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________________ श्वेताम्बर परम्परा की श्रमणियाँ अंगीकार किया। साहस व संयम की धनी, ज्ञान व क्रिया में चुस्त, प्रवचन में कुशल शिवश्रीजी ने अनेकों मुमुक्षुओं का उद्धार किया। आज आपका साध्वी मंडल 'शिवमंडल' के नाम से प्रख्यात है जिसमें अनेकों विदुषी, तप-साधिकाएँ, शासन प्रभावक साध्वियाँ विद्यमान हैं। संवत् 1965 पोष शुक्ला 12 को अजमेर में स्वर्गवासिनी हुईं।172 5.1.2.5 प्रवर्तिनी सुवर्णश्रीजी (संवत् 1946-89) प्रवर्तिनी पुण्यश्री जी के स्वर्गवास के पश्चात् श्री सुवर्णश्रीजी प्रवर्तिनी पद पर प्रस्थापित हुईं। आपका जन्म संवत् 1927 में अहमदनगर निवासी सेठ योगीदास जी बोहरा व माता दुर्गादेवी के यहाँ हुआ। 11 वर्ष की उम्र में नागोर निवासी प्रतापचन्द्र जी भंडारी के साथ विवाह हुआ। श्री पुण्यश्रीजी के सम्पर्क से वैराग्य पूर्वक पति से अनुज्ञा लेकर संवत् 1946 मृगशिर शुक्ला 5 को दीक्षित हुई। आप आत्मार्थ-साधिका थीं, ज्ञानवृद्धि के साथ-साथ 13-14 घंटे ध्यानावस्था में व्यतीत करतीं। विविध तपोनुष्ठान, स्वाध्याय आदि में मग्नता, साथ ही सेवा-शुश्रूषा में अग्रणी रहने के कारण प्रवर्तिनी पुण्यश्री जी ने आपको शिष्याओं में बारहवाँ स्थान होने पर भी 'गणनायिका' के पद पर प्रतिष्ठित किया। आपकी प्रभाव संपन्न गिरा से हापुड़, आगरा, बेलनगंज सौरिपुर, दिल्ली, जयपुर, बीकानेर आदि अनेक स्थानों में जिनालयों का निर्माण या जीर्णोद्धार के कार्य हुए। जयपुर में इनकी प्रेरणा से वीर बालिका विद्यालय प्रारम्भ हुआ, जो आज वीर बालिका महाविद्यालय के रूप में रूपान्तरित हो गया है। संवत् 1989 माघ कृष्णा 9 को बीकानेर में आपका स्वर्गवास हुआ। अग्निसंस्कार स्थल (रेलदादाजी) पर इनकी पुण्य स्मृति में 'स्वर्ण-समाधि' का निर्माण किया गया।173 5.1.2.6 प्रवर्तिनी प्रतापश्रीजी (संवत् 1947-स्वर्गस्थ) आपने संवत् 1925 को फलोदी में जन्म लिया, 12 वर्ष की वय में विवाह व शीघ्र वैधव्य ने आपको मुक्ति का राही बना दिया। संवत् 1947 मृगशिर कृष्णा 10 में दीक्षा लेकर श्री शिवश्रीजी की प्रधान शिष्या बनने का गौरव प्राप्त किया। आपका जीवन शांत, सरल व गुरू सेवा में समर्पित था। ज्ञान व तप को जीवन का ध्येय बनाकर अनेकों मुमुक्षुओं को वैसी प्रेरणा भी दी। 12 शिष्याओं का गुरू पद एवं अनेक वर्षों तक प्रवर्तिनी पद को सुशोभित किया। द्वादश पर्व व्याख्यान, संस्कृत की चैत्यवंदन स्तुति, आनन्दघन चौबीसी, देवचन्द्र चौबीसी आदि आपके उपयोगी ग्रंथ प्रकाशित हैं।174 5.1.2.7 प्रवर्तिनी श्री देवश्रीजी (संवत् 1950 स्वर्गस्थ) आपका जन्म मारवाड़ के फलोदी नगर में श्री कचरमलजी वैद और उनकी धर्मपत्नी श्रीमती छोटीबाई की रत्नकुक्षि से संवत् 1928 चैत्र शुक्ला 3 को हुआ। तथा विवाह वहीं गोलेछा परिवार में हुआ। पतिवियोग के पश्चात् संवत् 1950 फाल्गुन शुक्ला 2 को खरतरगच्छीय आचार्य श्री भगवानसागरजी महाराज के द्वारा आपकी दीक्षा हुई, 172. वही, पृ. 804 173. वही, पृ. 800 174. वही, पृ. 805 297 Jain Education International For Private mesonal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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