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________________ श्वेताम्बर परम्परा की श्रमणियाँ गुजरात, आदि प्रदेशों में विहार कर अनेक भव्यात्माओं को प्रतिबोध दिया। आप शासन प्रभावना के कार्यों में ही । अपने क्षण-क्षण का उपयोग करती थीं। श्री सज्जनश्रीजी जैसी महान विदुषी शिष्याओं की आप जन्मदात्री थीं। आचार्य जिनानंदसागरसूरिजी भी आपके ही सदुपदेशों एवं त्यागमय जीवन से प्रभावित होकर दीक्षित हुए थे, वे समय-समय पर साध्वी जी से धर्मचर्चा व शंकाओं का समाधान भी प्राप्त किया करते थे। सूरिजी ने आपकी स्मृति में अपने जन्म-स्थान सैलाना (म. प्र.) में 'श्री आनंद ज्ञान मंदिर' की स्थापना की है। 79 आपका स्वर्गवास संवत् 2023 को जयपुर में हुआ। 5.1.2.11 प्रवर्तिनी ज्ञानश्रीजी (संवत् 1961-96) लोहावट में जन्में, लोहावट में ही चोपड़ा कुल में विवाह और वैधव्य के हर्ष-शोक से अलिप्त रहकर श्री ज्ञानश्रीजी ने श्री शिवश्रीजी म. के संपर्क से संवत् 1961 मृगशिर शुक्ला 5 में दीक्षा अंगीकार की। आपने लोहावट, फलोदी आदि शहरों में 'कन्या पाठशाला' की स्थापना करवाई। आपके उपदेश से खीचन व जैसलमेर से संघ निकले, धर्मशालाएँ निर्मित हुईं। संवत् 1996 में समाधिपूर्वक स्वर्गवास के साथ अपने पीछे 13 शिष्याओं का समुदाय छोड़ा।180 5.1.2.12 प्रवर्तिनी वल्लभश्रीजी (संवत् 1961-2018) लोहावट के श्रीमान् सूरजमलजी के यहाँ 1951 में जन्म लेकर सतत संघर्ष पूर्वक ये अपनी भुआ-ज्ञानश्रीजी के साथ संवत् 1961 में मृगशिर शुक्ला 5 को श्री छगनसागरजी म. द्वारा दीक्षित हुई। बालवय, तीक्ष्ण बुद्धि, दृढ़, लगन ने इन्हें कुछ वर्षों में 'विदुषी साध्वियों के स्थान पर प्रतिष्ठित करा दिया। इन्होंने सुदूर प्रदेशों में विहार कर अनेक राजा-महाराजा व जागीरदारों को अहिंसक बनाया, उन्हें व्यसनों से मुक्त करवाया। 20 के करीब विशिष्ट ग्रंथों का आलेखन किया। अनेक विदुषी, तपस्वी, व्याख्यात्री शिष्याएँ शासन को भेंट की। छत्तीसगढ़ शिरोमणी मनोहरश्रीजी आपकी ही विदुषी शिष्या है। इनकी सभी शिष्याएँ वक्तृत्वकला में निपुण हैं। संवत् 2018 अमलनेर में इनका स्वर्गवास हुआ। 5.1.2.13 प्रवर्तिनी प्रमोद श्री जी (संवत् 1964-2039) अन्तर्-बाह्य सौन्दर्य व समर्थ प्रभावी साध्वी प्रमोदश्रीजी का मूल वतन फलौदी था। पिता सूरजमलजी के स्वर्गवास के पश्चात् माता जेठी देवी के साथ आपकी दीक्षा संवत् 1964 माघ शुक्ला 4 को हुई। आपने आगमों का गंभीर व तलस्पर्शी ज्ञान प्राप्त किया। आपकी लेखनी से वैराग्य शतक का संक्षिप्त विवेचन, व रत्नत्रय विवेचन नामक दो ग्रंथ प्रकाशित हुए। मंदिर, दादावाड़ी, पाठशाला, आयम्बिलशाला आदि भी आपकी प्रेरणा से निर्मित हुए। आपकी 14 शिष्याएँ बनीं, इनमें डॉ. विद्युतप्रभाश्रीजी अच्छी लेखिका हैं। संवत् 2039 बाडमेर में आप स्वर्गवासिनी हुईं।182 179. मणिधारी जिनचंद्रसूरि अष्टम शताब्दी स्मृति ग्रंथ, दिल्ली, पृ. 135 180. 'श्रमणीरत्नो' पृ. 806 181. वही, पृ. 807 182. वही, पृ. 809 129१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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