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________________ श्वेताम्बर परम्परा की श्रमणियाँ भावितरत्नाश्रीजी विदितरत्नाश्रीजी नम्रताश्रीजी सरिताश्रीजी मोक्षज्ञाश्रीजी भव्यप्रज्ञाश्री छट्ठ अट्ठम, सहस्रकूट, अठाई, क्षीर समुद्र तप । प्रज्ञावंत साध्वी हैं। पंचमी, दसमी, ग्यारसतप, 50 अट्टम, बीसस्थानक, 96 जिन ओलीतप, नवपद ओली, अष्टमी, सिद्धितप, वर्षीतप अठाई, एकासणे । Jain Education International वर्षीतप 500 आयंबिल, बीसस्थानकतप, नवपद ओली, वर्धमान तप की 15 ओली। दूज, पंचमी, दसमी, ग्यारस, अक्षयनिधि, नवपद ओली, दिवाली छट्ठ, वर्धमान तप की 13 ओली (चालु) सिद्धितप, सोलह उपवास, खीरसमुद्र, वर्षीतप बीसस्थानक की ओली, दीपावली छट्ठ, नवपद ओली, वर्धमान तप की 18 ओली (चालु) दसम, पंचमी, ग्यारस, अक्षयनिधि तप, नवकारतप, पंचरंगी, एकासणे आदि । अक्षयनिधि तप 4, उपधान, दूज, पंचमी, अष्टमी, दशमी, ग्यारस, मेरूतेरस, चौदस, बसस्थानक तप, 96 जिन तप, विजय की 5 ओली, कर्मसूदन तप, बावन जिनालय, 45 आगम, 14 पूर्व, अष्टमासिद्धि, नमस्कार तप, लब्धितप, स्वर्गस्वस्तिक तप, मोदकतप, 4, 5, 6, 8, 9, 10, 11, 15, 16 मासक्षमण, क्षीरसमुद्र, सातसमुद्र, चत्तारिअट्ठ दस दोय, सिद्धितप, पंचरंगी, 150 कल्याणक, वर्षीतप, शत्रुंजय तप 3, शत्रुंजय मोदक, दीपावली अट्ठम 20, पार्श्वनाथ अट्ठम (108) 1024 सहस्रकूट, 229 छ्ट्ठ व अट्ठम, चैत्रीपूनम 22, सात सौख्य, योगशुद्धि, रत्नत्रय, रत्नपावडिया, नवपद ओली 32, चौमासीतप 9, वर्धमान तप ओली 49, कर्मप्रकृति तप, श्रेणीतप धर्मचक्र, सात सौख्य आठ मोक्ष, नागेश्वर पार्श्वनाथ के अट्टम तथा एकासने से अन्य भी विविध तप करती हुई ये लब्धि-संपन्न तपोमूर्ति साध्वी के रूप में जिनशासन की दीप्तीमान मणी है। 279 अट्ठम, बीसस्थानक, बेले व उपवास से वर्षीतप, उपधान, नवपद ओली, वर्धमान तप की 14 ओली, दीपावली छट्ट, सिद्धितप, नवकारमंत्र आदि । 5.3.1.14 श्री प्रवीणश्रीजी (संवत् 1991-2047 ) संवत् 1971 राजनगर के मोहनभाईवादी व नारंगीबहन के यहाँ जन्मी इस पुण्यात्मा ने संवत् 1991 कार्तिक कृष्णा 11 को अमदाबाद में श्री सिद्धसूरिजी (बापजी) के वरदहस्त से श्री रंजनाश्रीजी की नेश्राय में दीक्षा ग्रहण की। प्रज्ञा की उत्कर्षता के साथ वर्धमान आयंबिल तप की 100 ओली पूर्ण कर अपनी आत्मशक्ति का परिचय देने वाली तपोदीप्त साध्वियों में ये एक हैं। बीसस्थानक तप, रत्नपावड़ी, सिद्धाचल के छट्ट-अट्ठम, बावन जिनालय, कर्मप्रकृति के 158 उपवास, 96 जिन ओली उपवास से, 45 आगम तप, मासखमण, नवपद जी की लगभग 100 ओली, 24 तीर्थंकर तप, एकादशी, पंचमी, दसमी आदि अन्य भी अनेक तपस्याएँ इन्होंने की। संवत् 279. मुनि श्री सुधर्मसागरजी, जिनशासन नां श्रमणीरत्नो, पृ. 238-44 347 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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