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श्वेताम्बर परम्परा की श्रमणियाँ 5.2.16 महत्तरा विनयवृद्धि (संवत् 1644)
तपापक्ष की वृद्धेतर शाखा में श्री हीरविजयसूरि के शिष्यानुशिष्य श्री जयसागरजी ने संवत् 1644 ज्येष्ठ शु. 14 गुरूवार को 'कल्याणमंदिर टीका' महत्तरा विनयवृद्धि की शिष्या साध्वी श्री बाई के पठनार्थ लिखकर दी। यह प्रति बड़ा चौटा, उदयपुर पोथी 15 में संग्रहित है।240 5.2.17 प्रवर्तिनी विवेकलक्ष्मी, धर्मलक्ष्मी (संवत् 1652)
श्री जयवंतसूरि-गुणसौभाग्यसूरि की 'काव्यप्रकाश टीका' की प्रशस्ति में उक्त साध्वियों का आदर सहित उल्लेख किया गया है। ये बृहद् तपागच्छीय परंपरा की साध्वियाँ हैं। टीका संवत् 1652 की है।241 5.2.18 साध्वी नयश्री (संवत् 1652)
ये मेड़ता के ओसवाल परिवार के चोरड़िया गोत्रीय शाह मांडण की पुत्रवधु एवं नथमलजी की भार्या थी। इनका नाम 'नायकदे' था। इनकी दादी फूलां भी अति उदार हृदया महिला थी। नथमलजी से इनके पाँच पुत्र हुए।
त्यन्त धार्मिक प्रवृत्ति के व्यक्ति थे, इन्होंने तपागच्छ के श्री कमलविजयजी से 21 अट्टम व कई बेले, उपवास ग्रहण किये थे। बाद में परिवार के 6 व्यक्तियों के साथ जिसमें नायकदे व उनके 4 पुत्रों ने संवत् 1652 माघ शु. 2 को पाटण में विजयसेनसूरि के पास दीक्षा ग्रहण की। 'नायकदे' का दीक्षा के पश्चात् 'नयश्री' नाम दिया। इनके तृतीय पुत्र कर्मचन्द्र दीक्षा के पश्चात् कनकविजय और आचार्य पद के पश्चात् 'विजयसिंहसूरि' के नाम से प्रसिद्धि को प्राप्त हुए।242 5.2.19 साध्वी कल्याणऋद्धि (संवत् 1687)
संवत् 1687 में तपागच्छीय श्री विजयदेवसूरीश्वर के राज्य में पं. कीर्तिविजयजी ने 'श्री पाक्षिक सूत्र' लिखकर साध्वी हेमऋद्धि की शिष्या कल्याणऋद्धि को दिया। इसकी हस्तप्रति श्री कांतिविजय संग्रहालय बड़ोदरा में है।243
5.2.20 साध्वी लब्धिलक्ष्मी (संवत् 1692)
संवत् 1622 में पूर्णिमागच्छ के रत्नसुंदर द्वारा रचित 'पंचाख्यान चौपाई/कथा कल्लोल चौपाई' तपागच्छ के श्री हेमविमलसूरि की परम्परा के मुनि सौभाग्यविमल ने भ्राता मुनि वृद्धिविमल तथा साध्वी लब्धिलक्ष्मी के वाचनार्थ पाहलणपुर में संवत् 1692 में लिखकर दी। यह प्रति रत्नविजय भंडार डेहला, दा. 41 नं. 29 में सुरक्षित है।244
240. जै. गु. क. भाग 3, पृ. 350 241. जै. गु. क. भाग 2, पृ. 72 242. 'नाहटा', ऐति. जै. काव्य संग्रह, पृ. 95 से 100 243. अ. म. शाह, श्री प्रशस्ति संग्रह, पृ. 192 244. जै. गु. क. भाग 2, पृ. 131
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