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________________ श्वेताम्बर परम्परा की श्रमणियाँ विवाह और नौ मास में ही इस संबंध पर उल्कापात पड़ने पर फल्गुश्री का बालमन वैराग्य-वासित हो गया, किंतु मोहग्रस्त परिवार ने दीक्षा की अनुमति नहीं दी, सतत संघर्ष के पश्चात् संवत् 1990 फाल्गुन कृष्णा 6 को श्री चन्द्रसागर सूरीश्वरजी द्वारा संयम ग्रहण कर लिया। शासनोन्नति के अनेकविध कर्त्तव्य करके वे उज्जैन में स्वर्गवासिनी हुईं। इनकी 8 शिष्याएँ - ध्यानश्रीजी, ऋजुताश्रीजी, कल्याणश्रीजी, विनयप्रभाश्रीजी, अशोकश्रीजी, अमितगुणाश्रीजी,75 तथा आत्मयशाश्रीजी हैं। कल्याणश्रीजी की शिष्या महेन्द्रश्रीजी-मुक्तिश्रीजी तथा विनयप्रभाश्रीजी की विनेन्द्रश्री और चन्द्रप्रभाश्रीजी हैं।276 5.3.1.12 निरूपमाश्रीजी (सं. 1990-वर्तमान) भोयणीतीर्थ के निकटस्थ ग्राम डांगरवा से अपनी मातु श्री चंचलबहन एवं दो बहनों के साथ संवत् 1990 फाल्गुन कृष्णा 7 को अमदाबाद में दीक्षित निरूपमाश्रीजी अनेक आगम-ग्रंथों की विज्ञाता एवं तपोमूर्ति साध्वी रत्ना हैं। आठ, दस, सोलह, मासखमण, सिद्धितप, वर्षीतप, 250-500 संलग्न आयंबिल तप, वर्धमान आयंबिल की संपूर्ण 100 ओली, 24 तीर्थंकर के एकासन, बीसस्थानक आदि विविध तपस्याएँ की। इनकी अनेक शिष्याएँ हैं-ज्येष्ठाश्री, प्रशमरसाश्रीजी, जयरेखाश्रीजी, जयवर्धमाश्रीजी, प्रदीप्ताश्रीजी, पुण्ययशाश्रीजी, प्रशमप्रज्ञाश्रीजी आदि। ज्येष्ठाश्रीजी की प्रमितगुणाश्री- सुगुप्ताश्री- नम्ररत्नाश्री- नीलरत्नाश्रीजी, सौम्यरत्नाश्रीजी- रम्यरत्नाश्रीजी, सम्यग्गुणाश्रीजी आदि शिष्या हैं। जयरेखाश्रीजी की अक्षयरेखाश्रीजी नवरत्नाश्री- चिद्रत्नाश्री हैं। प्रदीप्ताश्रीजी की पूर्णताश्री और दिव्यताश्री तथा प्रशमप्रज्ञाश्रीजी की दिव्यदर्शनाश्री और स्मितदर्शनाश्रीजी हैं।27 5.3.1.13 श्री सुलसाश्रीजी (संवत् 1991 से वर्तमान) ऊनावां (महेसाणा) में मूलचंदभाई के यहाँ अवतरित सुलसाश्रीजी ने माता पिता दो भ्राताओं के साथ संवत् 1991 चैत्र शुक्ला 11 को रतलाम में दीक्षा ग्रहण की, एवं अपनी मातुश्री सद्गुणाश्रीजी की शिष्या बनी। अनेक शास्त्रों का ज्ञान संपादन करने के साथ 21 वर्ष दादी गुरूणी श्री सरस्वतीश्रीजी एवं 10 वर्ष गुरूणी की सेवा में रत रहीं, इनकी 13 शिष्या एवं 14 प्रशिष्याओं के नाम इस प्रकार हैं -तत्त्वानंदश्रीजी, सुगुणाश्रीजी, सुधर्माश्रीजी, हितोदयाश्रीजी, सुज्येष्ठाश्रीजी, सुरक्षाश्रीजी, पुण्ययशाश्रीजी, विरतियशाश्रीजी, देवज्ञाश्रीजी, भावरत्नाश्रीजी, राजनंदिताश्रीजी, तत्त्वनंदिताश्रीजी, नयनंदिताश्रीजी, सुनंदिताश्रीजी, आगमयशाश्रीजी, अक्षतयशाश्रीजी, विश्वोदयाश्रीजी, शीलदर्शनाश्रीजी, कल्पदर्शनाश्रीजी, पूर्णदर्शनाश्रीजी, निर्मलदर्शनाश्रीजी, विश्ववंदिताश्रीजी, तत्त्वरक्षाश्रीजी, मुक्तिरक्षाश्रीजी, विश्वनंदिताश्रीजी, जयनंदिताश्रीजी, श्रुतनंदिताश्रीजी। विशाल साध्वी संघ की आस्थाभूमि सुलसाश्रीजी कट्टर आचार की समर्थक एवं स्वावलम्बी जीवन की हिमायती महाविदुषी साध्वी हैं। इनके परिवार की अनेक साध्वियों ने तप की उज्जवल ज्योति प्रदीप्त की है, उन सबका उपलब्ध विवरण नीचे दिया जा रहा है-78श्री सरस्वतीश्रीजी - 8, 16, 30 उपवास, 108 आयंबिल, मेरूदंड, चौदहपूर्व, वर्धमान तप की 56 ओली, कल्याणक, कर्मसूदन, चतुर्दशी, समवसरण, तेरह काठिया के 13 अट्ठम, 275. विशेष परिचय अग्रिम पृष्ठों पर देखें 276. श्रमणीरत्नो. पृ. 180 277. वही, पृ. 181-83 278. वही, पृ. 188-89 343 Jain Education International For Privat n al Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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