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________________ से सम्बन्धित हैं। प्रतिमा चित्र विशेषतः मथुरा, देवगढ़ (उत्तरप्रदेश), पाटण, सूरत, मातर एवं भद्रेश्वर तीर्थ से उपलब्ध हुए हैं। कुछ चित्र साराभाई मणिलाल नवाब अहमदाबाद से प्रकाशित 'जैन चित्र कल्पलता' में अंकित हैं। कुछ चित्र सुश्रावक गुलाबचंद जी लोढ़ा चीराखाना दिल्ली के संग्रह में विज्ञप्ति पत्रों से उपलब्ध हुए हैं। दिल्ली जैन श्वेताम्बर मन्दिर की दीवारों व छतों पर उकेरित मुस्लिम काल के भी कुछ चित्र हैं। चित्तौड़ किले पर आचार्य हरिभद्रसूरि के समाधि मन्दिर की मूर्ति के मस्तक भाग पर महत्तरा साध्वी याकिनी का चित्र विशेष रूप से ध्यान देने योग्य है, यह प्रतिमा यद्यपि इक्कीसवीं सदी की है, किन्तु एक जैनाचार्य के हृदय में अपनी गुरूमाता साध्वी के लिए कितना आदर व सम्मान का स्थान था, यह उस प्रतिमा से प्रकट होता है । भद्रेश्वर तीर्थ में जो हाल में ही साध्वी प्रतिमा उत्खनन से प्राप्त हुई और उसका चित्र आचार्य शीलचन्द्रसूरि जी ने 'अनुसंधान' पत्रिका के मुखपृष्ठ पर अंकित किया है, इस चौदहवीं शताब्दी की दुर्लभ भव्य प्रतिमा का चित्र हमें उपाध्याय भुवनचन्द्र जी महाराज से प्राप्त हुआ है। श्वेताम्बर मूर्तिपूजक श्रमणियों की चरण पादुकाओं का इतिहस जो 400 वर्ष पुराना है, उसका एक नमूना हमें आबू रोड़ के समाधि मन्दिर में स्थित साध्वी सुनन्दाश्री जी का प्राप्त हुआ है, वह भी इस अध्याय के अन्त में दिया गया है। द्वितीय अध्याय : प्रागैतिहासिक काल से अर्हत् पार्श्व तक द्वितीय अध्याय में सर्वप्रथम जैन श्रमणी संघ का उद्भव और विकास बताकर तीर्थंकरकालीन श्रमणियों के नाम, संख्या एवं मान्यता भेद का दिग्दर्शन कराया है तथा प्रागैतिहासिक काल से प्रारम्भ कर अत् पार्श्वनाथ के काल तक की श्रमणियों का वर्णन किया गया है। भगवान ऋषभदेव के समय उनकी सुपुत्रियाँ भगवती ब्राह्मी और सुन्दरी ने श्रमणी संघ की नींव डाली, उनकी उर्वर मेधा से आज विश्व की सम्पूर्ण वर्ण रूप और अंक रूप विद्याएँ पल्लवित और पुष्पित हुई हैं। इन युगल श्रमणियों के योगदान से मात्र जैन संस्कृति ही नहीं विश्व संस्कृति भी चिरऋणी रहेगी । तीर्थकर अजितनाथ के समय सुलक्षणा ने शुद्ध सम्यक्त्व की प्रेरणा देकर अपने पति शुद्धभट्ट के साथ संयम अंगीकार किया। तीर्थकर मल्लिनाथ ने श्रमणी पर्याय में तीर्थकर पद पर आरूढ़ होकर शाश्वत सत्य को 'अछेरा' बना दिया था। साध्वी राजीमती ने अपने देवर रथनेमि को कर्त्तव्य बोध का सुन्दर पाठ पढ़ाकर आत्म साधना में स्थिर किया था। साध्वी मदनरेखा ने युद्ध स्थल पर पहुँच कर प्रेम एवं मैत्री का निर्नाद किया, पोट्टिला ने अथक प्रयत्न करके अपने पति को धर्म के सन्मुख किया। रानी कमलावती ने भोगों का ऐसा दारूण चित्र अपने पति ईषुकार के समक्ष चित्रित किया कि राजा भोगों से उपरत होकर दीक्षित हो गया। इसी प्रकार कथा साहित्य में आरामशोभा, कनकमाला कुबेरदत्ता, कलावती, गुणसुन्दरी, भुवनसुन्दरी, मैनासुन्दरी, ऋषिदत्ता, रोहिणी, विजया, सुतारा, श्रीमती, सुरसुन्दरी आदि सैंकड़ों शीलवती सन्नारियों के वर्णन है, जिन्होंने अपने अप्रतिम शौर्य एवं अनुपम बुद्धि चातुर्य का परिचय देकर अन्त में संयम साधना कर जैन शासन की महती प्रभावना की थी । द्वितीय अध्याय में ऐसी आगम व आगमिक व्याख्या - साहित्य तथा पुराण एवं कथा - साहित्य में उल्लिखित कुल 360 श्रमणियों का विशिष्ट परिचय दिया गया है। तृतीय अध्याय : महावीर और महावीरोत्तरकाल तृतीय अध्याय महावीर और महावीरोत्तरकालीन ( वीर निर्वाण 1 से वीर निर्वाण 1489 तक की ) Jain Education International (xxx) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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