ने अपने ही समक्ष पति, पुत्र एवं पुत्री का संयोग, वियोग रूप दृश्य प्रत्यक्ष देखकर मोक्षमार्ग का अनुसरण करने का लक्ष्य बनाया और संवत् 1995 ज्येष्ठ शुक्ला 6 के दिन श्री तीर्थश्रीजी के चरणों में अपना जीवन समर्पित कर दिया। दीक्षा के पश्चात् जहां भी विचरीं वहीं अनेक भव्यात्माओं को धर्म का मर्म बताकर मुक्ति का राही बना दिया इनकी परम विदुषी शिष्याएँ इस प्रकार हैं- कनकप्रभाश्रीजी, तत्त्वबोधश्रीजी, धर्मानंद श्रीजी, रत्नत्रयाश्रीजी, रत्नप्रभाश्रीजी, धर्मोदया श्रीजी, इनमें सुतारा श्रीजी, नित्योदया श्रीजी, 286 धैर्यप्रभाश्रीजी, जयज्ञाश्रीजी, तत्त्वरेखाश्रीजी, सुलक्षिताश्रीजी, विरतिप्रज्ञाश्रीजी, सुज्ञरसाश्रीजी, भव्यलक्षिताश्रीजी, शुभवर्षाश्रीजी, हितवर्धनाश्रीजी, मतिज्ञा श्रीजी । यह कनकप्रभाश्रीजी का परिवार है और रत्नत्रयाश्रीजी के परिवार में सौम्यगुणाश्रीजी, रम्यगुणाश्रीजी, अमितज्ञाश्रीजी, नयप्रज्ञाश्रीजी, शीलरत्नाश्रीजी, मोक्षरत्नाश्रीजी, सिद्धरत्नाश्रीजी, आत्मज्ञाश्रीजी, समयज्ञाश्रीजी, श्रुतज्ञाश्रीजी आदि साध्वियाँ हैं। 287
5.3.1.18 श्री प्रियंकराश्रीजी (संवत् 1999-2011 )
राधनपुर के जीवराजभाई मणियार के यहाँ जन्म हुआ । विवाह के पश्चात् एक पुत्र व एक पुत्री की प्राप्ति के बाद वैधव्य को विरक्ति में परिवर्तित करती हुईं ये संवत् 1999 वैशाख शुक्ला 11 के दिन पुत्री प्रमिला के साथ श्री रंजन श्रीजी के चरणों में दीक्षित हुईं। प्रकृति से शांत, मधुरभाषिणी, विनय विवेक व व्यक्तित्व की प्रखरता से शिष्या परिवार की वृद्धि हुई। स्वयं की 5 शिष्याएँ हुईं- (1) निरंजनाश्रीजी (2) नित्यानंद श्रीजी, (3) सुरेन्द्रश्रीजी (4) जितेन्द्र श्रीजी, (5) जयानंद श्रीजी । प्रशिष्याओं का विशाल परिवार इस प्रकार है। - महायशाश्रीजी, कुमुदयशाश्रीजी, धर्मरसाश्रीजी, प्रशांतरसाश्रीजी, आत्मरसाश्रीजी, प्रमुदिताश्रीजी, पूर्णरत्नाश्रीजी, सौम्ययशाश्रीजी, धर्मविदाश्रीजी, अमितप्रज्ञाश्रीजी, नंदिताश्रीजी, नयदर्शनाश्रीजी, व्रतनंदिताश्रीजी, जिनदर्शिताश्रीजी, प्रशमिताश्रीजी, जिनेशिताश्रीजी, शमरसाश्रीजी, महानंदाश्रीजी, कल्पज्ञाश्रीजी, सत्त्वगुणाश्रीजी, चारूप्रज्ञाश्रीजी, शमपूर्णाश्रीजी, शमदर्शिताश्रीजी, ललितयशा श्रीजी, प्रसन्नवदनाश्रीजी, तत्त्वदर्शनाश्रीजी, नयज्ञाश्री, समयज्ञाश्री, विरागदर्शिता जी, सुसंयमिताश्री सौम्यनंदिताश्रीजी, हर्षनंदिताश्रीजी, धर्मयशाश्री, नयगुणाश्रीजी, इन्द्रियदमा श्रीजी, पूर्णानंद श्री, प्रशमगुणाश्री, अमीरसाश्रीजी, हर्षितवदनाश्री, आत्मजयाश्री, मुक्तिपूर्णाश्री, मुक्तिरत्नाश्री विरागरत्नाश्री, भक्तिरत्नाश्री, सत्त्वानंद श्रीजी, आत्मदर्शिताश्रीजी, तत्त्वशीलाश्री, राजदर्शिताजी, अपूर्वनंदिताश्री। इस प्रकार अपूर्व तप, त्याग एवं चारित्र का दीप प्रदीप्त कर प्रियंकराश्रीजी संवत् 2011 को महाप्रयाण कर गईं। 288
285. वही, पृ. 238
286. विशेष परिचय अग्रिम पृष्ठों पर देखें
287. 'श्रमणीरत्नो' पृ. 192-93
288. वही, पृ. 197
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