________________
श्वेताम्बर परम्परा की श्रमणियाँ 5.1.20 प्रभावती महत्तरा (संवत् 1241)
आपकी दीक्षा संवत् 1241 में श्री जिनपतिसूरिजी के मुखारविन्द से फलौदी में हुई थी, उस समय आपका नाम 'धर्मदेवी' रखा गया। संवत् 1265 में जाबालिपुर के विधि चैत्यालय में जब सूरिजी द्वारा महावीर प्रतिमा की स्थापना की गई, उस समय श्री जिनपालगणि को उपाध्याय पद एवं प्रवर्तिनी धर्मदेवी को 'महत्तरा' पद से अलंकृत किया गया, तथा उसका नाम 'प्रभावती' प्रसिद्ध किया गया। धर्मदेवी एक विदुषी साध्वी थीं, इन्हें संवत् 1263 फाल्गुन कृष्णा 4 को लवणखेड़ा में 'प्रवर्तिनी' पद देने का भी उल्लेख है।7 श्री जिनवल्लभसूरि कृत 'पिण्डविशुद्धि प्रकरण' जिसकी टीका यशोदेवसूरि ने लिखी, उसमें भी आपके नाम का उल्लेख है। इसकी प्रति जिनभद्रसूरि ताड़पत्रीय ग्रंथ भंडार में है।28
5.1.21 संयमश्री, शांतमती एवं रत्नमती (संवत् 1245)
श्री जिनपतिसूरिजी द्वारा पुष्करणी नगरी (पोकरण) में संवत् 1245 फाल्गुन मास की शुभ तिथि में श्री संयमश्री आदि तीन बहनों को श्रमणी दीक्षा प्रदान करने का उल्लेख है।" 5.1.22 प्रवर्तिनी रत्नश्री (संवत् 1254)
संवत् 1254 में श्री जिनपतिसूरिजी द्वारा धारानगरी में आपने दीक्षा अंगीकार की, आगे चलकर अपने वैदुष्य से आप 'प्रवर्तिनी' पद पर प्रतिष्ठित की गईं।30
5.1.23 महत्तरा आनंदश्री (संवत् 1260)
श्री जिनपतिसूरिजी ने संवत् 1260 आसाढ़ कृ. 6 को लवणखेड़ा में आपको 'महत्तरा' पद पर विभूषित किया था।
5.1.24 गणिनी मंगलमती (संवत् 1263)
संवत् 1263 फाल्गुन कृ. 4 को लवणखेड़ा में आपने श्री जिनपतिसूरिजी के मुखारविन्द से दीक्षा ग्रहण की। आपके साथ विवेकश्री, कल्याणश्री एवं जिनश्री भी दीक्षित हुई थीं। आपके वैदुष्य से प्रभावित होकर संवत् 1283 माघ कृ. 6 को बाडमेर (राज.) में श्री जिनेश्वरसूरि (द्वितीय) द्वारा आप 'प्रवर्तिनी' के महत्त्वपूर्ण पद पर प्रतिष्ठित की गई थीं।
26. (क) ख. बृ. गु., पृ. 44, (ख) भंवरलाल नाहटा, खरतर. दीक्षा नंदी सूची, पृ. 7 27. खरतर. का इतिहास, पृ. 98 28. जैसलमेर ग्रंथ भंडार सूची, परिशिष्ट 13, पृ. 599 29. ख. बृ. गु., पृ. 44 30. (क) ख. बृ. गु.. पृ. 44 (ख) ख. दी. नं. सू., पृ. 7 31. (क) ख. बृ. गु., पृ. 44 (ख) ख. का इति. पृ. 98 32. (क) ख. बृ. गु., पृ. 49, (ख) ख. दी. नं. सू., पृ. 8
273
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org