________________
श्वेताम्बर परम्परा की श्रमणियाँ
5.1.32 गणिनी ज्ञानमाला (संवत् 1279)
आपकी दीक्षा संवत् 1279 ज्येष्ठ शुक्ला 12 को श्रीमालपुर में चारित्रमाला व सत्यमाला के साथ श्री जिनेश्वरसूरि (द्वि.) द्वारा संपन्न हुई थीं। संवत् 1310 वैशाख शुक्ला 13 स्वाति नक्षत्र शनिवार को सूरिजी ने इन्हें "प्रवर्तिनी' पद से विभूषित किया।
5.1.33 गणिनी हेमश्री (संवत् 1280)
आपने श्री जिनेश्वरसूरि जी से संवत् 1280 माघ शुक्ला 12 को श्रीमालपुर में दीक्षा अंगीकार की। आपके साथ 'पूर्णश्री' की दीक्षा का भी उल्लेख है।"
5.1.34 गणिनी कमलश्री (संवत् 1281)
संवत् 1281 मिती वैशाख शुक्ला 6 के शुभ दिन श्री जिनेश्वरसूरि जी ने आपको दीक्षा प्रदान की। दीक्षा नंदी सूची में आपके साथ 'कुमुदश्रीजी' की दीक्षा का भी उल्लेख है।12
5.1.35 प्रवर्तिनी धर्मसुन्दरी (संवत् 1284)
आपने संवत् 1284 में बीजापुर में श्री जिनेश्वरसूरिजी से दीक्षा अंगीकार की। आपके साथ चारित्रसुन्दरी जी की भी दीक्षा हुई। आपके वैदुष्य को देखकर संवत् 1316 माघ शुक्ला 14 को जालोर में सूरिजी ने 'प्रवर्तिनी' पद से विभूषित किया।
5.1.36 श्री उदयश्री (संवत् 1285) ____ श्री उदयश्रीजी ने संवत् 1285 ज्येष्ठ शुक्ला 2 को श्री जिनेश्वरसूरिजी द्वारा बीजापुर (कर्नाटक) में दीक्षा
अंगीकार की थी। संभवतः ये कर्नाटक की ही निवासिनी हों। कर्नाटक में सूरिजी के विचरण और दीक्षा प्रदान किये जाने के उल्लेख से कर्नाटक में उस समय श्वेताम्बर जैन समाज के वर्चस्व का भी पता लगता है।
5.1.37 महत्तरा लक्ष्मीनिधि (संवत् 1287)
आपने संवत् 1287 फाल्गुन कृष्णा 5 को प्रहलादपुर (पालनपुर) में 'कुलश्री' के साथ श्री जिनेश्वरसूरि जी (द्वि.) से दीक्षा अंगीकार की थी, उस समय आपका नाम 'प्रमोदश्री' था। संवत् 1310 वैशाख शुक्ला 13 को स्वातिनक्षत्र शनिवार के दिन सूरिजी ने प्रमोदश्री गणिनी को 'महत्तरा' पद देकर 'लक्ष्मीनिधि' नाम रखा संवत्
40. (क) ख. बृ. गु. पृ. 49, (ख) ख. दी. नं. सू., पृ. 9, (ग) ख. इति., पृ. 107 41. ख. दी. नं., पृ. 9 42. (क) ख. बृ. गु., पृ. 49%; (ख) ख. दी. नं., पृ.9 43. (क) ख. बृ. गु., पृ. 49,51; (ख) ख. दी. नं., पृ. 12 44. ख. बृ. गु., पृ. 49
Jain Education International
For P
e rsonal Use Only
www.jainelibrary.org