SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 35
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन धर्म का श्रमणी - संघ और उसका अवदान शोध-संक्षेपिका डॉ. साध्वी विजयश्री 'आर्या' विश्व में अनेक धर्म हैं, उन धर्मों का सामाजिक लौकिक, साहित्यिक और सांस्कृतिक उन्नति में क्या अवदान रहा, इसे जानने के लिए उस धर्म के इतिहास को जानना आवश्यक है। जैन धर्म एक शुद्ध चिरन्तन और सार्वजनीन धर्म है, उसके चतुर्विध तीर्थ श्रमण- श्रमणी श्रावक और श्राविका रूप संघ में श्रमणी संघ एक महत्त्वपूर्ण इकाई है। यद्यपि जैन श्रमणी संघ का इतिहास प्रलम्ब अतीत से अद्यपर्यन्त गंगा की निर्मल धारा के समान अनवरत चलता चला आ रहा है, किन्तु इतिहास के सीमित साधन, श्रमणी संघ का शतशाखी विस्तार और श्रमणी परम्परा की प्रामाणिक विकास कथा का अभाव- इन सब कारणों से श्रमणी संघ की कड़ी से कड़ी को जोड़ना और उनके सम्पूर्ण योगदानों को संग्रहित करना एक दुःसाध्य कार्य है। तथापि भगवती सूत्र, अन्तकृद्दशांग, ज्ञातसूत्र, निरयावलिका आदि आगम साहित्य निर्युक्तियाँ भाष्य, चूर्णि आदि व्याख्या - साहित्य, प्रभावक चरित्र, त्रिषष्टिशलाका पुरूष चरित्र, पउमचरियं आदि चरित्रग्रंथ पुराण- साहित्य, कथा - साहित्य, विविध गच्छों से सम्बन्धित पट्टावलियों, प्रशस्ति ग्रंथों, हस्तलिखित ग्रंथों, जैन शिलालेख एवं अन्य ऐतिहासिक ग्रंथों में यत्र-तत्र बिखरे श्रमणियों के इतिहास को संग्रहित कर कालक्रमानुसार व्यवस्थित करने के इस प्रयास में सैंकड़ों ही नहीं, हजारों श्रमणियों की जानकारी प्राप्त होती है। देश, काल, सम्प्रदाय और ज्येष्ठ-कनिष्ठ की सीमा रेखा से परे जैनधर्म की उन सम्पूर्ण श्रमणियों का इतिहास प्रस्तुत शोध-प्रबन्ध में समाविष्ट करने का प्रयत्न रहा है। इस उद्देश्य की परिपूर्ति हेतु आठ अध्यायों में उसका वर्गीकरण किया गया है। प्रथम अध्याय : पूर्व पीठिका प्रथम अध्याय पूर्व पीठिका में अध्यात्म प्रधान भारतीय संस्कृति की महत्ता, श्रमण संस्कृति की प्राचीनता और जैन श्रमण संस्कृति की विशेषता बताते हुए भारत के विभिन्न धर्मों की संन्यस्त स्त्रियों का वर्णन एवं जैन धर्म में दीक्षित श्रमणियों के साथ उनका तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया गया है। साथ ही जैन धर्म में दीक्षित श्रमणियों की योग्यता, आचार संहिता, दीक्षा महोत्सव की विधि, जीवनचर्या आदि पर भी विचार किया गया है। जैन श्रमणी संघ के इतिहास को जानने के साधन स्त्रोत पर विस्तृत विवेचन किया गया है। इसी अध्याय में शोध का महत्त्वपूर्ण हिस्सा कला एवं स्थापत्य में श्रमणियों का अंकन कर श्रमणियों के दुर्लभ प्राचीन 37 चित्रों का भी समावेश किया है, जो ईसा की प्रथम शताब्दी से बीसवीं शताब्दी तक विभिन्न स्थलों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy