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________________ जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास 5.1.25 श्री सुन्दरमती श्री आसमती (संवत् 1265) संवत् 1265 में श्री सुन्दरमती और आसमती ने लवणखेड़ा में श्री जिनपतिसूरिजी के मुखारविन्द से दीक्षा अंगीकार की थी। 5.1.26 श्री ज्ञानश्री (संवत् 1266) संवत् 1266 में विक्रमपुर में श्री ज्ञानश्रीजी ने श्री जिनपतिसूरिजी से दीक्षा ग्रहण की थी। 5.1.27 श्री चन्द्रश्री, केवलश्री (संवत् 1269) श्री चन्द्रश्री और केवलश्री ने संवत् 1269 जाबालिपुर में श्री जिनपतिसूरिजी के द्वारा दीक्षा अंगीकार की।" 5.1.28 श्री भुवनश्री गणिनी, श्री जगमती, श्री मंगलश्री (संवत् 1275) संवत् 1275 ज्येष्ठ शुक्ला 12 के शुभ दिन जाबलिपुर में इन तीनों मुमुक्षु बहनों ने श्री जिनपतिसूरिजी के मुखारविंद से श्रामणी दीक्षा अंगीकार की थी। इसके पश्चात् श्री सूरिजी के द्वारा किसी श्रमणी को दीक्षित करने का उल्लेख प्राप्त नहीं होता। ये तीनों श्री जिनपतिसूरिजी की अंतिम शिष्याएँ थीं। 5.1.29 महत्तरा हेमश्री (संवत् 1278-1331) साध्वी हेमश्री, हेमाचार्य की भगिनी थीं। एकबार देव आरक्षित एक पुस्तक जिसमें स्वर्णसिद्धि का उपाय लिखा हुआ था; गुरू द्वारा खोलने व पढ़ने का निषेध करने पर भी इन्होंने उसे खोल दिया, तत्काल ये अंधत्व को प्राप्त हो गई और पुस्तक आकाश में उड़ गई। यह प्रसंग पट्टावली में उल्लिखित है।" 5.1.30 श्री केवलप्रभा (संवत् 1278) श्री जिनपतिसूरिजी के पट्टधर आचार्य श्री जिनेश्वरसूरि द्वारा संपादित दीक्षा सूची में सर्वप्रथम श्री केवलप्रभा का नाम गौरव के साथ लिया गया है। ये खींवड़ की पुत्री थीं, तथा मुनि श्री स्थिरकीर्ति की बहिन थीं, दोनों भ्राता-भगिनी संवत् 1278 माघ शुक्ला 6 को जाबालिपुर में आचार्य जिनेश्वरसूरिजी से दीक्षित हुए थे। 5.1.31 विवेक श्री गणिनी, शीलमाला गणिनी, चन्द्रमाला गणिनी विनयमाला गणिनी (सं. 1279) ___ आप चारों की दीक्षा संवत् 1279 माघ सुदी 5 को जालोर में श्री जिनेश्वरसूरि जी के सान्निध्य में हुई, आप चारों ही 'गणिनी' पद पर भी प्रतिष्ठित 33. ख. बृ. गु., पृ. 44 34. ख. बृ. गु., पृ. 47 35. ख. बृ. गु., पृ. 47 36. ख. बृ. गु., पृ. 47 37. जिनविजयजी, खरतरगच्छ पट्टावली-2, पृ. 25 38. भं. नाहटा, स्वर्णगिरि जालोर, पृ. 23 39. (क) ख. बृ. गुर्वा., पृ. 59, (ख) स्वर्णगिरि जालोर, पृ. 24 (ग) ख. का इति., पृ. 107 274 274] Jain Education International For Private Person Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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