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________________ श्वेताम्बर परम्परा की श्रमणियाँ 5.1.2.18 प्रवर्तिनी श्री हेमश्रीजी ( संवत् 1980-2046 ) फलौदी निवासी गोलेछा गोत्रीय श्री जमुनालालजी एवं श्रीमती सुगनदेवी के यहाँ संवत् 1962 में आपका जन्म हुआ। संवत् 1980 ज्येष्ठ शुक्ला 5 को फलौदी में प्रवर्तिनी श्री वल्लभ श्रीजी के पास दीक्षा ग्रहण की। आप विदुषी साध्वी थीं। संवत् 2046 मृगशिर कृष्णा 5 को सैंधवा में प्रवर्तिनी पद दिया गया उसी वर्ष वैशाख कृष्णा 13 को उज्जैन में आप स्वर्गवासिनी हुई | 187 5.1.2.19 प्रवर्तिनी विचक्षणश्रीजी (संवत् 1981-2037 ) खरतरगच्छ की प्रभावक साध्वी विचक्षणश्रीजी का जन्म संवत् 1969 आसाढ़ कृष्णा 1 को अमरावती में पिता श्री मिश्रीमलजी मूथा एवं माता रूपादेवी के यहाँ हुआ। द्राक्षावत् मधुर व रसीली होने से आपका नाम 'दाखीबाई' प्रसिद्ध हो गया। छोटी अवस्था में ही आपकी सगाई पन्नालालजी मुणोत के साथ कर दी गई। पिताश्री का अचानक स्वर्गवास हो जाने तथा स्वर्णश्रीजी के सतत सम्पर्क में आने से माता-पुत्री दोनों ने अत्यन्त विरक्त भाव से संवत् 1981 पीपाड़ में प्रव्रज्या ग्रहण की। आपकी वाणी में श्रोताओं को मुग्ध करने की अद्भुत शक्ति थी। वैष्णव संत अखंडानन्द जी के साथ प्रवचन में उन्होंने इन्हें 'जैन मीरा' पद दिया। तपागच्छ के विजयवल्लभसूरिजी के साथ प्रवचन में उन्होंने मुग्ध होकर 'जैन कोकिला' से संबोधित किया था। ये समता मूर्ति, विश्व प्रेम प्रचारिका, समन्वय साधिका, व्याख्यान भारती, अध्यात्मरस निमग्ना आदि अलंकरणों से भी अलंकृत हुई। इनकी वाणी से प्रभावित होकर 45 महिलाओं एवं कन्याओं ने संयम ग्रहण किया, जिनमें साध्वी अविचलश्रीजी, मणिप्रभाश्रीजी आदि सुयोग्य विदुषी विख्यात साध्वियाँ हैं। आपने समाज की गरीब महिलाओं के लिये 'भारतीय सुवर्ण सेवा फंड' अमरावती व जयपुर में स्थापित करवाया दिल्ली में 'सोहन श्री विज्ञान श्री कल्याण केन्द्र' व रतलाम में 'सुखसागर जैन गुरूकुल' आदि जनोपयोगी संस्थाएँ प्रारम्भ की। कई जगह वर्षों से विभक्त समाज परस्पर संगठित हुए। जीवन के अंतिम समय में आप कैंसर जैसी भयंकर व्याधि से ग्रस्त हो गईं, तथापि कोई हिंसक उपचार नहीं करवाया। “व्याधि में समाधि" का सूत्र अपनाकर संवत् 2037 को दादावाड़ी जयपुर में स्वर्गस्थ हुईं। 'जैन कोकिला' नाम से इनका जीवन चरित्र प्रकाशित है। अपने 'कोमल' उपनाम से इन्होंने अनेक आध्यात्मिक प्रेरक भजन लिखे । 188 5.1.2.20 श्री प्रकाशश्रीजी (संवत् 1984 से वर्तमान) इनका जन्म संवत् 1972 खैरवा में समदड़िया मूथा हीराचंदजी के यहाँ हुआ। संवत् 1984 मृगशिर शुक्ला 13 को खैरवा में ही श्री प्रमोद श्रीजी से आपने दीक्षा ग्रहण की। श्री शिवश्रीजी के मंडल में इस समय आप सबसे वयोवृद्ध साध्वी हैं। 89 5.1.2.21 श्री अविचल श्रीजी ( संवत् 1985 ) जन्म संवत् 1968 नागौर निवासी पिता वृद्धिचन्दजी माता घीसाबाई के यहाँ हुआ। बीकानेर निवासी 187. खरतरगच्छ का इतिहास, खंड 1, पृ. 424 188. (क) — श्रमणीरत्नो', पृ. 803 (ख) श्री मणिप्रभाश्रीजी से प्राप्त सामग्री के आधार पर 189. खरतरगच्छ का इतिहास, खंड 1, पृ. 423 Jain Education International 301 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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