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________________ 5.1.2.14 श्री उपयोग श्रीजी ( संवत् 1974-2016 ) आपका जन्म फलौदी निवासी श्री कन्हैयालालजी गोलेछा के यहाँ हुआ। बाल्यवय में पतिवियोग के पश्चात् संवत् 1974 माघ शुक्ला 13 फलोदी में दीक्षा ग्रहण कर, श्री पुण्यश्रीजी की शिष्या बनीं, किंतु इनका समग्र जीवन ज्ञान श्रीजी की सेवा में व्यतीत हुआ, अपने उदार व्यक्तित्व एवं सेवाभावना से इन्होंने साध्वी - वृंद में विशिष्ट नाम अर्जित किया। संवत् 2016 जयपुर में अकस्मात् इनका स्वर्गवास हुआ। 183 5.1.2.15 प्रवर्तिनी श्री जिनश्रीजी ( संवत् 1976-2045 ) श्री जिनश्रीजी तिंवरी (राज.) निवासी श्री लादुरामजी बुरड़ एवं माता घूड़ीदेवी की कन्या थीं। संवत् 1957 में जन्म के पश्चात् 14 वर्ष की वय में विवाह हुआ, डेढ़ वर्ष पश्चात् वैधव्य के ताप से त्रस्त इन्होंने संवत् 1976 मृगशिर शुक्ला 5 के दिन वल्लभश्रीजी के पास दीक्षा अंगीकार की। अपनी प्रज्ञा से गुरूवर्या के संपूर्ण कार्यों में सहयोग देने से ये 'मंत्री' के नाम से प्रख्यात हुईं, उनके स्वर्गवास के पश्चात् ये प्रवर्तिनी पद पर प्रतिष्ठित हुईं। अमलनेर में सुदीर्घ संयम पर्याय का पालन कर स्वर्गवासिनी हुईं। 184 5.1.2.16 श्री अनुभव श्रीजी ( संवत् 1979-2043 ) इनका जन्म संवत् 1959 भाद्रपद कृष्णा अष्टमी के दिन शाजापुर में हुआ था। इनके माता-पिता का नाम सोनादेवी जमुनादास भांडावत था। प्रवर्तिनी श्री प्रेमश्रीजी के प्रवचनों से प्रभावित होकर संवत् 1979 में दीक्षा ग्रहण की। आप संस्कृत, प्राकृत की विदुषी, आगम-मर्मज्ञा एवं प्रखर व्याख्यात्री थीं, 26 वर्ष पाली में स्थानापन्न होकर जिनशासन की सेवा करती हुई संवत् 2043 फाल्गुन कृष्णा 3 को समाधिपूर्वक स्वर्गवासिनी हुईं। वर्तमान में आप की छः शिष्या एवं 11 प्रशिष्याएँ हैं । 185 जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास 5.1.2.17 श्री हीराश्री जी ( संवत् 1980-99 ) फलोदी (राज.) निवासी शेठ फतेलालजी कोचर और तुलछीबाई के यहाँ आपका जन्म नाचणगांव में संवत् 1968 चैत्र शुक्ला 3 को हुआ। 10 वर्ष की वय में बड़ौदे में संवत् 1980 ज्येष्ठ शुक्ला 3 को आचार्य हरिसागर सूरिजी के मुखारविन्द से दीक्षा पाठ पढ़कर आपने प्रवर्तिनी श्री देवश्रीजी की शिष्या श्री दानश्रीजी के पास दीक्षा ग्रहण की थी। नैसर्गिक प्रतिभा एवं गुरूजनों के संसर्ग से अनेकानेक ग्रंथ, कोश ग्रन्थ, व्याकरण, महाकाव्य व आगमों की ज्ञाता बन गईं। आप सदा ज्ञान का ही अन्वेषण, उसीका चिन्तन-मनन करती थीं। आपका स्वभाव अत्यंत शांत और विवेकपूर्ण था, कभी भी किसी अवस्था में उत्तेजित नहीं होती थीं। संवत् 1999 पोष शुक्ला 3 के दिन फलोदी में समाधिपूर्वक आप स्वर्गवासिनी हुईं। आपने जंबूचरित्र - कथा संग्रह, बंकचूल कथा, गजसुकुमाल कथा, अवन्ती सुकुमाल कथा, धन्यकथा, इलापुत्र आदि कई कथाएँ संस्कृत भाषा में लिखी, " जैन कथा संग्रहः " के नाम से प्रकाशित हैं । 186 183. वही, पृ. 802 184. खरतरगच्छ का इतिहास, खंड 1 पृ. 424 185. संविग्न साधु-साध्वी परम्परा का इतिहास, पृ. 421 186. श्री हीराश्रीजी, जैन कथा संग्रहः, लोहावट, वि. सं. 2060 ई. Jain Education International 300 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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