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________________ श्वेताम्बर परम्परा की श्रमणियाँ 5.1.8 परम्परा की रक्षिका अज्ञातनामा श्रमणी खरतरगच्छ के इतिहास में महोपाध्याय विनयसागर जी ने जिनवल्लभगणि के समय की एक आर्यिका का उल्लेख किया है, उसने भगवान महावीर के गर्भ कल्याणक मनाने का निश्चय कर बैठे सूरिजी सहित श्री संघ को पार्श्वनाथ चैत्यालय में प्रवेश नहीं करने दिया, क्योंकि उस समय तक गर्भ कल्याणक पर्व मनाने की परिपाटी नहीं थी, साध्वी द्वारा विरोध किये जाने के पश्चात् चित्तोड़ में दो मंदिर निर्मित हुए-एक पार्श्वनाथ भगवान का (पहाड़ पर) एवं दूसरा भगवान महावीर स्वामी का (पहाड़ के नीचे)। 5.1.9 प्रवर्तिनी हेमदेवी (संवत् 1214) ये मणिधारी जिनचन्द्रसूरि की शिष्या थीं। सूरिजी ने संवत् 1214 में त्रिभुवनगिरि (तहनगढ़) में इन्हें 'प्रवर्तिनी' पद प्रदान किया था। 5.1.10 महत्तरा गुणश्री (संवत् 1218) ____ आप संवत् 1218 में उच्चानगरी में मणिधारी जिनचन्द्रसूरिजी से दीक्षित हुई थीं। संवत् 1234 में फलवर्द्धिका (फलौदी) में आपको 'महत्तरा' पद पर प्रतिष्ठित किया गया था। आपके साथ जगश्री व सरस्वती श्री जी की भी दीक्षा होने का उल्लेख है। 5.1.11 देवभद्र की पत्नी (संवत् 1221) संवत् 1221 में श्री देवभद्र की पत्नी ने अपने पति का अनुगमन करते हुए 'बब्बेरक ग्राम' में मणिधारी श्री जिनचंद्रसूरि से प्रव्रज्या ग्रहण की थी।" 5.1.12 शासनप्रभाविका महत्तरा साध्वी (संवत् 1225-75) गुर्वावली में उल्लेख है कि संवत् 1225 से 1275 के मध्य किसी समय श्री जिनपतिसूरिजी 'आसीनगर' में जिनबिंब की प्रतिष्ठा हेतु पधारे, उसी समय एक विद्यासिद्ध योगी वहां भिक्षा नहीं मिलने से रूष्ट हो गया और मूलनायक बिम्ब को कीलित कर चला गया। प्रतिष्ठा-मुहूर्त पर जब संघ उस बिंब को उठाने गया तो वह उठा नहीं। संघ की चिंता और जैनधर्म की हीलना को देख एक महत्तरा साध्वी ने आचार्यश्री से निवेदन करते हुए कहा"भगवन्! संघ में आपकी हँसी हो रही है, क्या हमारे मुनियों में उस अज्ञ योगी जितनी भी विद्या नहीं है? अतः आप अपनी लब्धि का उपयोग कर शासन की रक्षा कीजिये।" महत्तरा साध्वी के वचनों से प्रेरित होकर आचार्य ने अपनी लब्धि का उपयोग किया, बिंब के मस्तक पर उनके द्वारा वासक्षेप करते ही तत्काल बिम्ब उठ गया। महत्तरा साध्वी के नाम आदि की अन्य जानकारी प्राप्त नहीं होती। 14. खरतरगच्छ का इतिहास, पृ. 23, 24 15. ख. बृ. गु. पृ. 50 16. ख. बृ. गु., पृ. 7 17. ख. बृ. गु., पृ. 20 18. ख. बृ. गु., पृ., 93 271 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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