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________________ 5.1.2.31 श्री विजयेन्द्र श्रीजी ( संवत् 2009 से वर्तमान) इनका जन्म संवत् 1984 प्रतापगढ़ में श्री मोतीलालजी जवासा के यहाँ हुआ। संवत् 2009 माघ शुक्ला 11 को में आपने श्री प्रमोद श्रीजी से दीक्षा ग्रहण की। वर्तमान में 12 साध्वियों के साथ आप विचरण कर रही हैं। 201 उदयपुर 5.1.2.32 श्री चन्द्रकलाश्रीजी ( संवत् 2009 से वर्तमान) इनका जन्म वैशाख शुक्ला एकम संवत् 1991 को मुलतान में नाहटा गोत्रीय धनीरामजी के यहाँ हुआ। संवत् 2009 फाल्गुन शुक्ला 5 को छापीहेड़ा में श्री विचक्षणश्रीजी के पास दीक्षित हुई। आप अत्यन्त सरलमना और उदारहृदयी हैं। श्री सुलोचनाश्रीजी आदि चार शिष्याएँ हैं। 202 5.1.2.33 श्री मनोहर श्रीजी ( संवत् 2011 से वर्तमान ) इनका जन्म पादरा में संवत् 1993 को श्रीमाल चिमनभाई - चन्दनबाला के घर हुआ था। संवत् 2011 मृगशिर शुक्ला 11 को पादरा में दीक्षा ग्रहण कर ये श्री विचक्षणश्रीजी की शिष्या बनीं। आप शतावधानी हैं, व्याख्यान में दक्ष और कुशल लेखिका भी हैं। पुरातन स्थलों का जीर्णोद्धार व संघ के विकास हेतु आप सदा प्रयत्नशील रही हैं। आपकी अनेक शिष्याएँ विदुषी और लेखिकायें हैं। डॉ. सुरेखाजी, डॉ. मधुस्मिताश्री, डॉ. दिव्यगुणाश्री, डॉ. स्मितप्रज्ञाश्री, डॉ. हेमरेखाश्री ये 5 शिष्याएँ पी.एच.डी. की उपाधि प्राप्त हैं। मालपुरा दादावाड़ी की प्रतिष्ठा के समय आप 16 शिष्याओं के साथ विद्यमान थीं। 203 जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास 5.1.2.34 श्री हेमप्रभाश्रीजी ( संवत् 2012 से वर्तमान ) इनका जन्म 2001 को उज्जैन में भाण्डावत गोत्रीय गेंदामलजी के यहाँ हुआ। संवत् 2012 वैशाख शुक्ला 7 को पाली में अनुभव श्रीजी के पास इनकी दीक्षा हुई। आपने दर्शनशास्त्र में एम. ए. किया है, आप प्रखर व्याख्यात्री हैं। 'प्रवचनसारोद्धार-टीका सह' नामक क्लिष्ट ग्रंथ का आपने हिंदी अनुवाद किया है जो प्राकृत भारती अकादमी जयपुर से 2 भागों में प्रकाशित हो चुका है। आप प्रभावशालिनी और मधुरभाषिणी हैं। आपकी प्रेरणा से अनेक दादावाड़ियों का निर्माण हुआ है। आपकी शिष्या मंडली में 16-17 साध्वियाँ हैं । 204 5.1.2.35 श्री सुरंजनाश्रीजी (संवत् 2012 से वर्तमान) संवत् 1993 पादरा में इनका जन्म वाडीलालभाई मेहता और इच्छाबहन के यहाँ हुआ। संवत् 2012 आषाढ़ शुक्ला 10 के दिन श्री विचक्षणश्रीजी के पास दीक्षा ली। आप मिलनसार, सरलहृदया और विदुषी साध्वी हैं। वर्तमान में श्री सिद्धांजनाश्रीजी आदि छह शिष्याओं के साथ आप विचरण कर रही हैं। 205 201. खरतरगच्छ का इतिहास, खंड 1, पृ. 423 202. खरतरगच्छ का इतिहास, खंड 1, पृ. 416 203. खरतरगच्छ का इतिहास, खंड 1, पृ. 417 204. खरतरगच्छ का इतिहास, खंड 1, पृ. 422 205. खरतरगच्छ का इतिहास, खंड 1, पृ. 417 Jain Education International 304 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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