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________________ जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास आप मगनश्रीजी की शिष्या बनीं। स्वल्पावधि में ही स्तोक आगम, व्याकरण आदि की योग्यता प्राप्त कर आपने धर्मप्रचार करना प्रारंभ किया। आपकी अनेक शिष्याएँ हुईं, जिनमें जीतश्रीजी, हस्तीश्रीजी, विद्याश्रीजी, दानश्रीजी, भानुश्रीजी, हीराश्रीजी, जसवंतश्रीजी, मनमोहनश्रीजी, मिलापश्रीजी, सज्जनश्रीजी आदि प्रमुख हैं। संवत् 1997 को श्री प्रतापश्री जी के स्वर्गवास के पश्चात् आपको श्री शिवश्रीजी के समुदाय की प्रवर्तिनी पद पर प्रतिष्ठित किया गया। आप सौम्य प्रकृति एवं दिव्य गुणों से सुशोभित थीं। 5.1.2.8 प्रवर्तिनी श्री विमलश्रीजी (संवत् 1950-90) ___श्री विमल श्रीजी पू. सिंहश्रीजी की सुयोग्य एवं विदुषी शिष्या थीं, इनकी जन्मतिथि आदि के विषय में जानकारी उपलब्ध नहीं है किंतु इन्होंने मारवाड़, मेवाड़, मालवा, गुजरात काठियावाड़ आदि देशों में बहुत शासनोन्नति एवं धर्म प्रभावना की है। भोपाल और गन्धार में प्रतिष्ठा महोत्सव, रतलाम में ध्वजारोपण और बाबासा के मंदिर का जीर्णोद्धार, सरवाड़ के दादावाड़ी के भव्य मंदिर का उद्धार, सोजत में कन्या पाठशाला की स्थापना, कोटे में दीवान बहादुर केशरीसिंह जी द्वारा विंशतिस्थानक तप उद्यापन, महोत्सव आदि अनेक धार्मिक अनुष्ठान इनके सदुपदेशों से हुए। इससे भी बढ़कर इनका महान कार्य श्री प्रमोदश्रीजी के व्यक्तित्व का निर्माण करना रहा, इसके लिये इनका यश चिरकालीन रहेगा। 76 5.1.2.9 प्रवर्तिनी प्रेमश्रीजी (संवत् 1954-2011) फलौदी निवासी छाजेड़ कुल में जन्मी, गोलेछा परिवार में ब्याही और एक वर्ष में ही वैधव्य आ पड़ने पर प्रेमश्रीजी के हृदय में सम्यग्ज्ञान की ज्योति प्रज्वलित हुई तथा संवत् 1954 मृगशिर कृष्णा 10 को शिवश्रीजी के पास दीक्षा अंगीकार की। आप संस्कृत-प्राकृत भाषा व न्यायदर्शन की उच्चकोटि की अध्येता थी। अद्भुत प्रवचन शक्ति के साथ मौन व ध्यानप्रिय थीं, प्रातः 6 से 10 ध्यान में बैठतीं। आहारशुद्धि व उसमें भी नियमितता आपका खास गुण था। ध्यान का बल इतना था कि एकबार मध्यप्रदेश में विहार के समय सशस्त्र डाकुओं की टोली लूटने के लिये सामने आई, आपके ध्यान के प्रभाव से उनका दृष्टि विपर्यास हुआ वह अन्य दिशा में दौड़ गई। आप 15 वर्ष फलौदी में स्थिरवासिनी रहीं। 17 शिष्या व 25 प्रशिष्याओं द्वारा शासन की अभिवृद्धि कर संवत् 2011 में स्वर्गस्थ हुईं। 5.1.2.10 प्रवर्तिनी श्री ज्ञानश्रीजी (संवत् 1955-2023) आपका जन्म संवत् 1942 में फलोदी निवासी केवलचंदजी गोलेछा के यहाँ हुआ। मात्र 9 वर्ष की वय में भीकमचंदजी वेद से आपका विवाह हुआ। एक वर्ष में ही बाल विधवा होने पर आप श्री रत्नश्रीजी के सम्पर्क में संयम-रत्न ग्रहण करने को आतुर हो उठी, संवत् 1955 में गणनायक भगवानसागरजी के मुखारविंद से दीक्षा अंगीकार कर आप पुण्यश्रीजी की शिष्या बनीं।।78 आपने 40 वर्ष की दीक्षा-पर्याय में मारवाड़, मेवाड़ मालवा, 175. श्री हीराश्रीजी, जैन कथा संग्रह, पृ. 1, लोहावट (राज.) संवत् 2003 176. आर्या राजेन्द्रश्री जी, प्रस्तावना-युगप्रधान श्री जिनचन्द्रसूरि, 1935 ई. 177. 'श्रमणीरत्नो', पृ. 806 178. वही, पृ. 801 298 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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