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4.9.43 आर्यिका गुणमतीजी
आपका जन्म महावीरजी में श्री मूलचन्द जी पांड्या के घर तथा विवाह भंवरलाल जी गंगवाल नीमाज (राजस्थान) वासी से हुआ, आपको दो पुत्र व एक पुत्री इस प्रकार सम्पन्न एवं धार्मिक वृत्ति का परिवार मिला। पंचकल्याणक प्रतिष्ठा के पुण्य अवसर पर महावीरजी में आचार्य धर्मसागरजी म. ने आपको आर्यिका दीक्षा प्रदान की। दीक्षा के पश्चात् आपने प्रायः समस्त तीर्थों का पाद-विहार करके वंदना की। आप सरल एवं प्रखर प्रतिभासंपन्न है, प्रवचन शैली में मधु सी मीठास है, गुरू भक्ति आपमें अटूट भरी हुई है। आपने चारित्रशुद्धि के 1234 उपवास कर तप का आदर्श भी कायम किया, इस प्रकार आप ज्ञान व तप के मार्ग पर सतत परिव्रजन कर रही हैं। 196
4.9.44 आर्यिका प्रवचनमती जी (संवत् 2032 )
आप सौभाग्यशालिनी आर्यिका मातुः श्री समयमती माताजी की सुपुत्री एवं आचार्य विद्यासागर जी महाराज की संसारी भगिनी हैं, आपका जन्म सन् 1955 रक्षाबंधन के दिन हुआ, उस दिन आपके पिता श्री मल्लप्पा जी ने 21 तोला सुवर्ण खरीदा, अतः आप स्वर्णा नाम से संबोधित की गई। आपने अपनी मातुः श्री के साथ ही माघ शुक्ला 5 संवत् 2032 में आर्यिका दीक्षा ग्रहण की। आप सतत अध्ययन मनन चिंतन में लीन रहती हैं, आपकी मुखमुद्रा प्रतिसमय प्रसन्न रहती है। 197
जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास
4.9.45 आर्यिका सुरत्नमती जी ( संवत् 2033 )
आप श्री बैनीप्रसाद जी गुनौर ग्राम (म. प्र. ) निवासी की इकलोती बेटी थीं, संवत् 2013 को गुनौर में आपका जन्म हुआ। 18 वर्ष की अल्पायु में ही अपने ज्येष्ठ भ्राता की मुनिचर्या से प्रभावित होकर आजीवन ब्रह्मचर्यव्रत अंगीकार कर लिया। सन् 1976 को बसंतपंचमी के दिन मुजफ्रनगर (उ. प्र.) में आचार्य धर्मसागर जी महाराज के कर-कमलों से आपने आर्यिका दीक्षा अंगीकार की। आप विदुषी धर्मप्रचार में अग्रणी साध्वी हैं। 198
4.9.46 आर्यिका धन्यमती जी
आप डेह (नागौर) निवासी थीं, विवाह के पश्चात् एक पुत्री पैदा हुई, उसके बाद आप विधवा हो गईं। आचार्य वीरसागरजी से आत्मकल्याणार्थ सातवीं प्रतिमा अंगीकार की, 30 वर्ष तक संघ में रहकर साधुओं की सेवा का लाभ लिया। अंत में उदयपुर (राजस्थान) में आचार्य धर्मसागरजी से आर्यिका दीक्षा ली। केशरियाजी तीर्थ पर आपने संल्लेखना एवं समाधिमरण से देह का उत्सर्ग किया, इस अवसर पर 40 साधु उपस्थित थे। आपकी सरलता, दान, सेवा परोपकारिता एवं मिलनसारिता से सभी प्रभावित थे। 199
196. दि. जै. सा., पृ. 255
197. दि. जै. सा., पृ. 356
198. दि. जै. सा., पृ. 258
199. दि. जै. सा., पृ. 259
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