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जैन श्रमणियों का बहद इतिहास
5.2.21 साध्वी धरणूं, रूपां, कमां, ऊदा (संवत् 1697)
आप सभी का उल्लेख संवत् 1697 की हस्तलिखित प्रति 'मृगांकलेखा रास' के अंत में है। उक्त प्रति से ज्ञात होता है कि ये साध्वियाँ पूज्य पासचन्द्र आचार्य एवं श्री हरपाल रिक्ष की आज्ञानुवर्तिनी थीं। मृगांकलेखा रास बड़तपागच्छीय ज्ञानसागरसूरि के शिष्य श्रावक कवि वच्छ द्वारा संवत् 1523 में रचा गया था। हस्तलिखित प्रति विमलगच्छ भंडार, विजापुर नं. 20-11 और 20-15 में संग्रहित है।245 उक्त रास की एक प्रति संवत् 1697 की पाटण भंडार वाचक धर्मभूषणगणि द्वारा लिखित प्राप्त हुई है, जिस पर लिखा है- प्रवर्तिनी सत्यप्रभा पठनार्थ, राजसुंदरी चिरं जयात्। 5.2.22 श्री दीपविजयाजी (संवत् 1791)
आपके लिये तपागच्छीय पुण्यसागरजी के शिष्य अमरसागर कृत 'रत्नचूड़ चौपाई' 62 ढाल की संवत् 1748 मधुमास शु. 11 गुरूवार को मालवा के खिलचीपुर में रचित होने का उल्लेख है, जो संवत् 1791 पोष शु. 11 बुधवार को जहानाबाद में लिखवाई गई थी, वर्तमान में वह गुलाबकुमारी लायब्रेरी कलकत्ता बंडल नं. 55, नं. 661 में है। इसमें आपको श्री सुजाणविजयाजी की शिष्या लिखा है। सुजाणविजयाजी के लिये लेखक ने 'शीलालंकारधारिणी' विशेषण दिया है, एवं दीपविजयाजी को 'महामतिधारिणी' लिखा है।247
5.3 समकालीन तपागच्छीय श्रमणियाँ (20वीं सदी से अद्यतन) 5.3.1 आचार्य आनन्दसागरसूरीश्वर जी का श्रमणी-समुदाय : ।
श्वेताम्बर मूर्तिपूजक तपागच्छ सम्प्रदाय में आगमोद्धारक आचार्य श्री आनन्दसागरसूरि जी का समुदाय अतीत से आज तक अत्यधिक विस्तीर्ण एवं विविधता लिये हुए है। वर्धमान तप की 100 ओली संपूर्ण करने का सर्वप्रथम श्रेय इसी समुदाय को प्राप्त हुआ है, आज भी इस समुदाय की श्रमणियों में अलौकिक प्रतिभा, तप-साधना में अप्रमत्तता, स्वाध्यायशीलता आदि विशिष्ट गुण देखने को मिलते हैं। सन् 2004 की चातुर्मास सूची के अनुसार वर्तमान में इस समुदाय की श्रमणियों की संख्या 839 है। इस विशाल साध्वी-समुदाय में श्री शिवश्री जी, तिलक श्रीजी, तीर्थश्रीजी, पुष्पाश्रीजी, रेवतीश्रीजी, राजेन्द्र श्रीजी, मृगेन्द्र श्रीजी, निरंजनाश्रीजी, मलयाश्रीजी आदि का पृथक्-पृथक् सुविस्तृत परिवार है उन सभी का उपलब्ध व्यक्तित्व, कृतित्व, शिक्षा, साधना, धर्मप्रचार का विवरण यहाँ प्रस्तुत किया गया है। 5.3.1.1 प्रवर्तिनी शिवश्रीजी (संवत् 1926-80)
सुदीर्घ संयम पर्यायी शासन प्रभाविका साध्वियों में अग्रिम पंक्ति में स्थान पाने वाली साध्वी शिवश्रीजी का जन्म संवत् 1908 को सौराष्ट्र के रामपुरा-झंकोड़ा (वीरमगाम) निवासी शेठ झुमखराम संघवी की धर्मपत्नी 245. जै. ग. क. भाग 1. प. 144 246. वही, पृ. 144 247. जै. गु. क. भाग 5, पृ. 68
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