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दिगम्बर परम्परा की श्रमणियाँ है, जो जयपुर की शोभा है, एवं तीर्थक्षेत्र बन गया है। धर्म जागृति के कार्यों में आपका विशिष्ट अवदान रहा है। आप अभी भी इसी तीर्थक्षेत्र के विकास में संलग्न हैं। आप विदुषी एवं तपोमूर्ति भी हैं, अभी तक 1500 उपवास कर चुकी हैं।228
उपसंहार ___ इस प्रकार विभिन्न भाषाओं में रचित जैन साहित्य, ग्रंथ-प्रशस्तियों तथा विभिन्न स्थानों से प्राप्त जैन शिलालेखों के अध्ययन से दिगंबर परंपरा की प्राचीन श्रमणियों के विषय में यह स्पष्ट जानकारी प्राप्त होती है कि इन्होंने अपने तप-संयम से श्रमण संस्कृति को तो गौरवान्वित किया ही, साथ ही अपने सान्निध्य में आने वाले अनेक उपासक-उपासिकाओं को प्रेरणा देकर धर्मतीर्थ के अन्नयन का महत्त्वपूर्ण कार्य भी किया है। तमिल और कर्नाटक प्रान्तीय आर्यिकाएँ अपने सुविशाल संघ की नियन्ता सर्वतंत्र समर्थ आचार्य व उपाध्याय पद पर भी प्रतिष्ठित रही है तथा 'महाव्रत पवित्रांगा' जैसे सम्माननीय विरूद से संबोधित हुई हैं।
वर्तमान में भी आर्यिकाओं और क्षुल्लिकाओं का योगदान किसी भी क्षेत्र में कम नहीं है। कितनी ही आर्यिकाएं गणिनी पद को प्राप्त हैं, कई महाविदुषी हैं, तत्त्वज्ञा हैं कठोरतम नियमों का अनुपालन करने वाली विदुषी श्री वीरमतीजी, श्री इन्दुमतीजी, श्री धर्ममतीजी, श्री रत्नमतीजी आदि समाज के लिए आदर्श बनी हैं। श्री विशुद्धमतीजी, श्री सुपार्श्वमतीजी जैसी कितनी ही आर्यिकाएं जैनधर्म और दर्शन की प्रौढ़ प्रवक्ता हैं। गणिनी ज्ञानमतीजी गणिनी विजयमतीजी आदि के उच्चस्तरीय ग्रंथ विद्वानों की अनुशंसा के विषय तो बने ही हैं साथ ही उन पर शोध कार्य भी हुआ है।
अवशिष्ट दिगम्बर आर्यिकाएँ तथा क्षुल्लिकाएँ १ ___ यहाँ उन दिगम्बर आर्यिकाओं एवं क्षुल्लिकाओं के नाम दिये जा रहे हैं, जिनका विशेष परिचय उपलब्ध नहीं हो सका। दिगम्बर जैन साधु-साध्वी वर्षायोग 2001 की सूची से उनका, और उनके दीक्षा गुरू का नाम ही प्राप्त हुआ है अतः उतना ही उल्लेख करके संतोष करना पड़ रहा है। 1. आचार्य श्री श्रेयांससागरजी से दीक्षित :- श्री अभेदमती जी, श्री प्रवीणमती जी, श्री प्रसन्नमती जी,
श्री प्रयोगमती जी, श्री प्रवेशमती जी, श्री प्रत्यक्षमती जी, श्री सुदृष्टिमती जी। 2. आचार्य श्री बाहुबलीसागरजी से दीक्षित :- श्री मुक्तिलक्ष्मी जी, श्री शांतिमती जी, श्री निदेवीजी, श्री
श्रुतदेवीजी, श्री निर्वाणलक्ष्मीजी, श्री मुक्तिकांताजी, श्री धर्मेश्वरीजी, श्री सुज्ञानीजी, श्री निष्पापमती जी, श्री
धर्ममतीजी, श्री शिवादेवी जी, श्री सुमंगलाजी। 3. आचार्य श्री विमलसागरजी से दीक्षित:- श्री मोक्षमती जी, श्री मुक्तिमती जी, श्री पावापुरीमतीजी, श्री
चैतन्यमती, श्री चिंतनमतीजी, श्री चिन्मती माताजी, श्री धवलमतीजी, श्री सम्मेदशिखर श्री जी, श्री
कैलाशमती जी. श्री सिद्धान्तमतीजी श्री शांतिमतीजी। 228. दि. जै. सा., पृ. 339 229. संकलन- डॉ. अनुपम जैन, ऋषभ देशना, सितंबर-अक्टूबर 2001, पृ. 1-34, प्रकाशक-अखिल भारतीय दिगंबर जैन महिला
संगठन, एम. एस. जे. हाउस 36-37 कंचनबाग, इंदौर-1
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