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________________ जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास शिष्या गणिनी राजलक्ष्मी की शिष्या थी। आपके वाचनार्थ संवत् 1557 में हर्षकुल कृत 'वासुदेवचौपाई' श्री सुमतिमंडन गणि ने लिखकर दी। यह प्रति ईडर के भंडार में है। इसमें लिपि संवत् नहीं है।235 5.2.12 कोडिमदे (संवत् 1613) आप मारवाड़ के नाडलाई ग्राम निवासी कर्माशाह की धर्मपत्नी थी, जो राजा देवड़ की 35 वीं पीढ़ि में हुई, ऐसा माना जाता है। इनके पुत्र का नाम 'जेसिंघ' था। इन्होंने तपागच्छ के महान क्रियोद्धारक श्री आनन्दविमलसूरि के पट्टधर शिष्य श्री विजयदानसूरिजी के पास सूरत शहर में संवत् 1613 ज्येष्ठ शु. 11 को पुत्र के साथ दीक्षा अंगीकार की। वे विजयसेनसूरि के नाम से प्रख्यात हुए। सूरिजी की तार्किक बुद्धि एवं युक्तिपूर्ण निरूत्तर करने की शक्ति से प्रभावित होकर अकबर बादशाह ने 'सूरिसवाई' का विरूद प्रदान किया था।236 5.2.13 साध्वी राजश्री (संवत् 1634) तपागच्छीय आचार्य विजयसिंहसूरि के श्री देवविजयजी ने 'चंपकरास' 48 ढाल, 240 कड़ी का संवत् 1735 श्रावण शु. 13 को 'धाणेरा' में रचा। उसकी प्रशस्ति में साध्वी राजश्री का स्मरण किया है। यह प्रति विजय नेमीश्वर भंडार, खंभात में है।। साधु पुण्यविजय सखाई, सूधी साध गुरूभाई जी राजश्री साध्वी मुझ माई, श्री जिनधर्म सगाईजी। 5.2.14 आर्या सोना (संवत् 1638) बड़तपागच्छीय ज्ञानसागरसूरि के शिष्य वच्छ श्रावक ने 'मृगांकलेखा रास' की रचना संवत् 1523 में की, इसकी प्रति संवत् 1638 वैशाख कृ. 6 रविवार को रामदास ने कुर्कटेश्वर में लिखकर आर्या सोना को पढ़ने के लिये दी थी। यह प्रति विजयनेमिसूरिश्वर ज्ञानमंदिर खम्भात में संग्रहित है।238 5.2.15 साध्वी हेमश्री (संवत् 1644) आप बड़तपागच्छीय भानुमेरू के शिष्य नयसुन्दर की शिष्या थीं। आपने संवत् 1644 वैशाख कृ. 7 मंगलवार को 367 कड़ी की एक विस्तृत रचना 'कनकावती आख्यान' लिखकर पूर्ण की। इस कथा में शील का माहात्म्य दर्शाया है। रचना का कुछ अंश 'जैन गुर्जर कविओ' भाग 2 पृ. 231 पर उल्लिखित है। आपकी एक अन्य कृति 'मौन एकादशी स्तुति' प्रवर्तक कांतिविजयजी भंडार, नरसिंहजी की पोल, बड़ोदरा में है। उक्त कृति गणि रत्नविजयजी ने सूरत में लिखी, वह शेठ हालाभाई मगनलाल का निवास फोफलियावाड़ पाटण दा. 48 नं. 140 में सुरक्षित है।39 235. जै. गु. क. भाग 1, पृ. 214 236. (क) मुनि विद्याविजय, विजय प्रशस्ति सार, पृ. 22, हर्षचन्द्रभूराभाई जैनशासन लखनऊ, सन् 1912, (ख) पं. कल्याणविजय जी, पृ. 241 ई. तपागच्छ पट्टावली भाग 1, अमदाबाद, 1940 237. जै. गु. क. भाग 4, पृ. 258 238. जै. गु. क. भाग 1, पृ. 142 239. डॉ. शितिकंठ मिश्र, हि. जै. सा. इ. भाग 2, पृ. 598, बनारस 320 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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