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जैन श्रमणियों का बहद इतिहास
5.1.13 सात श्रेष्ठी पलियाँ (संवत् 1225)
संवत् 1225 में श्री जिनपतिसूरिजी ने पुष्करणी में जिनसागर जिनाकर, जिनबंधु, जिनपाल, जिनधर्म, जिनशिष्य और जिनमित्र को पत्नी सहित दीक्षा प्रदान की। इन सातों की पत्नियों के नामों का उल्लेख प्राप्त नहीं होता। 5.1.14 धर्मशील श्रेष्ठी की माता (संवत् 1227)
श्री जिनपतिसूरिजी द्वारा उच्चानगरी में श्रेष्ठी धर्मशील व उसकी माता को दीक्षा दिये जाने का उल्लेख है। यह दीक्षा संवत् 1227 में हुई थी। 5.1.15 श्री अजितश्री (संवत् 1227)
अजित श्री मुनि शीलसागर और मुनि विनयसागर जी की बहिन थी। संवत् 1227 में इसने मरूकोट में श्री जिनपतिसूरिजी के मुखारविंद से दीक्षा ग्रहण की थी। 5.1.16 श्री अभयमती, जसमती, आसमती और श्री देवी (संवत् 1230)
श्री जिनपतिसूरिजी ने उक्त चारों मुमुक्षु आत्माओं को संवत् 1230 विक्रमपुर में जैन भागवती दीक्षा प्रदान की थी। 5.1.17 सिरिमा महत्तरा (संवत् 1233 के लगभग)
आप श्री जिनपतिसूरिजी की आज्ञानुवर्तिनी साध्वी थीं आप द्वारा रचित 'श्री जिनपतिसूरि बधामणा गीत' 20 गाथा का संवत् 1233 में लिखा हुआ मिलता है, जिसकी भाषा ठेठ ग्राम प्रचलित लोकगीतों की भाषा के समान है। एक साध्वी द्वारा प्रयुक्त यह भाषा तत्कालीन मरूगुर्जर का प्राकृतिक स्वरूप पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करती है। 5.1.18 श्री जयदेवी (संवत् 1234)
फलवर्द्धिका (फलौदी) में संवत् 1234 में श्री जयदेवी जिनपतिसूरिजी द्वारा दीक्षित होकर श्रमणी बनी थी। 5.1.19 गणिनी चरणमती (संवत् 1235)
आपकी दीक्षा संवत् 1234 में श्री जिनपतिसूरिजी द्वारा अजमेर (राजस्थान) में सम्पन्न हुई। आपकी प्रेरणा से पुत्र देवप्रभ ने भी संयम अंगीकार किया था।
19. ख. बृ. गु., पृ., 23 20. ख. बृ. गु., पृ.. 23 21. ख. बृ. गु., पृ., 24 22. ख. बृ. गु., पृ. 24 23. जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भा. 5, पृ. 145 24. ख. बृ. गु., पृ. 24 25. (क) ख. बृ. गु., पृ. 24, (ख) खरतर. का इतिहास, पृ. 55
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